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विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की सार्थकता पर सवाल, क्यों नहीं होता अहिंदी भाषी देशों में आयोजन

देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूरी दुनिया में भारत का सर गर्व से ऊंचा किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर भी कोई ऐसी ही युक्ति सोचेंगे जिससे हमारी राजभाषा के बारे में विदेश में एक उत्सुकता का वातावरण बने।

By Anant VijayEdited By: Published: Sat, 01 Oct 2022 05:29 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 05:29 PM (IST)
विश्व हिंदी सम्मेलन इस वर्ष हिंदी दिवस यानि 14 सितंबर को आयोजित किया जा रहा है।

अनंत विजय। विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर हिंदी जगत में चर्चा होती रहती है। 2018 में जब मारीशस में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ था तो उस वक्त ही ये तय हो गया था कि अगला यानि 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी में आयोजित होगा। चार वर्ष बीत जाने के बाद भी अबतक तिथि की आधिकारिक घोषणा नहीं हो पाई है। जोहानिसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुआ था कि दो विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन के बीच यथासंभव अधिकतम तीन वर्ष का अंतराल हो। इसके पहले ये व्यस्था थी कि विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन के बीच कोई भी अंतराल निश्चित नहीं था।

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सरकारों की इच्छा और अफसरों की मर्जी पर विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन होता रहा है। आधिकिक घोषणा नहीं होने के कारण इस वर्ष के मध्य में चर्चा ने जोर पकड़ा था कि फिजी में होनेवाला विश्व हिंदी सम्मेलन इस वर्ष हिंदी दिवस यानि 14 सितंबर को आयोजित किया जा रहा है। 14 सितंबर की तिथि आई और निकल गई लेकिन इस आयोजन के बारे में अटकलें ही लगती रहीं।

विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय करता है। हिंदी दिवस के चार दिनों बाद विदेश मंत्रालय का एक पोस्टर ट्वीट किया गया जिसमें बारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के लोगो डिजाइन प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा की गई थी। इसके बाद फिजी में आयोजित होनेवाली तिथियों को लेकर एक बार फिर से हिंदी समाज में अटकलें लगाई जाने लगीं। अब इस बात की संभावना जताई जा रही है कि फिजी में आयोजित होनेवाला विश्व हिंदी सम्मेलन फरवरी के मध्य में होगा। दरअसल भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की तरफ से किसी घोषणा के नहीं होने से इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। फरवरी के पहले एक बार इस बात की भी चर्चा हुई थी कि इस वर्ष दिसंबर में इस सम्मेलन का आयोजन हो सकता है। फिजी में इस वर्ष के अंत तक आम चुनाव होने हैं। फिजी की राजनीति को जाननेवालों का मत है कि अगर इस वर्ष वहां हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है तो इसको आमचुनाव में भारतवंशी राजनेताओं के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। संभव है कि इन बातों के मद्देनजर ही भारत सरकार ने हिंदी सम्मेलन को अगले वर्ष फरवरी में करवाने की योजना बनाई हो।

प्रश्न आयोजन की तिथियों को लेकर नहीं हैं। तिथियां तो सबकुछ देख समझकर तय कर दी जाएंगी। प्रश्न ये है कि फिजी में विश्व हिंदी सम्मेलन क्यों आयोजित हो रहा है। तर्क ये दिया जाता है कि फिजी में हिंदी भाषा भाषियों की संख्या अधिक है। फिजी की आधिकारिक भाषाओं में से एक हिंदी है। इसलिए फिजी में हिंदी सम्मेलन के आयोजन को लेकर उत्साह होगा, स्थानीय लोग भी हमारी भाषा से जुड़ाव महसूस करेंगे। लेकिन अगर गंभीरता से विचार करें तो ये तर्क उचित नहीं प्रतीत होते हैं। विश्व हिंदी सम्मेलन का प्राथमिक उद्देश्य पूरी दुनिया में हिंदी का प्रचार प्रसार और इस भाषा के प्रति अहिंदी भाषियों के मन में आकर्षण पैदा करना है। मारीशस, फिजी, सूरीनाम में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन करके हम किस तरह से इस सम्मेलन के उद्देश्यों को पूरा करने का उपक्रम कर रहे हैं, इसपर भारत सरकार विशेषकर विदेश मंत्रालय में इस आयोजन से जुड़े लोगों को विचार करना चाहिए।

