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Wildlife Tourism: सैलानियों की पहली पसंद बना ये टाइगर रिजर्व, तीन गुना हुए बाघ

यहां बाघों की संख्या बढ़ने से वह अब आसानी से दिख जाते हैं। ये पार्क एशियाई हाथियों के लिए भी प्रसिद्ध है। लिहाजा यहां दो साल में पर्यटकों की संख्या भी दो गुनी से ज्यादा हो चुकी है।

By Amit SinghEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 10:53 AM (IST)Updated: Sun, 25 Nov 2018 10:53 AM (IST)
Wildlife Tourism: सैलानियों की पहली पसंद बना ये टाइगर रिजर्व, तीन गुना हुए बाघ
Wildlife Tourism: सैलानियों की पहली पसंद बना ये टाइगर रिजर्व, तीन गुना हुए बाघ

देहरादून [केदार दत्त]। वन्यजीवों और प्राकृतिक सौंदर्य के पर्यटन के लिए उत्तराखंड देश व दुनिया में मशहूर है। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है राजाजी नेशनल पार्क, जो एशियाई हाथियों के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। राजाजी नेशनल पार्क का टाइगर रिजर्व भी पिछले कई सालों से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। एशियाई हाथियों की इस प्रमुख सैरगाह में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है।

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राजाजी नेशनल पार्क स्थित टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण को लेकर हुए प्रयासों का नतीजा है कि पिछले साल हुई गणना में यहां बाघों की संख्या में काफी इजाफा दर्ज किया गया है। करीब साढ़े तीन साल पहले रिजर्व के गठन के वक्त यहां केवल 13 बाघ थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 34 से ज्यादा हो गई है। राजाजी नेशनल पार्क प्रबंधन का अनुमान है कि जिस तरह से यहां बाघों का कुनबा बढ़ रहा है, उससे उम्मीद है कि अगले साल होने वाली बाघों की सार्वजनिक गणना में इनकी संख्या 50 का आंकड़ा पार कर जाएगी।

राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक सनातन बताते हैं कि राजाजी रिजर्व में बाघ संरक्षण के मद्देनजर वासस्थल विकास पर खास फोकस किया गया और यह सिलसिला जारी है। वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पेट्रोलिंग को जीपीएस से जोड़ा गया है और जल्द ही मोबाइल एप के जरिये भी इसके लिए कोशिशें चल रही हैं। रिजर्व से लगे क्षेत्रों के गांवों की पर्यटन गतिविधियों में भागीदारी की गई है। इन प्रयासों के अच्छे नतीजे सामने आए हैं।

 अन्य वन्यजीवों की स्थिति में भी सुधार
राजाजी नेशनल पार्क प्रबंधन के अनुसार यहां केवल बाघ ही नहीं, बल्कि दूसरे मांसाहारी और शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है। यही वजह है कि टाइगर का दीदार करने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ी है। पर्यटक यहां के टाइगर रिजर्व को काफी पसंद कर रहे हैं। ऐसे में जिन उद्देश्यों को लेकर यह रिजर्व बना था, उस पर वह खरा उतरता नजर आ रहा है।

ऐसे बना यहां टाइगर रिजर्व
विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क की भांति राजाजी नेशनल पार्क में भी बाघों के लिए मुफीद वास स्थल है। राजाजी के विभिन्न रेंजों में बाघों की मौजूदगी काफी समय से रही है। बाद में विभिन्न कारणों से यह चीला व गौहरी रेंजों तक सिमट गई। इसे देखते हुए राजाजी में बाघ संरक्षण के मद्देनजर टाइगर रिजर्व बनाने पर जोर दिया गया था। लंबी जद्दोजहद के बाद 20 अप्रैल 2015 को राजाजी टाइगर रिजर्व का विधिवत ऐलान हुआ था।

1000 वर्ग मीटर से बड़ा है क्षेत्रफल
टाइगर रिजर्व में राजाजी नेशनल पार्क के 820.42 वर्ग किमी के कोर और हरिद्वार व लैंसडाउन वन प्रभागों के 254.75 वर्ग किमी के हिस्से को मिलाकर बतौर बफर क्षेत्र शामिल किया गया। इसके बाद राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण के प्रयासों में तेजी आई और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इसमें भरपूर सहयोग दिया। परिणाम स्वरूप वहां बाघों की संख्या में इजाफा होने लगा। अब तो चीला व गौहरी के साथ ही रवासन और श्यामपुर रेंजों में भी बाघों की ठीक-ठाक मौजूदगी है। राजाजी में बाघों का कुनबा बढ़ने के साथ ही मांसाहारी और शाकाहारी दोनों श्रेणी के वन्यजीवों की संख्या में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

सैलानियों को आसानी से दिखने लगे हैं बाघ
राजाजी पार्क के चीला पर्यटक जोन में बाघों की संख्या अच्छी खासी है और अब तो ये सैलानियों को भी आसानी से नजर आते हैं। यही कारण है कि अब रिजर्व में आने वाले सैलानियों की संख्या ठीक-ठाक है। रिजर्व बनने से पहले जहां पार्क में 20-22 हजार पर्यटक सालाना आते थे। ये आंकड़ा अब 40 से 50 हजार तक पहुंच चुका है। पर्यटन के जरिये पिछले दो साल से सालाना करीब एक करोड़ की आय हो रही है।

