त्वरित टिप्पणी: छत्तीसगढ़ में है विकास का आसमान छूने की क्षमता
जब हम तीन राज्यों की बात करते हैं तो उत्तराखंड और झारखंड के मुकाबले छत्तीसगढ़ मीलों आगे खड़ा दिखता है।
प्रशांत मिश्र। सत्रह साल पहले तीन स्वतंत्र राज्यों का निर्माण हुआ था। राज्यों के गठन के साथ ही इक्कीसवीं सदी की पहली पीढ़ी ने भी जन्म लिया था। दोनों की सोच और आकार के विस्तार का समय आ गया है। ऊंची उड़ान का वक्त आ गया है। लेकिन उससे पहले रुककर यह देखने, समझने और आश्वस्त होने की जरूरत है कि नजरें लक्ष्य से न भटकें और सामने खुला आसमान मिले।
जब हम तीन राज्यों की बात करते हैं तो उत्तराखंड और झारखंड के मुकाबले छत्तीसगढ़ मीलों आगे खड़ा दिखता है। कारण स्पष्ट है- लंबे अरसे तक प्रशासन की प्राथमिकता में पीछे रहे छत्तीसगढ़ को सही वक्त पर एक ऐसा राजनीतिक नेतृृत्व मिला जो जनता की अपेक्षाओं को भी समझता हो और प्रदेश की क्षमताओं की भी सही मात्रा और दिशा में उपयोग की सोच रखता हो। दो अन्य प्रदेश जब अस्थिरता के भंवर में फंसे थे तो छत्तीसगढ़ की जनता ने यह तय किया कि वह सही नेतृृत्व के हाथ में लगाम देगी। सोच को जमीन पर उतारने का पूरा वक्त देगी। असर साफ दिखा। छत्तीसगढ़ न सिर्फ नए प्रदेशों की कतार में आगे है बल्कि कुछ मामलों में बड़े प्रदेशों से भी आगे जाकर देश निर्माण में भूमिका निभाने के लिए तैयार है। जैसे बिजली सेक्टर में छत्तीसगढ़ ने देश के सभी राज्यों को पछाड़ दिया है। जीरो पावर कट राज्य के रूप में चमक रहा है। सरकारी और निजी उपक्रमों से प्रदेश में 20 हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादित हो रही है। 58 लाख परिवारों को सस्ता अनाज देकर मिसाल कायम की है। राज्य के हर परिवार को मुफ्त इलाज की सुविधा मिली है, जिसकी सीमा 30 हजार से बढ़ा कर 50 हजार रुपए वार्षिक कर दी गई है।
मोदी सरकार ने ओडीएफ (खुले में शौचमुक्त) घोषित करने के लिए सभी राज्यों को 2019 तक का लक्ष्य दिया है, इधर छत्तीसगढ़ 2018 तक ही ओडीएफ घोषित होना चाहता है। नक्सलवाद जैसे कुछ मुद्दे हैं जो राज्य को आगे बढऩे से रोकते हैं, लेकिन उसे भी परास्त करने की नीयत और ताकत मौजूद है। सुरक्षा बलों के पक्के इरादे और विकास की बदौलत नक्सली अब पूरे बस्तर से सिमट कर मुख्य रूप से केवल सुकमा और दंतेवाड़ा तक रह गए हैं। रमन सरकार ने 2020 तक नक्सलियों के सफाए का संकल्प लिया है।
अब बात करते हैं उस नई पीढ़ी की जिसने राज्य निर्माण के साथ ही आंखें खोली थी। जिसे हम मिलेनियम वोटर यानी नई सदी का असली वोटर कह सकते हैं। उसकी आँखों में नया सपना है। अब उस सपने को भी शासन प्रशासन की प्राथमिकता में शामिल करना होगा। हां, पर उन्हें यह एहसास भी करना होगा कि कश्ती मझधार से निकल कर आगे बढ़ी है। सपनों की मंजिल पानी है तो दिशा और सोच स्पष्ट रखनी होगी। हर मोर्चे पर चुनौतियों की पहचान ही नहीं, उसे ध्वस्त करने की ताकत भी बनानी पड़ेगी। और यह सब तब होगा जब पैर विरासत और हकीकत की जमीन पर मजबूती से डटे हों। यह साबित करना होगा कि राज्य भले ही छोटा हो, जज्बा है नेतृृत्व देने का।