रैपिड टेस्टिंग किट से नहीं की जाएगी कोरोना की पुष्टि, संक्रमण का पता लगाने में नहीं है सौ फीसदी सफल
डॉक्टर गंगाखेड़कर के अनुसार एंटीबॉडी पर आधारित यह रैपिड टेस्ट 15 दिन बाद भी 20 फीसदी मामले में वायरस की उपस्थिति की सही जानकारी नहीं दे पाता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना की जांच के लिए रैपिड किट चीन से आ तो गया है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ वायरस के सर्विलांस के लिए किया जाएगा। किसी व्यक्ति में कोरोना की पुष्टि के लिए इसका उपयोग नहीं होगा। आइसीएमआर के डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर के अनुसार कोरोना के वायरस की पुष्टि में एंटीबॉडी आधारित यह किट प्रमाणिक नहीं है और इसके लिए पहले चले आ रहे आरटीपीसीआर किट का ही इस्तेमाल किया जाएगा।
जानिए क्या हैं रैपिड टेस्टिंग की सीमाएं
डॉक्टर गंगाखेड़कर ने रैपिड टेस्टिंग किट की सीमाएं बताते हुए कहा कि यह शरीर में वायरस के पहुंचने के बाद बनने वाले एंटीबॉडी की पहचान करता है। एंटीबॉडी की जांच कर यह बताता है कि किसी व्यक्ति के शरीर में कोरोना का वायरस पहुंचा था या नहीं। इसके लिए भी दो तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं। कुछ किट में आइजीएम प्रकार के एंटीबॉडी की पहचान की जाती है, तो कुछ किट में आइजीजी एंटीबॉडी देखा जाता है। कुछ किट दोनों की पहचान करते हैं। समस्या यह है कि शरीर में कोरोना वायरस से पहुंचने के बाद तत्काल बाद आइजीएम एंटीबॉडी बनता है। इससे यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति वायरस से ग्रसित हाल ही हुआ है। बाद में धीरे-धीरे आइजीएम एंटीबॉडी कम होने लगता है और उसकी जगह आइजीजी एंटीबॉडी स्थान ले लेता है। आइजीजी एंटीबॉडी से पता चलता है कि वायरस का संक्रमण पुराना है।
15 दिन बाद भी 20 फीसदी मामलों में नहीं मिल पाती सही जानकारी
डॉक्टर गंगाखेड़कर के अनुसार एंटीबॉडी पर आधारित यह रैपिड टेस्ट 15 दिन बाद भी 20 फीसदी मामले में वायरस की उपस्थिति की सही जानकारी नहीं दे पाता है। जबकि कोरोना के संक्रमण का तत्काल पता लगाकर संक्रमित रोगी को अलग-थलग करना जरूरी होता है। डॉक्टर गंगाखेड़कर के अनुसार रेड जोन वाले इलाके में रैपिड टेस्टिंग किट के सहारे बड़े पैमाने पर टेस्ट कर यह पता लगाना आसान होगा कि वहां कितने लोगों में यह वायरस फैल चुका है। ताकि उसी के अनुसार उसे नियंत्रित करने के लिए रणनीति तय की जा सके।
पुल टेस्टिंग को दी गई हरी झंडी
इसके अलावा आरेंज जोन वाले इलाकों में कोरोना वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए आइसीएमआर ने पुल टेस्टिंग को हरी झंडी दे दी है। इसके तहत पांच लोगों के सैंपल का टेस्ट एक साथ किया जाएगा। यदि पूरा सैंपल निगेटिव निकला तो पांचों को कोरोना मुक्त माना जाएगा। लेकिन पोजिटिव मिलने के बाद सभी पांचों सैंपल की अलग-अलग जांच कर उनमें संक्रमित व्यक्ति की पहचान की जाएगी। डॉक्टर गंगाखेड़कर ने कहा कि पूल टेस्टिंग का खर्च कम आएगा और यह कोरोना वायरस पर निगरानी में सटीक साबित हो सकता है। इसके साथ ही आइसीएमआर ने ग्रीन जोन वाले इलाके में भी सांस की तकलीफ और सदी-खांसी-जुकाम से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों का कोरोना टेस्ट अनिवार्य कर दिया है। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि गलती से कहीं कोरोना वायरस ग्रीन जोन में पहुंच तो नहीं गया है।
जानिए कैसे होती है पुल टेस्टिंग
इस परीक्षण के तहत एक साथ पांच लोगों के नाक और गले के स्वैब लिए जाते हैं और उनको मिक्स कर सैंपल बनाया जाता है। फिर इस सैंपल की जांच होती है, जिसमें पता लगाया जाता है कि सैंपल में कोरोना वायरस नेगेटिव या पॉजिटिव है। अगर सैंपल नेगेटिव आता है तो पांचों व्यक्तियों को संक्रमण मुक्त माना जाता है। अगर पॉजिटिव आता है तो बारी-बारी से पांचों व्यक्ति का कोरोना टेस्ट किया जाता है। इससे किट और लैब संबंधी आने वाली समस्या दूर हो जाएगी। इसके साथ ही कोरोना टेस्ट में तेजी भी आएगी।