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अब गुणवत्तायुक्त शहद मिलना हुआ और आसान, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाली खास विधि

मधुमक्खी के इस नए छत्ते के उपयोग से बेहतर हाइजीन बनाए रखने के साथ शहद संग्रहित करने की प्रक्रिया में मधुमक्खियों की मृत्यु दर को नियंत्रित किया जा सकता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 22 Mar 2020 07:02 PM (IST)Updated: Sun, 22 Mar 2020 07:11 PM (IST)
अब गुणवत्तायुक्त शहद मिलना हुआ और आसान, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाली खास विधि

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत शहद उत्पादन और उसके निर्यात के मामले में तेजी से उभरा है। लेकिन, शहद उत्पादन में उपयोग होने वाले छत्तों का रखरखाव एक समस्या है, जिसके कारण शहद की शुद्धता प्रभावित होती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने मधुमक्खी पालकों के लिए एक ऐसा छत्ता विकसित किया है, जो रखरखाव में आसान होने के साथ-साथ शहद की गुणवत्ता एवं हाइजीन को बनाए रखने में भी मददगार हो सकता है।

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केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआइओ), चंडीगढ़ और हिमालय जैव-संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आइएचबीटी), पालमपुर के वैज्ञानिकों ने मिलकर मधुमक्खी पालन में उपयोग होने वाले पारंपरिक छत्ते में सुधार करके इस नए छत्ते को विकसित किया है। इस छत्ते की खासियत यह है कि इसके फ्रेम और मधुमक्खियों से छेड़छाड़ किए बिना शहद को इकट्ठा किया जा सकता है।

चाबी को नीचे तरफ घुमाकर प्राप्त किया जा सकता है शहद

पारंपरिक रूप से हनी एक्स ट्रैक्टर की मदद से छत्ते से शहद प्राप्त किया जाता है, जिससे हाइजीन संबंधी समस्यां पैदा होती हैं। इस नए विकसित छत्ते में भरे हुए शहद के फ्रेम पर चाबी को नीचे की तरफ घुमाकर शहद प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा करने से शहद निकालने की पारंपरिक विधि की तुलना में शहद सीधे बोतल पर प्रवाहित होता है। इस तरह, शहद अशुद्धियों के संपर्क में आने से बच जाता है और शुद्ध तथा उच्च गुणवत्ता का शहद प्राप्त होता है।

मधुमक्खियों की मृत्यु दर पर कर सकते हैं नियंत्रित

आइएचबीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस.जी. ईश्र्वरा रेड्डी ने बताया कि इस छत्ते के उपयोग से बेहतर हाइजीन बनाए रखने के साथ शहद संग्रहित करने की प्रक्रिया में मधुमक्खियों की मृत्यु दर को नियंत्रित कर सकते हैं। इस छत्ते के उपयोग से पारंपरिक विधियों की अपेक्षा श्रम भी कम लगता है। मधुमक्खी-पालक इस छत्ते का उपयोग करते हैं तो प्रत्येक छत्ते से एक साल में 35 से 40 किलो शहद प्राप्त किया जा सकता है। मकरंद और पराग की उपलब्धता के आधार पर यह उत्पादन कम या ज्यादा हो सकता है। इस लिहाज से देखें तो मधुमक्खी का यह छत्ता किफायती होने के साथ-साथ उपयोग में भी आसान है।

भारत दुनिया में आठवां प्रमुख देश

शहद उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में आठवां प्रमुख देश है, जहां प्रतिवर्ष 1.05 लाख मीट्रिक टन शहद उत्पादित होता है। राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 14,12,659 मधुमक्खी कॉलोनियों के साथ कुल 9,580 पंजीकृत मधुमक्खी-पालक हैं। हालांकि, वास्तविक संख्या बहुत अधिक हो सकती है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2018-19 में 732.16 करोड़ रुपये मूल्य का 61,333.88 टन प्राकृतिक शहद का निर्यात किया था। प्रमुख निर्यात स्थलों में अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मोरक्को और कतर जैसे देश शामिल थे।

क्लस्टरों की पहचान की 

आइएचबीटी ने खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन के लिए क्लस्टरों की पहचान की है, जहां मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देकर किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। आगामी पांच वषरें में हिमाचल प्रदेश में केवीआइसी और मधुमक्खी क्लस्टरों के साथ मिलकर आइएचबीटी का लक्ष्य 2500 मीट्रिक टन शहद उत्पादन करने का है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद से संबद्ध आइएचबीटी अरोमा मिशन, फ्लोरीकल्चर मिशन और हनी मिशन के अंतर्गत मधुममक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। इसके तहत प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और मधुमक्खी के छत्ते तथा टूल किट वितरित किए जा रहे हैं, ताकि रोजगार और आमदनी के असवर पैदा किए जा सकें।


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