उत्तर प्रदेश की मुठभेड़ों पर उठे सवाल सुप्रीम कोर्ट, 12 फरवरी को फिर होगी सुनवाई
Supreme court ने उत्तर प्रदेश की पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाने वाली याचिका पर विस्तृत विचार का मन बनाया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाने वाली याचिका पर विस्तृत विचार का मन बनाया है। कोर्ट इस मामले पर प्राथमिकता के आधार पर 12 फरवरी को सुनवाई करेगा।
गैर सरकारी संस्था पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने जनहित याचिका दाखिल कर कोर्ट से पिछले एक साल से उत्तर प्रदेश में हो रही मुठभेड़ों की किसी स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। यह भी मांग है कि जांच की निगरानी स्वयं सुप्रीम कोर्ट करे या फिर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में निगरानी समिति गठित की जाए। याचिका में मुठभेड़ पीडि़त परिवारों को मुआवजा दिलाए जाने की भी मांग की गई है।
प्रशांत भूषण ने एनएचआरसी की रिपोर्ट मंगाने का अनुरोध किया
सोमवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, अशोक भूषण और संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगी थी। संस्था के वकील संजय पारिख ने प्रदेश में हुई पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाते हुए जांच की मांग की जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि प्रशासन ने नियम कानून और प्रक्रिया का पूरा पालन किया है।
इसी बीच गैर सरकारी संस्था सिटीजन अगेंस्ट हेट की ओर से दाखिल अर्जी में पक्षकार बनने का अनुरोध कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट मंगाई जाए।
कोर्ट ने वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस मामले पर जल्दी से जल्दी विचार करने की जरूरत है। कोर्ट ने मामले को 12 फरवरी की सूची में पहले नंबर पर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि एनएचआरसी की रिपोर्ट मंगाने के पहलू पर भी अगली तारीख पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने भूषण की अर्जी पर भी औपचारिक नोटिस जारी किया है।
1100 मुठभेड़ों में 49 लोग मारे गए
उत्तर प्रदेश की पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाने वाली याचिका गत जुलाई में पहली बार सुनवाई को आई थी और कोर्ट ने याचिका पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। याचिका में कहा गया है कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल उत्तर प्रदेश में करीब 1100 मुठभेड़ हुई और उसमें 49 लोग मारे गए तथा 370 अन्य घायल हुए थे।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दिए गए आंकड़ों के मुताबिक एक जनवरी 2017 से लेकर 31 मार्च 2018 के बीच 45 लोग मुठभेड़ में मारे गए। याचिका में पुलिस मुठभेड़ के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश में तय दिशानिर्देशों का भी हवाला दिया गया है।
याचिका में योगी के बयानों का भी हवाला
उत्तर प्रदेश में हो रही पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल उठाते हुए याचिका में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया में आए बयानों का हवाला दिया है जिसमें 19 नवंबर 2017 के बयान का जिक्र है जिसमें उन्होंने कहा था कि अपराधी या तो जेल में होंगे या फिर मुठभेड़ में मारे जाएंगे।
इसके अलावा 9 फरवरी के बयान का भी जिक्र किया गया है जिसमे कहा गया था कि सबकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी लेकिन जो लोग समाज की शांति भंग करना चाहते हैं और बंदूक में विश्वास करते हैं, उन्हें बंदूक की भाषा में ही जवाब मिलना चाहिए। कहा गया है कि मुख्यमंत्री के 19 नवंबर के बयान पर संज्ञान लेते हुए एनएचआरसी ने नोटिस किया था जिसका राज्य सरकार ने आयोग को जवाब भेज दिया है।