महात्मा बुद्ध समान तेजस्वी और 'घुमक्कड़-शास्त्र' के प्रणेता थे राहुल सांकृत्यायन
पहनावे से तो वे साधारण किसान समान लग रहे थे लेकिन उनके मुखमंडल पर काफी तेज था। ऐसा प्रतीत होता था कि साक्षात महात्मा बुद्ध खड़े हों।
स्मिता। एक ऐसा यात्राकार, इतिहासविद, साहित्यकार, जिन्हें हिंदी साहित्य का महापंडित कहा जाता है- वे थे राहुल सांकृत्यायन। साथ ही उन्हें 'घुमक्कड़-शास्त्र' का प्रणेता भी माना जाता है, क्योंकि वे ज्ञानार्जन के लिए जीवन-भर भ्रमण करते रहे। उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका के अलावा, देश के सुदूर इलाकों की भी खूब यात्राएं की और उन पर अनेक किताबें लिखीं। कथाकार असगर वजाहत कहते हैं कि राहुल जी को मैंने कभी करीब से तो नहीं देखा, लेकिन उनका लिखा खूब पढ़ा। इसके आधार पर मैं यह दावा कर सकता हूं कि वे जनसाधारण को ध्यान में रख कर लिखते थे। दरअसल, वे भारतीय परंपरा और आधुनिकता का सम्मिश्रण करना चाहते थे। उनके लिखे जितने भी यात्रा वृत्तांत हैं, एक प्रकार से वे शास्त्र के समान हैं।
उनकी रचनाओं में समाज, देश के बारे में बहुत विस्तार से लिखा हुआ होता है।' लेखन में इतना विस्तार समाज, सभ्यता-संस्कृति, आम लोगों पर उनके सूक्ष्म अवलोकन के कारण आता था। उनके लेखन के मुरीद एक बुजुर्ग पाठक श्रीहरि चौहान बताते हैं कि मुझे याद है कि 'किन्नर देश में' किताब लिखने से पहले उन्होंने हिमाचल प्रदेश में तिब्बत सीमा पर कभी बस और घोड़े के सहारे, तो कभी कई बार उन्होंने पैदल भी यात्राएं की थीं। तभी तो उनकी यह किताब श्रेष्ठ यात्रा वृत्तांतों में से एक बन गई। कथाकार काशीनाथ सिंह उन्हें याद करते हुए कहते हैं, 'मैंने राहुल जी को कई बार देखा। उन्हें सुनने का अवसर भी मुझे मिला था। 68 में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय छात्रसंघ का उद्धाटन करने आए थे। वे छोटा कुर्ता-पाजामा पहने हुए थे।
पहनावे से तो वे साधारण किसान समान लग रहे थे, लेकिन उनके मुखमंडल पर काफी तेज था। ऐसा प्रतीत होता था कि साक्षात महात्मा बुद्ध खड़े हों। जैसा कि कुछ लेखकों ने उनके बारे में लिखा भी है। उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक और भव्य था, जबकि वे मधुमेह पीडि़त भी हो गए थे।' काशीनाथ सिंह दावा करते हैं कि उनकी जानकारी में राहुल जी इतना ज्ञानसंपन्न, भाषाविद और बड़ी संख्या में ग्रंथों को रचने वाला लेखक कोई दूसरा हिंदी में नहीं है। 'मेरी जीवन यात्रा(आत्मकथा)', 'वोल्गा से गंगा' और 'कनैला की कथा' उनकी सर्वोत्तम कृति हैं। राहुल जी लगभग 35 भाषाओं में लिख-पढ़ सकते थे।
असगर वजाहत कहते हैं कि उन्हें सिर्फ पर्यटक नहीं, बल्कि सोशल टूरिस्ट कहा जा सकता है, क्योंकि समाज से जुड़ा हुआ वे पर्यटन किया करते थे। उन्होंने जितनी भी यात्राएं की हैं, उन्हें भारत की सांस्कृतिक यात्राएं कहना ज्यादा मुफीद होग। उन्होंने लेखन के जरिए प्राचीन ग्रंथों को खोजा और अनुवाद के जरिये उन्हें आम लोगों के सामने लाया। असल में वे सिर्फ विद्वान ही नहीं, बल्कि एक तरह से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी थे।
राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा(ननिहाल) गांव में हुआ था। उनका पैैतृक गांव कनैला था, जिसके नाम पर उन्होंने किताब भी लिखी। बचपन में उनका नाम केदारनाथ पांडेय था। बौद्ध धर्म पर गहन शोध करने और दीक्षा लेने के बाद उन्होंने अपना नाम राहुल सांकृत्यायन रख लिया। आज उनकी जयंती है।