वन्यजीवों के संरक्षण के लिए ये उठाए गए कदम

  • एनटीसीए से सालाना मिलने वाली लगभग पांच करोड़ की राशि का अधिकांश हिस्सा मॉनीटरिंग व पेट्रोलिंग पर खर्च होता है।
  • रिजर्व के अंतर्गत वास स्थलों के विकास पर किया गया खास फोकस।
  • जंगल में डेरा डाले वन गूजरों के पुनर्वास को तेजी से कदम उठाए गए।
  • शाकाहारी जानवरों के लिए चारे का काम करने वाले पौधे लगाए गए।
  • सुरक्षा के मद्देनजर जगह-जगह लगाए गए कैमरा ट्रैप।
  • रिजर्व से लगे क्षेत्रों में इको डेवलपमेंट कमेटियों का गठन हुआ।
  • पर्यटन संबंधी गतिविधियों में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की गई।

अभयारण्य से रिजर्व तक का सफर
देहरादून, हरिद्वार और लैंसडाउन वन प्रभागों के हिस्सों को मिलाकर बने राजाजी टाइगर रिजर्व का अब तक सफर भी काफी रोचक रहा है। दरअसल, सबसे पहले 1936 में हरिद्वार के नजदीक मोतीचूर अभयारण्य की स्थापना हुई थी। इसके बाद 1948 में इसके नजदीक ही राजाजी अभयारण्य और फिर 1977 में चीला अभयारण्य अस्तित्व में आया। तीनों अभयारण्य आसपास होने पर इन्हें मिलाकर नेशनल पार्क बनाने की ठानी। इसके बाद वर्ष 1983 में राजाजी नेशनल पार्क अस्तित्व में आया। 2015 में इसका दायरा बढ़ाकर राजाजी टाइगर रिजर्व बनाया गया।

राष्ट्रीय पशु को बचाने के लिए चल रहा प्रोजेक्ट बाघ
बंगाल टाइगर को 46 साल पहले (18 नवंबर 1972) भारत का राष्ट्रीय पशु चुना गया था। राष्ट्रीय पशु घोषित करने के बाद इन्हें और अन्य विलुप्त प्राय वन्य जीवों के संरक्षण के लिए 1972 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए 1973 में देश में प्रोजेक्ट बाघ बनाया गया। इसके तहत वर्तमान में, भारत के 17 राज्यों में 49 बाघ रिज़र्व केंद्र बनाए गए हैं। यहां शिकार के खतरे को खत्म करने के लिए सख्त शिकार विरोधी नियम और समर्पित टास्क फोर्स स्थापित की गई। इससे इनके अवैध शिकार पर लगाम लगाने में काफी मदद मिली, जिससे उनकी संख्या में इजाफा हो रहा है।

बाघों की प्रजातियां व मौजूदा संख्या
सुमात्रा टाइगर: सुमात्रा टाइगर की संख्या 400 बची हैं। ये टाइगर इंडोनेशिया के जावा आइलैंड और उसके आस-पास पाए जाते हैं।
अमूर टाइगर: इन्हें साइबेरियन टाइगर भी कहते हैं। इनकी संख्या 540 हैं। दक्षिण-पूर्वी रूस, उत्तर-पूर्वी चीन में पाए जाते हैं।
बंगाल टाइगर: भारत, नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार में पाए जाते हैं। इनकी कुल संख्या 3891 है।
इंडो चीन टाइगर: इंडो चीन टाइगर की संख्या केवल 350 बची हैं। यह थाईलैंड, चीन, कंबोडिया, म्यांमार, विएतनाम जैसे देशों में पाए जाते है।
साउथ चीन टाइगर: दक्षिण-पूर्वी चीन में पाई जाने वाली ये प्रजाति विलुप्त हो चुकी है।
(दुनिया में बाघों की कुल आठ प्रजातियां थीं। माना जाता है कि इनमें से तीन प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।)

2022 तक दोगुनी होगी बाघों की संख्या
एक दशक पहले तक विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके बाघों की संख्या भारत में निरंतर बढ़ रही है। पिछले छह साल में ही भारत में बाघों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है। अक्टूबर 2012 में हुई बाघों की गणना के अनुसार उस वक्त देश में बाघों की संख्या मात्र 1706 थी। 2012 में देश के 41 टाइगर रिजर्व में जनवरी से सितंबर के दौरान 69 बाघों की मृत्यु हुई थी। इनमें से 41 की मृत्यु अवैध शिकार या दुर्घटनाओं में हुई थी। 28 बाघों की मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई थी। वर्ष 2016 की जनगणना में 17 राज्यों की 49 सेंचुरी में बाघों की संख्या बढ़कर 2226 पहुंच चुकी थी। वर्तमान में दुनिया भर में बाघों की जनसंख्या तकरीबन 6000 है। इनमें से 3891 बाघ (लगभग 70 फीसद) भारत में हैं। सरकार ने वर्ष 2022 तक बाघों की इस जनसंख्या को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया है।


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