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एकतरफा हैं वक्फ अधिनियम और इसके तहत काम कर रहे वक्फ बोर्ड के अधिकारों पर चल रही बहस

वक्फ अधिनियम और इसके तहत काम कर रहे वक्फ बोर्ड के अधिकारों पर चल रही बहस सही दिशा में नहीं है। वक्फ संपत्तियों को अवैध कब्जों से मुक्त करवाने और उन्हें संभालने के लिए पर्याप्त अध्ययन के साथ अधिनियम बनाया गया था।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Mon, 03 Oct 2022 05:09 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 05:09 PM (IST)
एकतरफा हैं वक्फ अधिनियम और इसके तहत काम कर रहे वक्फ बोर्ड के अधिकारों पर चल रही बहस
कुछ प्रविधानों पर चर्चा हो सकती है, लेकिन सिरे से इसे खारिज कर देना सही नहीं है।

वदूद साजिद। मुस्लिम वक्फ का मुद्दा जोर-शोर के साथ उठा हुआ है। इस मुद्दे पर एकतरफा बहस हो रही है। मुद्दे का सही सिरा बहस के नीचे दब कर रह गया है। 1954 में जो वक्फ अधिनियम एक्ट बना था वह इसीलिए बनाया गया था कि देशभर में इस्लाम के अनुयाइयों ने पिछले कई दशकों बल्कि सदियों में जो बड़े पैमाने पर अपनी संपत्तियों को धर्मार्थ वक्फ किया था, समय के साथ उनमें से बहुत सी संपत्तियों पर या तो अवैध कब्जे हो गए थे या वे कहीं खो गई थीं। इन संपत्तियों की देख-रेख के लिए कोई विनयमित प्रणाली न होने के कारण इनका सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था।

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1954 के एक्ट के आधार पर सरकार की देख रेख में जो सर्वे हुआ था, उसमें बारीकी से छानबीन की गई थी और उसके नतीजे में वक्फ संपत्तियों का सही-सही पता चला था। सर्वे से संबंधित दस्तावेज का अध्ययन करें, तो सामने आता है कि ऐसी किसी संपत्ति को वक्फ के रिकार्ड में गजट करने के बावजूद वापस नहीं लिया गया था जो किसी और के इस्तेमाल में थी। यहां तक कि वे संपत्तियां भी जो स्वयं सरकारी कब्जे में थीं। उस समय न किसी ने सर्वे पर आपत्ति जताई और न ही संपत्तियों को वक्फ के रूप में गजट पर किसी ने कोई एतराज किया था।

अध्धयन यह भी बताता है कि समय के साथ-साथ और भी वक्फ संपत्तियों का पता चलता गया। लेकिन प्रांतों के वक्फ बोर्ड पर्याप्त शक्ति न होने के कारण इन संपत्तियों का सही इस्तेमाल नहीं कर सके। इसी कारण वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन की आवश्यकता पड़ी। कई बार संशोधन हुआ लेकिन सार्थक संशोधन 1995 में हुआ। राज्यसभा के पूर्व उपाध्यक्ष के रहमान खान की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति ने वक्फ से जुड़े मुद्दों का गहरा अध्धयन करके एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसके अनुसार वक्फ संपत्तियों का बड़ा हिस्सा या तो निजी कब्जों में है या सरकारी कब्जे में।

यह रिपोर्ट वक्फ से जुड़े मुद्दों पर विश्वसनीय दस्तावेज की हैसियत रखती है। अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एक साक्षात्कार में इस रिपोर्ट को सही माना था और बताया था कि रिपोर्ट के कुछ अंशों के अनुसार वक्फ संपत्तियों को बचाने के लिए काम हो रहा है। 2013 के संशोधन पर जो छोटा सा प्रश्न उठा रहा है वह भी तर्कसंगत नहीं लगता। दुख की बात है कि इस समय जब देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बहुआयामी विकास की ओर अग्रसर है, तब वक्फ के मुद्दे पर देश के सामने गलत तथ्य रखे जा रहे हैं। देश में संपत्ति के मामले में तीसरा बड़ा संस्थान होने के बावजूद वक्फ की इतनी बड़ी संपत्ति अवैध कब्जे में है कि यदि ये कब्जे हटा दिए जाएं तो वक्फ संस्थानों को एक लाख करोड़ रुपये की सालाना आमदनी हो सकती है। क्या वक्फ की उन संपत्तियों को, जिन्हें उनके स्वामियों ने धर्मार्थ वक्फ किया था, उन्हें अवैध कब्जों से मुक्त कराना गलत है? हालांकि वक्फ संशोधन 2013 संपत्तियों को खाली कराने के लिए नहीं बल्कि वक्फ मामलों को दुरुस्त तौर पर चलाने और आय बढ़ाने के लिए किया गया था।

वक्फ के जानकारों का कहना है कि इसमें अभी भी रुकावटें आ रही हैं। अब वक्फ बोर्ड अपनी मर्जी से संपत्तियों का किराया नहीं बढ़ा सकते। यह कहना निराधार है कि संशोधित एक्ट 2013 की धारा 40 बहुत खतरनाक है और यह गैर वक्फ संपत्ति को छीनने का अधिकार देती है। आज भी सरकारी आंकड़ों के ही अनुसार 31 हजार एकड़ से ज्यादा संपत्ति अवैध कब्जे में है। ये आंकड़े संसद में दिए गए आधकारिक बयानों और आरटीआइ के जवाब से सामने आए हैं। इतनी बड़ी संपत्ति यदि अवैध कब्ज़ों से छुड़ा ली जाए तो भारत के करोड़ों लोग उससे लाभान्वित हो सकते हैं। मुझे वक्फ एक्ट 2013 कुछ खट्टा, कुछ मीठा लगता है। निसंदेह इसमें कुछ संशोधनों की गुंजाइश है।

[संपादक, इंकिलाब, दैनिक उर्दू अखबार]


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