विदेशी कंपनियों से टेक्नोलॉजी लेने के एवज में कम होंगी रॉयल्टी की दरें
सरकार मान रही है कि बीते 25 वर्षों में रायल्टी की दरों में कई बार फेरबदल करके इसकी सीमा को बढ़ाया गया है।
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। सब कुछ ठीक रहा तो विदेशी कंपनियों से टेक्नोलॉजी लेने या उनके ब्रांड नाम का इस्तेमाल करने के एवज में भारतीय कंपनियों को बड़ी मात्रा में रायल्टी के भुगतान में राहत मिल सकती है। सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के तहत विदेशी कंपनियों को दी जाने वाली रॉयल्टी की दरों की सीमा में कमी के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इससे न केवल कंपनियों के पास छोटे घरेलू निवेशकों को लाभांश देने के लिए राजस्व बचेगा बल्कि ऐसे भुगतान के रूप में विदेशी मुद्रा के इस्तेमाल में भी कमी लायी जा सकेगी।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग यानी डीआइपीपी ने इस आशय का एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसमें पहले चार वर्ष के लिए रायल्टी की दर को घरेलू बिक्त्री के चार फीसद पर सीमित किया जा सकता है। इसी अवधि में निर्यात आय पर रायल्टी की दर को सात फीसद तय किया गया है। डीआइपीपी ने इस आशय का एक कैबिनेट नोट तैयार किया है जिस पर विभिन्न मंत्रालयों समेत कानून मंत्रालय की भी राय मांगी गई है।
सूत्र बताते हैं मौजूदा सरकार ने रॉयल्टी भुगतान पर सचिवों की एक समिति के एक अध्ययन से पाया कि जिन उत्पादों और टेक्नोलॉजी के एवज में विदेशी कंपनियों को रॉयल्टी का भुगतान किया जा रहा है उसका विदेशी मुद्रा भंडार पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है। समिति ने पाया कि रॉयल्टी का यह प्रावधान विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी सेंध लगा रहा है। लिहाजा समिति ने नीति में बदलाव का सुझाव दिया।
सरकार ने इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर अब रॉयल्टी की दरों में बदलाव का फैसला लिया है। डीआइपीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चूंकि ये बदलाव नीतिगत हैं इसलिए इन प्रस्तावों को संसद से मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।
सूत्रों के मुताबिक ट्रेडमार्क अथवा ब्रांड नाम के इस्तेमाल में दी जाने वाली रॉयल्टी के लिए घरेलू बिक्री के एक फीसद और निर्यात आय की दो फीसद राशि की अधिकतम सीमा तय करने का प्रस्ताव है। डिजाइन के इस्तेमाल पर करार की तारीख के बाद दस वर्ष तक की अवधि के लिए घरेलू बिक्री के एक फीसद और निर्यात आय के दो फीसद के बराबर रॉयल्टी तय करने का प्रस्ताव किया है।
सरकार मान रही है कि बीते 25 वर्षों में रायल्टी की दरों में कई बार फेरबदल करके इसकी सीमा को बढ़ाया गया है। 1991 में तैयार औद्योगिक नीति में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर वाले संयुक्त उद्यमों में एक करोड़ एकमुश्त रॉयल्टी भुगतान के साथ कुल घरेलू बिक्री के पांच फीसद और निर्यात आय पर 8 फीसद के रायल्टी भुगतान का प्रावधान किया गया था। यह भुगतान करार के अगले दस वर्ष की कुल बिक्री के आठ फीसद से अधिक नहीं होना चाहिए।
इसके बाद इस नीति में कई बार बदलाव हुआ। वर्ष 1996 में प्रेस नोट 4 के तहत ऑटोमैटिक मंजूरी वाले प्रस्तावों में एक करोड़ की सीमा को बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दिया गया। अंतत: वर्ष 2009 में रॉयल्टी भुगतान की नीति को बेहद उदार बनाते हुए रॉयल्टी भुगतान के लिए सरकारी मंजूरियों की आवश्यकता ही समाप्त कर दी गई। ऐसे सभी भुगतानों को विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून के नियमों के तहत ला दिया गया।
रॉयल्टी भुगतान का प्रस्तावित खाका
अवधि घरेलू बिक्री का प्रतिशत निर्यात का प्रतिशत
शुरुआती 4 वर्ष .. 4 7
अगले 3 वर्ष 3 6
अगले 3 वर्ष 2 4
इसके बाद प्रतिवर्ष 1 2