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बोझ उठाती हैं ये महिलाएं, ताकि अज्ञानता का अंधियारा छंट सके

रायपुर रेलवे स्टेशन पर महिला कुलियों को देख दंग रह जाते हैं लोग। अज्ञानता को दूर करने के लिए ये महिलाएं बोझ उठाती हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 09 Feb 2018 12:12 PM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2018 04:00 PM (IST)
बोझ उठाती हैं ये महिलाएं, ताकि अज्ञानता का अंधियारा छंट सके
बोझ उठाती हैं ये महिलाएं, ताकि अज्ञानता का अंधियारा छंट सके

रायपुर (मधुकर दुबे)। यदि कभी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जाना हो जाए, तो चौंकिएगा नहीं। रेलवे स्टेशन पर कुली के भेष में महिलाएं आपके रूबरू होंगी। ये आपका लगेज बखूब उठा सकती हैं। यहां 15 से अधिक महिलाएं कुली का काम कर रही हैं। एक दर्जन पंजीकृत हो चुकी हैं कई अन्य महिलाएं भी कुली बनने के लिए आवेदन दे रही हैं।

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सुबह से लेकर शाम के छह बजे तक, ये महिलाएं कुली का काम करती हैं। इनमें ज्यादातर ऐसी हैं, जो खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से कुछ पैसे बचाकर पढ़ाई भी कर रही हैं। दो तो ऐसी हैं, जो स्नातक कर रही हैं, साथ ही रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा में बैठने की तैयारी भी। इनके जज्बे से सबक लेते हुए बाकी महिला कुली भी आगे की पढ़ाई करने लगी हैं। इनमें से आधा दर्जन ने इस बरस इंदिरा गांधी मुक्त विवि (इग्नू) से आगे की पढ़ाई के लिए फार्म भरा है। ये महिलाएं आधी दुनिया के उस एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करती दिखती हैं, जो दुनियादारी का बोझ भी उठाती हैं, और जिनमें पढ़ने-आगे बढ़ने की ललक भी बरकरार है।

स्नातक कर रही हैं पारंग साहू

पारंग बाई साहू राजनांदगांव जिले के शंकरपुर की निवासी हैं। वह 2009 से रायपुर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रही हैं। उस समय वह मात्र आठवीं कक्षा तक पढ़ी थीं। काम करते करते उन्हें सूझा कि पढ़ाई जारी रखेंगी तो हो सकता है सरकारी नौकरी भी मिल जाए। फिर क्या था, जोश और जज्बे के साथ लग गईं पढ़ाई में। 2012 में हाईस्कूल, 2014 में इंटर पास किया। इस समय उन्होंने इग्नू से स्नातक कोर्स में दाखिला लिया है। काम और घर- गृहस्थी से फुर्सत पाने के बाद वे रात में पढ़ाई करती हैं। कहती हैं, काम भी जरूरी है, पढ़ना भी। लगन हो तो दोनों साथ किए जा सकते हैं।

जंग जीतने को कुली बनीं राजकुमारी

मोतीपुर की राजकुमारी वर्मा के पति जितेंद्र जंघेल का सन 2001 में देहांत हो गया। इसके बाद तीन बच्चों के पालन- पोषण की जिम्मेदारी राजकुमारी पर आ गई। बहुत दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद अंतत: राजकुमारी ने कुली का काम करने का फैसला किया। काम मिल गया, तो आगे पढ़ने का भी विचार किया। इंटर पास करने के बाद वह रेलवे बोर्ड की भर्ती परीक्षा में शामिल हो चुकी हैं, हालांकि अभी सफलता नहीं मिली है। वे अपने बच्चों को तो पढ़ा ही रहीं हैं, खुद भी पढ़ रही हैं।

रेलवे स्टेशन डायरेक्टर ने भरवाया इग्नू फार्म

रेलवे स्टेशन के डायरेक्टर वी.बी.टी. राव पढ़ाई के लिए इन महिला कुलियों की लगातार हौसला अफजाई करते हैं। उन्होंने अन्य महिला कुलियों मसलन कुरुद निवासी मानबाई साहू, मंदा वर्मा, सुलोचना, संजू ठाकरे, अर्चना गोडवाने सहित अन्य का इग्नू से स्नातक की पढ़ाई के लिए हाल ही में फार्म भी भरवाया है। राव ने इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए हरसंभव मदद का आश्वासन भी दिया है।

झिकझिक नहीं, पैसे भी लेती हैं कम

पुरुष कुलियों की अपेक्षा ये महिला कुली पैसे के लिए झिकझिक कतई नहीं करतीं। पुरुष कुलियों के मुकाबले यात्रियों से पैसे भी कम लेतीं हैं। तीन बैग और एक बक्से की ढुलाई के 50 से 70 रुपये तक लेती हैं। वजन अधिक हुआ, तो थोड़ा और। आमतौर पर इतने सामान के लिए पुरुष कुली सौ रुपए मांगते हैं। राजकुमारी बताती हैं कि कभी-कभार उन्हें बुजुर्ग और असहाय यात्री दिखते हैं तो वे निशुल्क सहायता भी करती हैं। रायपुर रेलवे स्टेशन पर मुसाफिरों का बोझ उठा कर प्लेटफार्म से गुजरतीं महिला कुली।   


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