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बाहरी श्रमिकों के राहत शिविर बने आफत, रायपुर एम्स की जांच पर टिकी निगाहें

प्रदेश के करीब ढाई लाख मजदूरों को वापस लाया जाना है। प्रदेश के सबसे ज्यादा मजदूर जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 29 Apr 2020 05:33 PM (IST)Updated: Wed, 29 Apr 2020 05:33 PM (IST)
बाहरी श्रमिकों के राहत शिविर बने आफत, रायपुर एम्स की जांच पर टिकी निगाहें

बिलासपुर, राज्य ब्यूरो। महाराष्ट्र से आए झारखंड के श्रमिक प्रशासन के लिए मुसीबत बन गए हैं। इनमें रेंडम जांच में एक श्रमिक के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद दक्षिण कोरियाई किट से हुई जांच में एक सिपाही समेत दस श्रमिक पॉजिटिव चिन्हित किए गए हैं। इसमें सूरजपुर के जजावल शिविर और जशपुर जिले के शिविर में रखे गए श्रमिक शामिल हैं। अब एम्स रायपुर की जांच रिपोर्ट पर निगाहें टिकी हैं। इसके बाद ही इन्हें पॉजिटिव घोषित किया जाएगा। चिंता की बात है कि राजनांदगांव जिले में श्रमिकों ने 14 दिन का क्वारंटाइन पूरा कर लिया था। इस दौरान ये करीब सात सौ लोगों के संपर्क में भी आए। इसमें पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम भी शामिल हैं। इसके बाद इन्हें झारखंड के सरहदी सूरजपुर जिले के जजावल और जशपुर जिले के राहत शिविर में रखा गया था। ऐसे में अब प्रदेश भर के राहत शिविरों में रखे गए सभी श्रमिकों की जांच कराने की तैयारी है।

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कोरोना के साइलेंट कैरियर

जिन मजदूरों को दक्षिण कोरियाई किट ने पॉजिटिव पाया है, उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखे। क्वारंटाइन की अवधि भी पूरा किया लेकिन अब जांच किट की सुविधा उपलब्ध होने पर कराई जा रही जांच में पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। ऐसे लोग कोरोना वायरस के साइलेंट कैरियर बन रहे हैं। इसे एम्स के विशेषज्ञ भी चिंता का सबब बता रहे हैं। जानें, 

बाहरी प्रदेश में फंसे ढाई लाख मजदूरों की घर वापसी पर फंस सकता है पेच

छत्तीसगढ़ में छात्रों को वापस लाने के बाद सरकार अब मजदूरों की वापसी के लिए प्रयास कर रही है लेकिन झारखंड के सीमावर्ती जिलों में स्थित कैंपों की जांच रिपोर्ट के संकेत सरकार को एक कदम ठहरने पर मजबूर कर सकते हैं। इसी प्रकार आवागमन को लेकर राहत देने के मूड में दिख रही सरकार को भी अपने फैसले पर फिलहाल पुनर्विचार करना पड़ सकता है। प्रदेश के करीब ढाई लाख मजदूरों को वापस लाया जाना है। प्रदेश के सबसे ज्यादा मजदूर जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में फंसे मजदूरों की भी सूचना सरकार ने एकत्र कर ली है। सबसे ज्यादा राजनांदगांव, बलोदाबाजार, धमतरी, महासमुंद और बालोद जिलों के मजदूर अन्य प्रदेशों में फंसे हैं।

कोटा से लौटे छात्रों की मांग से प्रशासन परेशान

राजस्थान के कोटा से लाए गए बच्चे प्रशासन को परेशान कर रहे हैं। घर जाने की जिद में कोई भोजन नहीं कर रहा है तो कोई मांग रहा पिज्जा बर्गर। कई छात्र क्वारंटाइन सेंटर में एसी लगाने की की मांग कर रहे हैं। छात्रों को समझाने के लिए प्रशासन ने काउंसलर बुलाने पड़े हैं।

चीन से कारोबार समेटने वाली कंपनियों को न्योता देगी छत्तीसगढ़ सरकार

सरकार ने छत्तीसगढ़ में विदेशी निवेश आमंत्रित करने की रणनीति को सैद्घांतिक सहमति दी है। राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, आयरन एवं स्टील, भारी इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, ऑप्टिकल फायबर उद्योग को आमंत्रित करने के लिए उद्योग विभाग पहल करेगा। राज्य में ऑटोमोबाइल, आयरन एवं स्टील, भारी इंजीनियरिंग, इलेक्टि्रक वायर एवं ऑप्टिकल फायबर, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उद्योगों की स्थापना के लिए प्राथमिकता से विदेशी पूंजी निवेश कराने की कोशिश हो रही है। यूएसए, जापान, दक्षिण कोरिया, ताईवान एवं वियतनाम की प्रमुख कंपनियों को छत्तीसगढ़ में अपना उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।

मुठभेड़ में महिला नक्सली ढेर, दो जवान घायल  

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर थाना क्षेत्र स्थित करेमेटा कैंप के पास बुधवार सुबह आठ बजे नक्सलियों ने घात लगाकर फोर्स पर हमला किया। नक्सलियों ने पहले आइईडी ब्लास्ट किया, फिर फायरिंग शुरू कर दी। करीब 45 मिनट तक फायरिंग के बाद नक्सली भाग खड़े हुए। इस घटना में दो जवान घायल हुए हैं, जिन्हें एयर लिफ्ट करा कर रायपुर के निजी चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। मुठभेड़ में एक महिला नक्सली मारी गई है। मौके से फोर्स ने टेलिस्कोपिक लैंस समेत एक एसएलआर रायफल, 12 बोर की बंदूक, बाकी-टॉकी समेत नक्सल सामग्री बरामद की है। विरुद्ध्ध्

चिपको से सौ साल पहले बस्तर के आदिवासियों ने जंगल बचाने के लिए चलाया था आंदोलन

बस्तर के आदिवासी जंगल को देवता मानते हैं। आजादी से पहले बस्तर में वनों को बचाने के लिए विद्रोह हुआ था। यह चिपको आंदोलन जितना प्रसिद्घ भले नहीं हुआ पर तब पेड़ों को बचाने के लिए हजारों आदिवासियों ने प्राणों की आहुति दी थी। इस विद्रोह का नेतृत्व वन पुत्र नागुल दोरला ने किया था। तब अंग्रेज सरकार यहां के साल वनों को काटकर उससे पानी का जहाज बनवा रही थी। लकड़ी कटाई का ठेका हैदराबाद के ठेकेदार को दिया गया था। फोतकेल के जमींदार नागुल दोरला ने इसके विरुद्ध् आवाज उठाई थी। उसने भोपालपटनम और भेज्जी के जमींदारों को जोड़कर आंदोलन खड़ा किया। इसे 'कोई' विद्रोह के नाम से जाना जाता है। आंदोलकारियों ने नारा दिया था एक पेड़ के पीछे जंगल काटने वालों का एक सिर। कई अंग्रेज व उनके कारिंदे भी इसमें मारे गए। आदिवासियों की जिद के आगे अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा था।


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