अबतक 11 विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हो चुका है। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 1975 में नागपुर में आयोजित हुआ था। तब से लेकर अबतक तीन बार मारीशस में, नागपुर के अलावा भोपाल और दिल्ली में, एक सूरीनाम में, एक त्रिनिदाद और टोबैगो में आयोजित हो चुका है। इसके अलावा लंदन , न्यूयार्क और जोहानिसबर्ग में आयोजन हुआ है। ग्यारह में से आठ तो हिंदी से परिचित और हिंदी मूल के लोगों को बीच ही विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह विचारणीय है कि क्या विश्व हिंदी सम्मेलन के प्राथमिक उद्देश्य तक पहुंचने के लिए गंभीरता से प्रयास हो रहे हैं।

हिंदी को वैश्विक स्तर पर लेकर जाने के लिए क्या ये उचित नहीं होता कि इसका आयोजन चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी आस्ट्रेलिया, इटली जैसे देशों में होता। इसका एक लाभ ये होता कि इन देशों की भाषाओं के साथ हिंदी का संवाद बढता और एक दूसरे की भाषा को जानने का अवसर भी प्राप्त होता। अनुवाद के अवसर भी उपलब्ध हो सकते थे जिससे हिंदी की कृतियों को वैश्विक मंच पर एक पहचान मिलती। विश्व हिंदी सम्मेलन भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अन्य देशों को बताने का एक मंच भी बन पाता। अगर समग्रता में इसकी योजना बनाकर कार्य किया जाए तो ये सम्मेलन भाषाई कूटनीति का एक माध्यम बन सकता है। विदेश मंत्रालय में तमाम विद्वान कूटनीतिज्ञ बैठे हैं और अगर वो गंभीरता से इस आयोजन को लेकर कोई नीति बनाएं तो निश्चित रूप से उसमें सफलता मिल सकती है। आवश्यकता सिर्फ अपनी भाषा हिंदी को मजबूत करने के लिए इच्छाशक्ति की है।

1975 में जब पहली बार नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ था तब से ही ये सम्मेलन हिंदी के नाम पर ठेकेदारी करनेवालों की नजर में आ गया। उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस बात को समझा था और उन्होंने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा को इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका दी थी। उस समय इस निर्णय को लेकर दिल्ली हिंदी प्रादेशिक साहित्य सम्मेलन से जुड़े गोपाल प्रसाद व्यास और काशी नागरी प्रचारिणी सभा के सुधाकर पांडे नाराज हो गए थे। उनको लगा था कि इस तरह के आयोजन में उनकी भूमिका होनी चाहिए थी। बाद में सुधाकर पांडे, रत्नाकर पांडे और श्रीकांत वर्मा की तिकड़ी ने अपनी स्थिति मजबूत की और मारीशस में हुए दूसरे विश्व हिंदी सम्मेलन में केंद्रीय भूमिका में आ गए। उस वक्त के साहित्यकार एक बेहद मजेदार किस्सा सुनाते हैं। मारीशस जाने के लिए पत्रकार और दुनियाभर में रामायण सम्मेलनों के आयोजन से जुड़े लल्लन प्रसाद व्यास दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचे। जब वो इमीग्रेशन की पंक्ति में खड़े थे तो उनके पास एक अधिकारी आया। उनको बताया गया कि उनके पासपोर्ट की जांच होनी है ताकि विदेश में उनको किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। कहते हैं कि उनको पासपोर्ट तब वापस दिया गया जब मारीशस जानेवाले विमान का गेट बंद हो गया। कहा तो यहां तक जाता है कि कवि श्रीकांत वर्मा ने ही ये करवाया था। इस तरह की बातों का कोई प्रमाण नहीं होता। इसका भी नहीं है।

जब विमान मारीशस के पोर्टलुई हवाई अड्डे पहुंचा तो उस समय के वहां के प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम स्वयं हिंदी सम्मेलन के प्रतिभागियों की अगवानी के लिए उपस्थित थे। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल के सदस्य कर्ण सिंह से पूछा था कि लल्लन नहीं दिखाई दे रहे हैं। उनके पास कोई उत्तर नहीं था। लल्लन प्रसाद व्यास हिंदी सम्मेलन की तैयारियों के सिलसिले में तीन बार मारीशस जा चुके थे इसलिए शिवसागर जी उनके बारे में जानना चाहते थे। लल्लन को इस वजह से रोका गया क्योंकि वो पहले विश्व हिंदी सम्मेलन में आयोजक मधुकर राव चौधरी के साथ सक्रिय थे। उनको सबक सिखाना था। जबतक विश्व हिंदी सम्मेलन साहित्यकारों की राजनीति से मुक्त होकर भाषाई कूटनीति का माध्यम नहीं बनेगा तबतक इस आयोजन की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगते रहेंगे। इस वक्त देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूरी दुनिया में भारत का सर गर्व से ऊंचा किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर भी कोई ऐसी ही युक्ति सोचेंगे जिससे हमारी राजभाषा के बारे में विदेश में एक उत्सुकता का वातावरण बने।


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