मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अदालती यात्रा, 25 साल में गवाहियां भी नहीं हुई पूरी
लखनऊ की विशेष अदालत में कारसेवकों और नेताओं के खिलाफ साजिश रचने और भावनाएं भड़काने का मुकदमा चल रहा है।
नई दिल्ली (माला दीक्षित)। अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ढहाया गया था। इस साल 6 दिसंबर को ढांचा विध्वंस हुए 25 साल पूरे हो जाएंगे। लेकिन इन पचीस सालों में ढांचा विध्वंस के मुकदमे में फैसला आना तो दूर अभी गवाहियां भी पूरी नहीं हुई हैं। लखनऊ की विशेष अदालत में कारसेवकों और नेताओं के खिलाफ साजिश रचने और भावनाएं भड़काने का मुकदमा चल रहा है। जिसमें आजकल अभियोजन पक्ष की गवाहियां हो रही हैं। जिसके बाद बचाव पक्ष अपनी गवाहियां पेश करेगा और फिर अभियुक्तों के बयान के बाद अदालत संपूर्ण साक्ष्यों का आकलन करके फैसला सुनाएगी।
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने गत 19 अप्रैल को 13 नेताओं का मुकदमा रायबरेली से लखनऊ की विशेष अदालत स्थानांतरित करते समय रोजाना सुनवाई कर मुकदमे को दो साल के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की रोजाना सुनवाई चल रही है लेकिन गवाहों की सूची और मामले की जटिलता को देखते हुए तय समय में मुकदमा निपटना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर दिखता है। शुरुआत में ढांचा ढहने का मुकदमा सभी पर एक साथ लखनऊ की अदालत में चल रहा था बाद में नेताओं का मुकदमा रायबरेली की अदालत में चलने लगा और बाकी कारसेवकों का लखनऊ की विशेष अदालत में। रायबरेली में नेताओं पर चल रहे मुकदमें में साजिश के आरोप नहीं थे जबकि लखनऊ में कारसेवकों के खिलाफ चल रहे मुकदमें में साजिश के भी आरोप थे। गत अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं का मामला लखनऊ की विशेष अदालत स्थानांतरित करते हुए उन पर भी साजिश के आरोप में मुकदमा चलाने का आदेश दिया है।
आने वाला फैसला सभी हिंदुओं और मुसलमानों पर बाध्यकारी होगा
अयोध्या मामले अदालत का फैसला हिंदू और मुस्लिम समाज पर बाध्यकारी होगा। इसका कारण है कि 1963 में सुन्नी वक्फ बोर्ड के केस में सिविल जज फैजाबाद ने तय किया कि चारों सूट (मुकदमे) एक साथ चलेंगे और इसमें हिंदू और मुसलमानों के रिप्रेजेंटेटिव सूट भी होंगे। इसके बाद मुकदमे में दो पक्ष हो गए हिंदू और मुस्लिम। हिंदू और मुसलमानों की ओर से रिप्रेजेंटेटिव सूट के लिए सीपीसी के आर्डर वन रूल आठ के तहत नोटिफिकेशन जारी हुआ। उसके बाद अखबार में पब्लिक नोटिस छपा कि अगर कोई रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर आना चाहता है तो आ सकता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड मुसलमानों की तरफ से पक्षकार बन गये और सिविल जज फैजाबाद ने हिंदुओं की तरफ से हिंदू महासभा, सनातन सभा और आर्य समाज नई दिल्ली को पक्षकार बनाया। हरिशंकर जैन कहते हैं कि तब हिंदू महासभा पक्षकार बनी लेकिन पब्लिक नोटिस के बावजूद सनातन सभा और आर्य समाज नहीं आए। ऐसे में हिंदू महासभा हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रही है।
14 हजार पन्नों में गवाहियों का अनुवाद
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के गत 11 अगस्त के आदेश के अनुपालन में 14 हजार पन्नों का 49 वाल्यूम में गवाहियों का अनुवाद दाखिल किया है। हालांकि अभी कुछ गवाहियों का अनुवाद और दाखिल होना है जिसे 5 दिसंबर यानी आज तक दाखिल हो जाना चाहिए था। ये गवाहियां राम जन्मभूमि मुकदमे में हिंदी में दर्ज हुईं थीं जिसका अंग्रेजी अनुवाद सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है। इसके अलावा इस केस में आठ भाषाओं के दस्तावेजों का सुनवाई के दौरान हवाला दिया गया है। जिनमें हिंदी, पाली, संस्कृत, फारसी, गुरुमुखी आदि हैं। इन दस्तावेजों के अनुवाद पर कोर्ट ने कहा था कि जो पक्षकार जिस दस्तावेज पर भरोसा करना चाहता है वो उस दस्तावेज का अनुवाद दाखिल करेगा। इसलिए कई पक्षकारों जैसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, एन सिद्दीकी, वीएचपी, राजेन्द्र सिंह आदि की ओर से भी दस्तावेजों के अनुवाद दाखिल किए गए हैं। भगवान राम की ओर से भी पांच वाल्युम में दस्तावेजों का अनुवाद दाखिल किया गया है। कुछ पक्ष अभी अनुवाद दाखिल करने की तैयारी में हैं।
सुप्रीम कोर्ट में इनकी हैं अपीलें
-एम सिद्दीकी
-भगवान श्री राम विराजमान
-प्रेसीडेंट आल इंडिया हिंदू महासभा
-यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड
-अखिल भारत हिंदू महासभा
कमलेश तिवारी
-निर्मोही अखाड़ा
-मिसबहुद्दीन
-गोपाल सिंह विशारद
-अखिल भारतीय राम जन्मभूमि
पुनरुद्धार समिति
-सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ
-फारुख अहमद
-मौलाना महफूजर्रहमान
-मोहम्मद हाशिम
-शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड (इस अपील को अभी सिर्फ डायरी नंबर मिला है ये अपील में तब्दील नहीं हुई है)
दर्शन और पूजा अर्चना के बारे मे हैं ये याचिकाएं
-मोहम्मद हाशिम बनाम डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी
-देवकी नंदन अग्रवाल बनाम कमिश्नर फैजाबाद
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