फंसी बिजली कंपनियों को राहत मिलने के आसार कम, फंसे कर्जे वसूलने की तैयारी में बैंक
दरअसल, इस हालात के लिए पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान आंख मूंद कर किये गये फैसले जिम्मेदार है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। यूपीए कार्यकाल में बैंकों से भारी भरकम कर्ज ले कर शुरु की गई बिजली परियोजनाएं अब सरकार के साथ ही बैंकों के लिए गले की फांस बन गई है। एक दशक पहले इन्हें नियम कानून को ताक पर रख कर कर्ज देने वाले बैंक इन परियोजनाओं को जल्दी से जल्दी दिवालिया कानून के तहत नीलाम कर अपने फंसे कर्जे वसूलने की तैयारी में है।
वित्त मंत्रालय भी इन कंपनियों को बचाने को बहुत इच्छुक नहीं दिखता है। ऐसे में तकरीबन दो दर्जन बिजली कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई होने के आसार है। यही नहीं इनके खिलाफ यह जांच भी करवाने पर विचार किया जा रहा है कि इन्हें किस तरह से कायदे कानून को ताक पर रख कर किस तरह से कर्ज दिया गया है।
बैंक्रप्सी कोड के तहत दिवालिया करने की प्रक्रिया शुरु
देश में इस समय 34 ऐसी बिजली परियोजनाएं हैं जिन्होंने बैंकों को कर्ज चुकाना बंद कर दिया है। इनकी कुल संभावित उत्पादन क्षमता 40 हजार मेगावाट से भी ज्यादा है और इन पर सरकारी बैंकों का 1.74 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। ये सभी कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं हैं जिनमें से अधिकांश को यूपीए-1 और यूपीए-2 के कार्यकाल में लगाने की अनुमति मिली थी।
वित्त मंत्रालय ने एक आंतरिक समिति के तहत इन कंपनियों के हालात पर विचार किया था। वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इनमें से 4000 मेगावाट उत्पादन क्षमता की तकरीबन पांच ऐसी कंपनियों का पता चला है जिनके पास ना तो कोल लिंकेज है और ना ही बिजली खरीद समझौता (पीपीए) है। तकरीबन 3600 मेगावाट क्षमता के ऐसे बिजली प्लांट को कर्ज दिये गये हैं जिन्होंने विवादित कोयला खदान आवंटित हुए थे। इन सभी बिजली प्लांटों का काम आधा-अधूरा पड़ा है। कुछ को नए इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आईबीसी) के तहत दिवालिया करने की प्रक्रिया शुरु की गई है। बाकी का भी यही हाल होगा।
बैंकों ने बिजली क्षेत्र की पूरी गणित समझे बगैर दिया खूब कर्ज
दरअसल, इस हालात के लिए पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान आंख मूंद कर किये गये फैसले जिम्मेदार है। तब सरकार को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि कुछ वर्षो में देश में पर्याप्त बिजली पैदा होने लगेगी। लिहाजा आंख मूंद कर बिजली प्लांट के प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई गई। बैंकों ने भी बिजली क्षेत्र की पूरी गणित समझे बगैर ही इन्हें खूब कर्ज दे दिए। अब ये बिजली कंपनियां सरकार से आग्रह कर रही हैं उन्हें इस मुसीबत से निकालने की राह निकालने। लेकिन चूंकि देश में अभी अतिरिक्त बिजली (खास तौर पर कोयला आधारित बिजली संयंत्रों) की जरुरत महसूस नहीं की जा रही है, इसलिए सरकार भी इन पर मुरव्वत दिखाने के मूड में नहीं है। जिन कंपनियों की परियोजनाएं फंसी हुई है उनमें जेपी पावर, जिंदल पावर, आधुनिक पावर, मोनेट इस्पात, अडानी पावर जैसी नामी गिरामी कंपनियां है।
क्या है बिजली की स्थिति
बिजली मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2014-2014 के बीच बिजली उत्पादन में 6.1 फीसद की वृद्धि हुई थी जबकि वर्ष 2014-2017 के बीच 6.8 फीसद की वृद्धि हुई है। इस दौरान देश में बिजली की मांग व आपूर्ति का अंतर (पीक आवर में) 6,103 मेगावाट से घट कर 2,608 मेगावट रह गया है। पहले भारत बिजली का निर्यात करता था लेकिन वर्ष 2017 में नेपाल, बांग्लादेश व म्यांमार को 5798 मेगावाट बिजली बेची है। साथ ही सरकार अब सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है। यह भी एक वजह है कि वैसे फंसी हुई कोयला आधारित बिजली परियोजना को बचाने को लेकर सरकार बहुत उत्साहित नहीं है।