Red Planet Day 2022: भगवान शिव ने अंधक को किया था मंगल ग्रह के रूप में स्थापित, जानें- 28 नवंबर का महत्व
Red Planet Day 2022 मंगल ग्रह को लेकर वैज्ञानिक हर समय उत्साहित रहते हैं। चाहे वो मंगल पर भेजे गए पहले स्पेसक्राफ्ट के समय की बात हो या मार्स रोवर के मंगल पर उतरने का पल रहा हो।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। हमारे सोलर सिस्टम के चौथे ग्रह मंगल को लेकर वैज्ञानिकों और खगोल शास्त्रियों का उत्साह हमेशा से ही चरम पर रहा है। बीते 6 दशकों के दौरान दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों ने इस ग्रह को लेकर कई बड़े खुलासे किए हैं। इस ग्रह को लेकर कई तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं। जैसे- हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के अंश अंधक को जब अपने किए गए कृत्यों का अहसास हुआ, तो उसने भगवान शंकर से क्षमा मांगी थी। उसने ये वरदान भी मांगा कि उसे पृथ्वी से इतनी दूर भेज दिया जाए जहां पर उसकी परछाईं भी धरती पर न पड़ सके। इसके बाद भोलेनाथ ने अंधक को ब्रह्मांड में मंगल ग्रह के रूप में स्थापित किया था। मंगल के कई रहस्यों को दुनिया के सामने लाने में भारत ने भी अतुलनीय योगदान दिया है। भारत ने ही सबसे पहले मंगल पर पानी होने की बात कही थी। इसके बाद इस बात को दूसरे देशों की स्पेस एजेंसियों ने भी मान्यता दी थी।
क्यों खास है 28 नवंबर का दिन
मार्स, मंगल ग्रह, रेड प्लानेट और लाल ग्रह भी कहा जाता है, के लिए 28 नवंबर का दिन बेहद खास माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन पहली बार इस ग्रह के लिए कोई मिशन लान्च किया गया था। नासा का Mariner 4 स्पेसक्राफ्ट 28 नवंबर 1964 को लांन्च किया गया था। इसके बाद 28 नवंबर का दिन मार्स के लिए बेहद खास हो गया और इसको Red Planet Day के रूप में मनाया जाने लगा। मंगल ग्रह का जिक्र करते ही हमारे सामने एक ऐसा ग्रह आ जाता है जहां पर हवा नहीं है। जहां का वातावरण भी धूल भरा है। जमीन ऊबड़-खाबड़ है। इस प्लानेट पर लाखों किमी तक फैला रेगिस्तान है। यहां पर हड्डियां जमा देने वाला तापमान रहता है। इसके अलावा यहां पर हैं ज्वालामुखी और ग्रेंड कैन्यान जैसे हालात।
8 माह के सफर के बाद मंगल पर पहुंचा यान
नासा के Mariner 4 स्पेसक्राफ्ट आठ माह में लाखों किमी का सफर करने के बाद 14 जुलाई 1965 को इस ग्रह पर पहुंचा था। ये नासा ही नहीं बल्कि पूरी मानवजाति के लिए क बड़ी सफलता थी। अंतरिक्ष मिशन में ये किसी मील के पत्थर की ही तरह थी। इस ग्रह के ऊपर से उड़ते हुए इस यान ने वैज्ञानिकों को कई हैरतअंगेज जानकारियां उपलब्ध करवाई थीं। अरबों वर्ष पहले जब ये ग्रह असतित्व में आया था तब से अब तक इसमें कई तरह के बदलाव हुए हैं। इन वर्षों में इसका वातावरण पूरी तरह से खत्म हो गया। जहां कभी उफनता समुद्र हुआ करता था वो भी खत्म हो गया और इस पर मौजूद ज्वालामुखी भी शांत हो गए। वैज्ञानिक इस ग्रह को काफी कुछ धरती की ही तरह मानते हैं। इसकी वजह है कि यहां पर वैज्ञानिकों को मिट्टी में कभी पानी होने के सबूत मिले हैं।
मंगल के वातावरण में हैं कई तरह की गैस
ये ग्रह जहां ठंडा है वहीं गर्म भी है। इसके आसपास के वातावरण में कई तरह की गैस हैं, जैसे- आक्सीजन, कार्बनमोनोआक्साइड, हाइड्रोजन आदि। यहां की सबसे ऊंची चोटी Olympus Mons है। मंगल और पथ्वी में जो सबसे बड़ा अंतर है वो ये कि धरती का करीब दो तिहाई हिस्सा पानी में डूबा है वहीं मंगल पर ऐसा कुछ नहीं है। इसके अलावा धरती की तुलना में मंगल पर ग्रेविटी केवल 37 फीसद है। धरती पर जहां सूर्यास्त के समय कई रंग दिखाई देते हैं वहीं मंगल पर ये बिल्कुल उलट है। मंगल पर रात में नीला आसमान दिखाई देता है जबकि दिन में ये कुछ गुलाबी-लाल रंग का होता है।
मंगल पर नासा रोवर
मंगल पर नासा अब तक जो 5 सफल मिशन भेज चुका है उनमें से एक बेहद खास स्प्रिट और मार्स रोवर आपरचुनिटी (Spirit and Opportunity ), परसिवरेंस, क्यूरोसिटी रोवर और हेलीकाप्टर इंजेन्वेनिटी है। जून 2018 के बाद से इस रोवर से नासा के मिशन कंट्रोल को कोई संकेत नहीं मिल सके हैं। इसकी वजह है कि इसके सोलर पैनल पर अधिक धूल जमा होने से इसकी बैट्री पूरी तरह से डिस्चार्ज हो गई हैं। यही वजह है कि अब इसको मृत मान लिया गया है। इसके मृृत होने से पहले इस रोवर ने नासा को मंगल की कई अहम जानकारियां और फोटो उपलब्ध करवाई थीं।
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