चीन के खिलाफ आर्थिक जंग में अब महिला उद्यमी भी शामिल
चीन के खिलाफ आर्थिक जंग में अब महिला उद्यमी भी शामिल हो गई हैं। उन्होंने ठान लिया है कि वे प्रोडक्शन के लिए कच्चे माल से लेकर आगे तक कोई चीनी उत्पाद नहीं खरीदेंगी।
नई दिल्ली [यशा माथुर]। चीन के खिलाफ आर्थिक जंग में अब महिला उद्यमी भी शामिल हो गई हैं। उन्होंने ठान लिया है कि वे प्रोडक्शन के लिए कच्चे माल से लेकर आगे तक कोई चीनी उत्पाद नहीं खरीदेंगी। आपदा में अवसर ढूंढ़ लेने की कवायद को वे बहुत तेजी से आगे बढ़ा रही हैं। आत्मनिर्भर भारत बनाने में उनकी कोशिशें तेज हो गई हैं। चीनी उत्पाद कम जैसे अभियानों से वे अपना रास्ता बना रही हैं और तो और चीनी उत्पाद कम नहीं वे इन्हें बंद के बारे में सोच रही हैं..
उद्योगों के जरिए देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रही महिलाएं यह मानती हैं कि चीन ने हमारे यहां सस्ते सामान को भर दिया है और हमारे उद्योगों को नुकसान पहुंचाया है। अगर महिलाएं छोटे-छोटे उद्योगों पर फोकस कर लें तो आसानी से अपनी आजीविका कमा सकती हैं और आत्मनिर्भर बन सकती हैं।
डिमांड है मौका भी
वर्तमान में चीनी उत्पादों के प्रति लोगों की भावनाएं विद्रोही हो रही हैं और वहां से आने वाले कई प्रकार के सामान अब बाजार में आ भी नहीं रहे हैं। ऐसे में मार्केट में मांग बढ़ रही है और महिला उद्यमियों के पास इसे पूरा करने का सुनहरा मौका है। ऐसा मानना है पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट व केजीएस एडवाइजर्स की सीईओ तृप्ति सिंघल सोमानी का। तृप्ति वुमेनोवेटर की को-फाउंडर भी हैं।
इसके जरिए महिला उद्यमियों को मेंटर करती हैं, उन्हें वित्तीय सलाह देती हैं और विभिन्न प्लेटफार्मों और सरकारी योजनाओं से उन्हेंं जोड़कर उनके सशक्तीकरण को सुनिश्चित करती हैं। तृप्ति कहती हैं, इस समय महिलाएं जो भी प्रोडक्ट बना रही हैं उसे उन्हें बेचने के अच्छे अवसर मिलेंगे, जैसे चीन से छतरियां बनकर आती थीं, इन्हें हमारे देश की महिलाएं आसानी से बना सकती है। इनकी फैक्ट्री लगा सकती हैं। महिलाएं छोटे उद्योग बहुत जल्दी और फोकस के साथ शुरू कर सकती हैं। डिमांड तो है, लेकिन सप्लाई बंद हो गई है। यह बहुत अच्छा मौका है। हमें चीनी उत्पाद कम ही नहीं करने, चीनी उत्पाद बंद करने की बात कर रहे हैं हम।
विदेशी पर निर्भर नहीं
बहुत सी महिला उद्यमी ऐसी हैं, जो कामगार महिलाओं के हाथ से बने सामान को खरीदती हैं और अपना व्यवसाय चलाती हैं। इससे महिलाओं द्वारा महिलाओं को सशक्त करने का भरोसा पैदा होता है और विदेशी सामान पर निर्भरता नहीं रह जाती है। कौनसीअर्ज की फाउंडर मीनू मैगोन ने करीब सात साल पहले कॉरपोरेट गिफ्टिंग से अपना व्यवसाय शुरू किया था, लेकिन अब काफी चीजें खुद डिजाइन करके मैन्यूफैक्चर भी करती हैं।
मीनू ऐसी महिलाओं से सामान बनवाती हैं जिन्हें आर्थिक सहायता की जरूररत है। वे चीनी उत्पाद खरीदने के चक्कर में कभी रही ही नहीं। देशी प्रोडक्शन है उनका। वह कहती हैं, हम विभिन्न एनजीओ से भी काम करवाते हैं और उनके हैंडमेड प्रोडक्ट खरीदते हैं। हमारा सारी चीजें देसी ही होती हैं। हम ओल्ड एज होम में रहने वाली महिलाओं से लड्डू बनवा लेते हैं। उन्हें सामान देते हैं तो वे हमारे लिए पैकेजिंग भी करती हैं। ग्रामीण महिलाओं को हम अपने डिजाइन देकर सिलाई करवाते हैं। होम डेकोर की चीजें भी हम अपनी डिजाइन से बनवाते हैं। इस तरह महिलाओं को आॢथक संबल देते हैं।
सरकार से मिल रहा सपोर्ट
चीन से सामान की आवाजाही प्रभावित होने से फैशन इंडस्ट्री को थोड़ी मुश्किल आई है, लेकिन कोई इससे आहत नहीं है। फैशन हाउसेज ने भारतीय सामानों से अपने परिधान बनाने शुरू कर दिए हैं। वेंडी मेहरा अपने उपक्रम स्टडीबाईजनक के तहत महिलाओं और पुरुषों के लिए फैशनेबल परिधान बनाती हैं। पुरुषों की शट्र्स से लेकर शेरवानी तक और महिलाओं के ऑफिस में पहनने वाले कपड़ों से लेकर ब्राइडल लहंगे तक वह बनाती हैं।
