आइआरडीए, आरबीआइ के फर्जी कॉल सेंटर में छापा, ठगी के तीन आरोपित गिरफ्तार
एसपी जितेंद्र सिंह के मुताबिक इंदौर निवासी प्रमोद वांकणकर की शिकायत पर पिछले वर्ष आरोपितों के खिलाफ ठगी और धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया था। वांकणकर ने पुलिस को बताया था कि आरोपितों ने लेप्स पॉलिसी के रुपये वापस दिलवाने का झांसा देकर उनसे 23 लाख ऐंठ लिए थे।
इंदौर, जेएनएन। मध्य प्रदेश के इंदौर सायबर सेल ने बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आइआरडीए) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का फर्जी कॉल सेंटर बनाकर, खुद को इन दोनों संस्थाओं का अधिकारी बताकर लोगों से ठगी करने वाले तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया है। आरोपित दिल्ली के ओखला फेज-1 स्थित सी-68, सेकंड फ्लोर, डीडीए शेड में फर्जी कॉल सेंटर बनाकर ठगी कर रहे थे। सायबर सेल ने राजेंद्र प्रसाद, सुमित मलिक एवं आत्मदेव सिंह को गिरफ्तार किया है। इनके खिलाफ एक वर्ष पूर्व 23 लाख रुपये की धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ था। इनकी गिरफ्तारी पर इनाम भी घोषित हुआ था।
एसपी (सायबर) जितेंद्र सिंह के मुताबिक इंदौर निवासी प्रमोद वांकणकर की शिकायत पर पिछले वर्ष आरोपितों के खिलाफ ठगी और धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया था। वांकणकर ने पुलिस को बताया था कि आरोपितों ने लेप्स पॉलिसी के रुपये वापस दिलवाने का झांसा देकर उनसे 23 लाख रुपये ऐंठ लिए थे। पुलिस ने इस मामले में आरोपित अभिषेक दिवान एवं हरीश दिवान को तो गिरफ्तार कर लिया था लेकिन तीन आरोपित चकमा देकर भाग गए थे। सेल को जानकारी मिली थी कि इन आरोपितों ने ओखला में फर्जी कॉल सेंटर खोलकर दोबारा ठगी शुरू कर दी थी। शुक्रवार को सायबर सेल की तीन सदस्यीय टीम ने दबिश देकर आरोपित प्रदीप पुत्र राजेंद्र प्रसाद निवासी सरिता विहार नई दिल्ली,सुमित पुत्र गुलशन मलिक निवासी आइटी एक्सटेंशन नई दिल्ली और आत्मदेव पुत्र राम किशन सिंह निवासी अली विहार नई दिल्ली को गिरफ्तार कर लिया।
एसपी के मुताबिक आरोपित उन लोगों को निशाना बनाते थे जो बीमा करवाने के बाद प्रीमियम की किस्तें जमा नहीं कर पाते थे। पॉलिसी बंद होने पर आरोपित उन्हें लेप्स रकम ब्याज सहित दिलवाने का झांसा देते थे। कॉल सेंटर के माध्यम से आरोपित और उनके सहयोगी पहले ऐसे लोगों से आइआरडीए के अधिकारी बनकर बात करते थे। उन्हें झांसा देते थे कि बीमा कंपनी के विरद्ध जांच कर ग्राहक को पूरा रपया लौटाएंगे। प्रक्रिया की फीस व टैक्स के रूप में उनसे रुपये जमा करवा लेते थे। फाइल तैयार करने का झांसा देकर आरबीआइ के फर्जी अधिकारी बनकर भी बात कर लेते थे और इस तरह ठगी करते थे। ग्राहकों का डाटा वे कहां से प्राा करते थे, इसकी भी जांच की जाएगी। पुलिस को शक है कि यह बीमा कंपनियों से मिलता होगा।