रायसीना डायलॉग से बढ़ा विश्व स्तर पर भारत का रसूख, वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक पहुंच
रायसीना डायलॉग की शुरुआत भारतीय विदेश मंत्रालय और आब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन ने वर्ष 2016 में की थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रायसीना डॉयलाग 2019 गुरुवार को समाप्त हो गया। 95 देशों के 600 से ज्यादा प्रतिनिधियों के बीच तमाम वैश्विक मुद्दों पर जो चर्चाएं हुई उसका एक ही लब्बो लुआब है कि भारत अब कूटनीतिक क्षेत्र में एक वैश्विक लीडर है। अमेरिका और रूस जैसे भारत के नए व पुराने सहयोगियों को छोड़ भी दें तो यूरोपीय संघ व दक्षिण अमेरिकी देशों की तरफ से जिस तरह से इसमें प्रतिनिधित्व किया है उसका यह भी संकेत है कि भारत की ना सिर्फ कूटनीतिक पहुंच बढ़ी है बल्कि कई देश अब चाहते हैं कि भारत आगे आ कर वैश्विक भूमिका निभाये। भारत के विदेश सचिव विजय गोखले गुरुवार को इस कार्यक्रम के एक सत्र को संबोधित करते हुए यह कहा भी कि, दुनिया में नियम सम्मत व्यवस्था बनाने में भारत निश्चित तौर पर अपनी भूमिका निभाएगा।
रायसीना डायलॉग की शुरुआत भारतीय विदेश मंत्रालय और आब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन ने वर्ष 2016 में की थी। इस वर्ष इसका दायरा जितना बढ़ा है वह इसके आयोजकों के लिए भी संभवत: उम्मीद से ज्यादा है। पहले उम्मीद थी कि वर्ष 2019 में 65 देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे लेकिन बाद में यह बढ़ कर 90 हुआ और जब कार्यक्रम का समापन हुआ तो आयोजकों ने बताया कि 95 देशों के 600 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। चाहे अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वार का मुद्दा हो, या हिंद-प्रशांत महासागर में बदल रहा माहौल हो या यूरोपीय संघ में चल रही रस्सा-कस्सी हो, हर मुद्दे पर यहां अलग अलग चर्चाएं हुई। नार्वे की पीएम एरना सोल्बर्ग ने जब उद्घाटन भाषण दिया तो उनके सामने पीएम नरेंद्र मोदी भी बैठे थे।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश सचिव गोखले ने जहां भारत की भावी कूटनीति का लेखा जोखा पेश किया तो आस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री सुश्री मारीस पायने, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावाली और ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ जैसे नेताओं के मंत्रिस्तरीय भाषण ने पूरे कार्यक्रम की गरिमा को नया मुकाम दिया। जिस कार्यक्रम को भारत और अमेरिका के साझा कूटनीतिक पहल के तौर पर देखा जा रहा हो उसमें भारत ने ईरान के विदेश मंत्री को अपनी बात रखने का मौका दे कर यह भी स्पष्ट किया कि वह इस पूरे आयोजन को एकतरफा रखने के पक्ष में नहीं है।
तीन दिनों तक चले इस आयोजन के कई सत्र परोक्ष तौर पर चीन को निशाने पर लेने वाले रहे। नार्वे के पीएम के भाषण से लेकर भारतीय विदेश सचिव के भाषण तक में जिस तरह से हर देश को अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने की नसीहत दी गई उसके संकेत समझना कोई बड़ी बात नहीं है। रही सही कसर एक सत्र में भारत, जापान, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिकी नौ सेना के प्रमुखों का एक मंच साझा करने से साफ हो गई। इसे चार देशों के गठबंधन में फ्रांस को शामिल करने के संकेत के तौर पर भी देखा गया।
कहने की जरुरत नहीं कि हिंद-प्रशांत का मुद्दा पूरे कार्यक्रम के दौरान छाया रहा। लेकिन वैश्विक मुद्दों की गहमा गहमी के इस माहौल में वैसे मुद्दे पीछे नहीं छूटे जो एक बड़ी आबादी को छू रहे हैं। मसलन, सोशल मीडिया की भूमिका या पर्यावरण व विकास के बीच सामंजस्य बनाने का मुद्दा। एक सत्र में अगर यूरोपीय संघ के भविष्य पर गंभीर चर्चा हुई जिसमें इटली के पूर्व पीएम, स्पेन की विदेश मंत्री जैसे शख्सियतें शामिल हुई।