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Rajpath New Name: गुलाम मानसिकता से मुक्ति की पहल वर्तमान सरकार की प्राथमिकता

यदि शीर्ष नेतृत्व हमें अपनी संस्कृति से परिचित कराने का प्रयास कर रहा है तो इसमें बुराई क्या है? गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिह्नों को छोड़ राष्ट्र के प्रति गौरव का बोध कराने वाले विषयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता गलत नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 08 Sep 2022 04:42 PM (IST)Updated: Thu, 08 Sep 2022 04:42 PM (IST)
Rajpath New Name: गुलाम मानसिकता से मुक्ति की पहल वर्तमान सरकार की प्राथमिकता
Rajpath New Name: गुलाम मानसिकता से आजादी

देवेंद्रराज सुथार। गुलाम मानसिकता से मुक्ति की पहल वर्तमान सरकार की प्राथमिकता रही है। इसलिए सरकार शहरों, स्टेशनों, प्रतीकों, स्मारकों और ऐतिहासिक धरोहरों को भारतीयता की भावना के अनुरूप नाम देकर सार्थक संदेश देती रही है। इसी क्रम में अब दिल्ली के राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ किया जाना औपनिवेशिक अतीत से मुक्ति की पहल है। राजपथ गुलाम मानसिकता का प्रतीक है। राजाओं का पथ अब जब कर्तव्यपथ में तब्दील हो गया है तो कहीं न कहीं यह समूचे भारतवासियों को अपने कर्तव्यों की याद दिलाता रहेगा। अब कर्तव्यपथ पर चलते हुए नेताओं को राज के बजाय कर्तव्य की भावना का अहसास होगा।

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पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मूल कर्तव्यों को लेकर अहम बात कही थी कि हम सभी को देश के हर नागरिक के हृदय में एक दीया जलाना है-कर्तव्य का दीया। हम सभी मिलकर देश को कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ाएंगे तो समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाई पर भी पहुंचेगा। उल्लेखनीय है कि राजपथ को ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था। इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक जाने वाली इस सड़क के दोनों तरफ गार्डन हैं। तब इसे राष्ट्रपति भवन से नए शहर का दृश्य प्रस्तुत करने के लिए बनाया गया था, जो उस समय वायसराय का हाउस था।

आजादी के बाद इसे राष्ट्रपति भवन कहा जाने लगा। राजपथ को पहले किंग्सवे कहा जाता था, क्योंकि जार्ज पंचम के सम्मान में इसे यह नाम दिया गया था। हमें मानना होगा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में हमारे समाज में, हमारे राष्ट्र में एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। ये बुराई है अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि नहीं रखना, क्योंकि बीते 75 वर्षों में हमने सिर्फ अधिकारों की बात की। अधिकार की बात, कुछ हद तक, कुछ समय के लिए, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है, लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इस बात ने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। हमारे देश में राजनीति की जगह जननीति होनी चाहिए।

राजनीति राजतंत्र का द्योतक है जबकि जननीति जनतंत्र या लोकतंत्र का प्रतीक है। इसी तरह राजनेता की जगह जननेता होने चाहिए। इंडिया और भारत हमारे देश के दो आधिकारिक नाम हैं जबकि भारत एकमात्र आधिकारिक नाम होना चाहिए। नाम बदलने को लेकर राजनीति की गर्माहट कोई नया विषय नहीं है, लेकिन गुलामी के थोपे गए नामों से मुक्त होने का काम सरकार कर रही है तो यह विरोध का नहीं, बल्कि हर किसी के लिए गर्व का विषय है। दिक्कत तो यह है कि गुलामी की मानसिकता ने हमारे बीच गहरी पैठ बना ली है, जिससे अब मुक्त होना जरूरी है।

यूं तो कहा जाता है कि ऐतिहासिक स्थल के किसी भी भाग से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए, लेकिन भारत के मामले में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूनानी, तुर्की, मुगल ये सभी वे लोग थे, जिन्होंने न केवल भारत पर आक्रमण किया, बल्कि हमारी खुशहाल संस्कृति को भी नष्ट कर दिया। ऐसे में यदि शीर्ष नेतृत्व हमें अपनी संस्कृति से परिचित कराने का प्रयास कर रहा है तो इसमें बुराई क्या है? गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिह्नों को छोड़ राष्ट्र के प्रति गौरव का बोध कराने वाले विषयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता गलत नहीं है।

(लेखक लोक नीति विशेषज्ञ हैं)


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