जासूसी की असली दुनिया जेम्स बांड, बंदूक और लड़कियों जैसी नहीं : नरवाने
लेफ्टिनेंट जनरल नरवाने ने कहा कि जब जासूसी के बारे में सोचा जाता है तो आम तौर पर दिमाग में सिनेमा का चरित्र जेम्स बांड उभरता है लेकिन यह वैसा नहीं है।
पुणे, पीटीआइ। कोई भी सैन्य अभियान खुफिया एजेंसियों के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता है। जासूसी की दुनिया सिनेमा के चरित्र जेम्स बांड, बंदूक और लड़कियों जैसी नहीं है। यह बहुत कुछ जॉन ले कार के स्माइल उपन्यास जैसी होती है। यह बात वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ एवं नामित थल सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज नरवाने ने कही।
पूर्व पत्रकार नितिन गोखले की पुस्तक 'आरएन काव : भद्र जासूस' के विमोचन कार्यक्रम को लेफ्टिनेंट जनरल नरवाने ने संबोधित किया। काव रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पहले प्रमुख रहे थे।
लेफ्टिनेंट जनरल नरवाने ने कहा, 'सैन्य अभियान और खुफिया सूचनाओं का आपस में करीबी संबंध है। जब कभी हमें संचालन ब्रीफिंग की जरूरत होती है तब यह हमेशा ही यह 'खबर दुश्मन के बारे में' के साथ शुरू होती है। 'खबर' वह होती है जो हम अपनी खुफिया एजेंसियों से प्राप्त करते हैं।' उन्होंने कहा, 'मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हमारा कोई भी सैन्य अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक कि इसे रॉ सहित विभिन्न खुफिया एजेंसियों से सहायता नहीं मिली हो।'
लेफ्टिनेंट जनरल नरवाने ने कहा कि जब जासूसी के बारे में सोचा जाता है तो आम तौर पर दिमाग में सिनेमा का चरित्र जेम्स बांड उभरता है, लेकिन यह वैसा नहीं है।
लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, 'जब हम खुफिया कार्य के बारे में सोचते या बातचीत करते हैं तो हम सामान्य रूप से जेम्स बांड, बंदूक, लड़कियां, गिटार और ग्लैमर के बारे में सोचते हैं, लेकिन गुप्तचरी की दुनिया वैसी नहीं है। गुप्तचरी की दुनिया बहुत कुछ जॉन ले कार के स्माइल उपन्यास जैसी है।'
ब्रिटिश लेखक डेविड जॉन मूर कॉर्नवेल को उनके उपनाम जॉन ले कार के नाम से जाना जाता है। इसी नाम से उन्होंने जासूसी उपन्यास लिखकर ख्याति अर्जित की थी। 1950 से 1960 के बीच उन्होंने सिक्यूरिटी सर्विस (एमआइ5) और सीक्रेट इंटेलीजेंस सर्विस (एमआइ6) के लिए काम किया था।