राम मंदिर ट्रस्ट में 'देवताओं के वकील' को बड़ी जिम्मेदारी, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से हैं विभूषित
देवताओं के वकील यानि के. पराशरण को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।
नई दिल्ली, जेएनएन। 'देवताओं के वकील' यानि के. पराशरण को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। के. पराशरण को ट्रस्ट का सदस्य बनाने के साथ उनके दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित घर को ऑफिशियल ऑफिस बनाया गया है। ट्रस्ट की गतिविधियों को यहीं से संचालित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को संसद के बजट सत्र के दौरान राम मंदिर ट्रस्ट बनाए जाने की जानकारी दी थी।
के श्रीनंगम तमिलनाडु से हैं। इनका जन्म 9 अक्टूबर 1927 को हुआ था। के श्रीनंगम के पिता केशव अयंगर भी वकील थे, इसलिए वकालत उन्हें विरासत में मिली है। केशव अयंगर ने सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस की थी। हालांकि, श्रीनंगम पिता से कही आगे निकल गए। पराशरण ने साल 1958 में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी। श्रीनंगम 1983 से 1989 के बीच भारत के अटॉर्नी जनरल रहे। वह राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। पराशरण के तीन पुत्र मोहन, सतीश और बालाजी भी वकील हैं।
पराशरण ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में हिन्दू पक्षों की ओर से पैरवी की थी। इसलिए उन्हें 'देवताओं के वकील' भी कहा जाने लगा। केस की पैरवी के दौरान उन्होंने जो दलीलें दीं, उन्हें सुनकर लोग दंग रहे गए। अयोध्या मामले में उन्होंने स्कन्ध पुराण के श्लोकों का जिक्र करके राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की थी, जिसमें वह सफल भी रहे। अयोध्या जमीन विवाद का फैसला हिन्दू पक्षों के पक्ष में आया।
पराशरण पद्मभूषण और पद्मविभूषण से भी नवाजे जा चुके हैं। इसके बावजूद वह जमीन से जुड़े नजर आते हैं। रामसेतु के मामले में कोर्ट में दलील करते हुए कहा था- मैं अपने राम के लिए इतना तो कर ही सकता हूं। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमिटी में शामिल किया था। सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा के वकील भी पराशरण रहे हैं। पराशरण को भारतीय इतिहास, वेद पुराण और धर्म के साथ ही संविधान का व्यापक ज्ञान है। इसका पूरा इस्तेमाल वह कोर्ट में करते नजर भी आते हैं।
देश में आपातकाल की स्थिति के दौरान पराशरण तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे। 1983 से 1989 तक देश के अटॉर्नी जनरल के रूप में काम किया। 1992 में जब मुंबई निवासी मिलन बनर्जी को अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया था, तब पराशरण को ‘सुपर एजी’ के रूप में संदर्भित किया गया। संवैधानिक मामलों में सरकार के पास पराशरण ही सबसे अच्छा विकल्प रहे। सरकारें बदलीं, लेकिन पराशरण हमेशा सराहे गए। राम मंदिर ट्रस्ट में भी अब पराशरण को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है।
...जब मुख्य न्यायाधीश ने पूछा क्या आप बैठकर बहस करना चाहेंगे?
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक वाकया देखने को मिला, जिससे पराशरण की भगवान राम के प्रति आस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। रामलला की तरफ से अपना पक्ष रखने के लिए जैसे ही पराशरण अपनी सीट से खड़े हुए, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उनसे पूछा, ‘क्या आप बैठकर बहस करना चाहेंगे?’ इस पर उन्होंने कहा, ‘कोई बात नहीं। बार की परंपरा खड़े होकर ही बहस करने की है।’