रॉयल्टी में राहत मिली तो सस्ते हो सकते हैं मोबाइल
मोबाइल हैंडसेट कंपनियों को पेटेंट पर रॉयल्टी में राहत देने के लिए सरकार ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। अगर कंपनियों को रॉयल्टी में राहत मिलती है तो देश में मोबाइल हैंडसेट सस्ते होने की उम्मीद बनेगी।
नई दिल्ली। मोबाइल हैंडसेट कंपनियों को पेटेंट पर रॉयल्टी में राहत देने के लिए सरकार ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। अगर कंपनियों को रॉयल्टी में राहत मिलती है तो देश में मोबाइल हैंडसेट सस्ते होने की उम्मीद बनेगी। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग (डीआइपीपी) ने इस मामले में एक डिस्कशन पेपर जारी कर सभी संबंधित पक्षों से इस पर सुझाव मांगे हैं। डिस्कशन पेपर में टेलीकॉम क्षेत्र में दुनिया भर के पेटेंट कानूनों के सार के साथ-साथ घरेलू मोबाइल कंपनियों के रॉयल्टी संबंधी चल रहे मुकदमों का ब्यौरा भी दिया गया है।
पेटेंट पर संतुलन का प्रयास
डीआइपीपी के इस पेपर में टेलीकॉम उद्योग और मोबाइल हैंडसेट कंपनियों से इस बारे में भी सुझाव मांगा गया है कि टेलीकाम क्षेत्र के लिए आइपीआर नीति कैसी हो? डीआइपीपी ने इसका उद्देश्य बताते हुए पेपर में कहा है, 'इस बहस को शुरू करके सरकार विभाग राष्ट्रीय विकास तकनीकी लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा रहा है। सरकार का उद्देश्य निजी बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण करते हुए आम जनता के हितों को सुरक्षित रखना भी है।'
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बीस अरब रुपये रॉयल्टी देनी होगी
दरअसल यह पूरा मामला घरेलू मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियों की तरफ से चुकाई जाने वाली रॉयल्टी से जुड़ा है। घरेलू मोबाइल हैंडसेट उद्योग की मौजूदा विकास दर को आधार मानें तो इन कंपनियों को साल 2020 तक करीब 2000 करोड़ रुपये की रॉयल्टी विदेशी टेलीकाम कंपनियों को चुकानी होगी जिनके पास टेक्नोलाजी को लेकर पेटेंट हैं। स्वीडन की एरिक्सन अकेली ऐसी कंपनी है जिसके करीब 30,000 पेटेंट हैं जो मोबाइल हैंडसेट और नेटवर्क टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं।
बिक्री मूल्य पर लगती है रॉयल्टी
टेलीकाम उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि घरेलू मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियों को इन पेटेंट पर रॉयल्टी की अदायगी मोबाइल फोन के बिक्री मूल्य के आधार पर करनी होती है। जबकि चीन में इसके विपरीत उस चिप या पुर्जे की कीमत के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान होता है जिसे मोबाइल हैंडसेट में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह भारतीय कंपनियों को चीन के हैंडसेट निर्माताओं को पेटेंट के मद में अधिक राशि का भुगतान करना पड़ता है। एरिक्सन जो अब सोनी के साथ करार के बाद हैंडसेट निर्माण से बाहर आ चुकी है, अकेले पेटेंट से हर साल सात अरब डॉलर की कमाई करती है।
भारतीय कंपनियों पर रॉयल्टी का बोझ
भारतीय कंपनियों में अधिकांश कई करोड़ रुपये की राशि इस पेटेंट के तहत अदा भी कर चुकी हैं। उद्योग सूत्रों के मुताबिक माइक्रोमैक्स अब तक 185 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है जबकि 2020 तक उसे कम से कम 100 करोड़ रुपये का और भुगतान करना होगा। इसी तरह कार्बन 100 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है और उसे करीब 60 करोड़ रुपये और चुकाने हैं। इंटैक्स ने इस संबंध में अपील की हुई है। जबकि लावा इस मामले में मुकदमा लड़ रही है।