खरगोश का पराक्रम देख राजा ने अक्षय तृतीया के दिन बसाई थी बस्तर की राजधानी
बस्तर रियासत की राजधानी आज से 246 साल पहले अक्षय तृतीया के दिन ही जगदलपुर स्थानांतरित की गई थी। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
हेमंत कश्यप, जगदलपुर। आदिवासी बाहुल्य बस्तर की संस्कृति और परंपराओं की तरह यहां का इतिहास भी रोचक है। बस्तर रियासत की राजधानी आज से 246 साल पहले अक्षय तृतीया के दिन ही जगदलपुर स्थानांतरित की गई थी। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। हालांकि इसका कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है, लेकिन जनस्रुति है कि तत्कालीन राजा दलपत देव अपने घुड़सवारों के साथ दक्षिण बस्तर में इंद्रावती नदी के किनारे स्थित ग्राम जगतूगुड़ा पहुंचे थे। यहां उन्होंने देखा कि एक खरगोश उनके शिकारी कुत्ते को आक्रामक मुद्रा में दौड़ा रहा है। उन्होंने सोचा कि इस मिट्टी में जरूर ही पराक्रम है, तभी एक खरगोश भी यहां अपने से ताकतवर कुत्ते को खदेड़ने की क्षमता रखता है। इसके बाद उन्होंने यहीं राजधानी बसाने का निश्चय किया।
जगतू के नाम पर रखा राजधानी का नाम
तब जगतूगुड़ा 11 झोपड़ी वाला एक छोटा सा गांव था। आबादी बमुश्किल 60 लोगों की थी। दलपत देव ने जगतूगुड़ा के जगतू माहरा से राजधानी बनाने के लिए जमीन मांगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि नई राजधानी बनेगी तो उसमें जगतू का नाम शामिल रहेगा। जगतू ने अपनी 600 एकड़ जमीन दे दी। इसके बाद जगतूगुड़ा और धरमूगुड़ा दो बस्तियों को मिलाकर जगदलपुर बसाया गया। जगदलपुर में 'जग' शब्द जगतू माहरा के नाम से लिया गया और राजा दलपत देव के नाम से 'दल' शब्द समाहित किया गया।
दो साल में राजमहल बनकर तैयार
दो साल में राजमहल बनकर तैयार हुआ। इसमें राज परिवार का निवास, राज दरबार, घुड़साल, कर्मचारी आवास आदि सबकुछ बनाया गया। इससे पहले तक बस्तर की राजधानी बस्तर में थी। राजा दलपत देव का काफिला वर्ष 1774 गुरुुवार, अक्षय तृतीया के दिन सैनिकों की निगरानी में बस्तर से रवाना हुआ। यह काफिला लगातार तीन घंटे की यात्रा के बाद जगतूगुड़ा पहुंचा था। राजा दलपत देव की सात रानियां थीं। पटरानी से उनका एक ही पुत्र था अजमेर सिंह। पटरानी रामकुंवर चंदेलिन कांकेर राजा के पुत्री थीं।
नागवंशी राजा को किया था पराजित
बस्तर के इतिहासकार स्व. केएल श्रीवास्तव ने अपनी किताब जगतूगुड़ा की विकास यात्रा में जगदलपुर के राजधानी बनने का वर्णन किया है। वर्ष 1313 ईस्वी में प्रताप रद्र देव के अनुज नामदेव वारंगल छोड़कर बीजापुर होते हुए बारसूर पहुंचे थे। उन्होंने यहां के अंतिम नागवंशी नरेश हरिश्चंद्र देव को पराजित कर वैशाख शुक्ल अष्टमी दिन बुधवार वर्ष 1314 बस्तर की गद्दी संभाली थी। वर्ष 1314 के बाद यहां के राजाओं की राजधानी दंतेवाड़ा, मधोता, कुरूषपाल, राजपुर, बड़े डोंगर, चीतापुर, राजनगर और बस्तर रही। वर्ष 1721 में राजा दलपत देव सिंहासनारढ़ हुए। उन्होंने वर्ष 1721 से लेकर 1774 तक राज किया।