वह आपदा में उभरे अवसरों की बात करते हुए कहती हैं, सरकार अब हर क्षेत्र में महिला उद्यमियों को अलग से सपोर्ट दे रही है, जो महिलाएं कुछ खास उत्पाद बेचना चाहती थीं उन्हें उचित कीमत पर पेट्रोल पंपों पर भी जगह दी गई, जो काम करना चाहती हैं उनके लिए बहुत अवसर है। हमें वुमेनोवेटर भी बहुत मदद करता है। इसकी वेबसाइट पर उभरती हुईं उद्यमी अपने प्रोडक्ट डाल सकती हैं। जिनके पास बैकअप नहीं है इसके जरिए उन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है।
सरकार सूची उपलब्ध करा दे
तृप्ति सिंघल सोमानी (सीईओ केजीएस एडवाइजर्स, को-फाउंडर वुमेनोवेटर) का कहना है कि हमें सही कीमत पर क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने होंगे, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि हमें पता हो कि कौन-कौन से प्रोडक्ट ऐसे हैैं, जिनका उत्पादन भारतीय बाजार के लिए किया जा सकता है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इनकी सूची बनवाए और सार्वजनिक करे कि कौन से उत्पाद हम चीन से आयात कर रहे थे। इसके बाद यह भी बताए कि उस चीज के हमारे भारतीय उत्पाद कौन से हैं। हमें चीजें लेनी हैं तो हमें विकल्प पता होने चाहिए।
सरकार ने प्रोडक्ट का ओरिजिन डालने के लिए कह दिया है, लेकिन अभी इसमें और काम करने की जरूरत है। हम कह तो रहे हैं कि चीन का माल नहीं खरीदेंगे, लेकिन इस स्थिति को प्राप्त करने में बहुत सी बातें सोचनी पड़ेंगी। स्वदेशी अभियान कोई नई बात नहीं है हम बहुत सालों से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कर नहीं पा रहे। इस समय जो मूवमेंट शुरू हुआ है वह वास्तव में सामने आए। इसके लिए हमें क्या करना होगा? यह जानने की जरूरत है।
सब कुछ बन रहा है यहीं
मीनू मैगोन (फाउंडर, कौनसीअर्ज) बताती हैं कि हमने कभी चीनी सामान नहीं खरीदे। हम तो निर्यात करने की स्थिति में हैं। पिछले दो सालों से हम कैंडल प्रोडक्शन में निर्यात का प्रयास कर रहे हैं। हम चीनी सामानों को सपोर्ट नहीं करते। हमारा सब सामान यहीं बन रहा है तो हम यहीं से क्यों न खरीदें? क्यों नहीं महिला उद्यमियों और ग्रामीण कामगारों को सपोर्ट दें। हम कॉरपोरेट गिफ्ट्स में कुछ यूनीक प्रोडक्ट बना रहे हैं, जो आज के समय में प्रयोग किए जा सकें, जैसे मास्क और इम्युनिटी बढ़ाने की चीजें जैसे हल्दी चाय, अदरक चाय, ज्वार, बाजरा के लड्डू आदि। हम भारतीय उत्पादों को ही प्रमोट करते आए हैं।
अब चीन से सामान नहीं लाते
वेंडी मेहरा ( डायरेक्टर, स्टडीबायजनक) पुराने समय की बात याद करते हुए बताती हैं कि पहले कढ़ाई का सारा सामान हम चीन से लाते थे। साल में दो बार चीन जाते थे। स्वरोस्की क्रिस्टल्स, कढ़ाई का अन्य सामान और फैब्रिक्स हम चीन से ही लाते थे। चाइनीज रेट पर यह सामान और कहीं नहीं मिलता। दूसरे, वहां वैराइटी इतनी है कि आंखें खुली रह जाती हैं। हर कैटेगरी के फैब्रिक्स का पूरा शहर बसा है। इस समय चीन के सामान के प्रति हम रोष जता रहे हैं, लेकिन हमें उनसे सीखने की जरूरत है।
जब वे यहां तक पहुंच सकते हैं तो हम क्यों नहीं? पहले हम चीन से फैब्रिक लाते थे, लेकिन अब हम सारा सामान यहीं से खरीदते हैं। क्योंकि हमें लगता है कि चाहे थोड़े ज्यादा दामों पर सही, लेकिन हमें स्थानीय सामानों को ही बिजनेस देना चाहिए। हमें चीन को एक उदाहरण के तौर पर लेकर अपने देश को मजबूत बनाना होगा। चीन ने अपने उद्यमियों को काफी सुविधाएं दी हैं। भारतीयों में इतना दिमाग है कि हम कभी पीछे नहीं रहेंगे। हमारे देश में बहुत पोटेंशियल है। अगर सरकार सपोर्ट करे तो तरक्की हमारे देश की ही होगी।