जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के बीच महीनों चले विचार-विमर्श के बाद बुधवार को नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को लॉच करने का फैसला तो हो गया है, लेकिन इसके तहत तय लक्ष्यों की राहत की दिक्कतें भी कम नहीं है। सरकार भी इस बात को बखूबी समझ रही है इसलिए वह कई स्तरों पर काम शुरु करने जा रही है। इसके लिए जल्द ही कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय अधिकारप्राप्त समूह का गठन करने जा रही है जो मिशन के विभिन्न लक्ष्यों के हिसाब से रणनीति बनाएगी। साथ ही केंद्र व राज्य सरकारों के साथ और निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ भी एक अलग से समूह का गठन होगा जो भारत को पहली बार ऊर्जा सेक्टर में एक नेट निर्यातक के तौर पर स्थापित करने की राह निकालेगा। एक अहम प्राथमिकता ग्रीन हाइड्रोजन की मौजूदा कीमत को 300-400 रुपये प्रति किलो को वर्ष 2030 तक घटा कर सौ रुपये प्रति किलो तक करने की होगी।
नेशनल ग्रीन हाइड्रोडन मिशन की राह में हैं कई चुनौतियां
बिजली और नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री (एमएनआरई) आर के सिंह का कहना है कि नेशनल ग्रीन हाइड्रोडन मिशन की राह में कई चुनौतियां हैं लेकिन हम उन्हें एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं। अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देश भी ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में नई महत्वाकांक्षी घोषणाएं कर रहे हैं लेकिन भारत के पास सबसे मजबूत आधार है। भारत सरकार ने जिस तरह से समग्र ग्रीन हाइड्रोजन व ग्रीन अमोनिया सेक्टर को विकसित करने की योजना बनाई है वैसी तैयारी दूसरे देशों की नहीं है। कैबिनेट की तरफ से 19.8 हजार करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना के तहत निवेश आकर्षित करने के अगले हफ्ते भर में निविदाएं मंगाने का काम शुरू हो जाएगा। दो से ढ़ाई वर्ष में बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरु हो जाने की संभावना है।
डब्लूटीओ जाने की संभावना पर भी विचार कर सकता है भारत
उन्होंन कहा कि इस बीच सरकार को कई स्तरों पर बाधाओं को दूर करना है। एक बाधा विकसित देशों की तरफ से यह आ रही है कि वहां बड़े पैमाने पर सब्सिडी देने की घोषणा की गई है। भारत का आग्रह है कि विकसित देश बाजार के हिसाब से प्रोत्साहन दें ना कि सीधी सब्सिडी दे कर। बिजली मंत्री ने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो अनुचित तौर पर सब्सिडी देने को लेकर भारत डब्लूटीओ जाने की संभावना पर भी विचार कर सकता है।
पांच करोड़ टन सालाना उत्पादन का रखा गया है लक्ष्य
एमएनआरई सचिव भूपिंदर सिंह भल्ला ने भरोसा जताया है कि जब पूरी दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग तेज रफ्तार पकड़ेगी (जो अगले चार-पांच वर्ष में संभव है) तब तक भारत में इसके निर्माण की लागत सौ रूपये प्रति किलो तक लाया जा सकेगा। भारत में अभी 1.8 करोड़ टन ग्रे हाइड्रोजन या अमोनिया इस्तेमाल होता है जबकि मिशन के जरिए वर्ष 2030 से पांच करोड़ टन सालाना उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। कई निजी सेक्टर की कंपनियों की तरफ से इस सेक्टर में उतरने का ऐलान किया गया है। इन सभी के साथ केंद्र सरकार सामंजस्य बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके साथ ही सरकार की मंशा देश के विभिन्न हिस्सों में ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाने की है। इस बारे में जल्द ही घोषणा की जाएगी।
इलेक्ट्रोलाइजर्स और फ्यूल सेल्स का बड़े पैमाने पर करना होगा निर्माण
हाइड्रोजन व इलेक्टि्रक मोबिलटी पर शोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी डब्लूआरआइ के निदेशक पवन मुलुकुटला का कहना है कि भारत सरकार को उन देशों के साथ गहरे संबंध बनाने होंगे जिनके पास ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति करते हैं। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए इलेक्ट्रोलाइजर्स और फ्यूल सेल्स का निर्माण बड़े पैमाने पर करना होगा। इसके लिए एक पूरा सप्लाई चेन बनाना होगा। साथ ही हमें काफी ज्यादा जमीन की जरूरत होगी जहां रिनीवेबल ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को लगाया जा सके। उनका मानना है कि जमीन की दिक्कत एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ सकती है जिसको लेकर सरकार को काम करना होगा।
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