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Pune Violence: दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी दलित-मराठा संघर्ष की पृष्ठभूमि...

भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर सोमवार को उम़़डे लाखों दलितों के साथ शुरू हुए मराठा समुदाय के संघर्ष की पृष्ठभूमि दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 09:11 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jan 2018 01:39 PM (IST)
Pune Violence: दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी दलित-मराठा संघर्ष की पृष्ठभूमि...
Pune Violence: दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी दलित-मराठा संघर्ष की पृष्ठभूमि...

मुंबई (ओमप्रकाश तिवारी)। सोमवार को पुणे से शुरू होकर पूरे महाराष्ट्र में फैला दलित आंदोलन सिर्फ 200 साल पुराने ब्रिटिश-पेशवा युद्ध से ही संबंध नहीं रखता। इसे लेकर सियासत गर्माने के पीछे इतिहास के और भी कई पन्नों को उधेडा जा रहा है।

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औरंगजेब ने संभाजी के चार टुकडे कर फेंके थे

भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर सोमवार को उम़़डे लाखों दलितों के साथ शुरू हुए मराठा समुदाय के संघर्ष की पृष्ठभूमि दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी। पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर अहमदनगर रोड पर स्थित भीमा-कोरेगांव के निकट ही वढू बुदरक गांव है। भीमा नदी के किनारे स्थित इसी गांव में औरंगजेब ने 11 मार्च, 1689 को छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र और तत्कालीन मराठा शासक संभाजी राजे भोसले और उनके साथी कवि कलश को निर्दयतापूर्वक मार दिया था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने संभाजी राजे के शरीर के चार टुक़़डे करके फेंक दिए थे।

गायकवाड ने शव जोडकर किया था अंतिम संस्कार

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसी गांव में रहनेवाले महार जाति के गोविंद गणपत गायकवाड ने मुगल बादशाह की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए संभाजी के क्षत-विक्षत शरीर को उठाकर जोडा और उनका अंतिम संस्कार किया। इसके फलस्वरूप मुगलों ने गोविंद गायकवाड की भी हत्या कर दी थी। गोविंद गायकवाड को सम्मान देने के लिए वढू बुदरक गांव में छत्रपति संभाजी राजे की समाधि के बगल में ही गोविंद की समाधि भी बनाई गई है।

समाधि की सजावट बिगाडी

बताया जाता है कि भीमा कोरेगांव में पेशवा-ब्रिटिश युद्ध की 200वीं बरसी धूमधाम से मनाए जाने के अवसर पर वढू बुदरक गांव में गोविंद गायकवाड की समाधि को भी सजाया गया था। लेकिन 30 दिसंबर, 2017 की रात कुछ अज्ञात लोगों ने इस सजावट को नुकसान पहुंचाया और समाधि पर लगा नामपट क्षतिग्रस्त कर दिया। स्थानीय दलितों का कहना है कि यह काम मराठा समाज के कुछ उच्च वर्ग के लोगों ने श्री शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिडे गुरजी और समस्त हिंदू अघाडी के अध्यक्ष मिलिंद एकबोते के भडकाने पर किया। सोमवार को हुए दलित-मराठा संघर्ष की पृष्ठभूमि में इस घटना का भी बडा योगदान माना जा रहा है।

महार थे गायकवाड और आंबेडकर

इतिहास के पन्ने पलटें तो 1689 में संभाजी राजे का अंतिम संस्कार करने वाले गोविंद गणपत गायकवाड महार थे। फिर एक जनवरी, 1818 को अंग्रेजों की सेना में रहकर पेशवाओं से युद्ध करने वाले 600 सैनिक भी महार थे। डॉ. भीमराव आंबेडकर भी महार समुदाय से थे। आजादी के बाद उनके साथ नवबौद्ध बनने वाले करीब पांच लाख लोगों में से अधिकतर महार ही थे। आंबेडकर पहली बार 1927 में भीमा-कोरेगांव स्थित युद्ध स्मारक पर गए थे। 18 जून, 1941 के अपने एक पत्र में आंबेडकर ने महारों को लडाकू कौम बताते हुए 1892 में भंग कर दी गई ब्रिटिश सेना की महार रेजीमेंट को फिर से शुरू करने की सिफारिश की थी।

मेवाणी, खालिद भी पहुंचे थे भीमा-कोरेगांव

सोमवार को लाखों दलितों के इकट्ठा होने से ठीक पहले की शाम पेशवाओं का निवास रहे पुणे के शनिवारवाडा के बाहर यलगार परिषद का आयोजन किया गया। इसमें दलित नेता व बाबा साहब के भतीजे प्रकाश आंबेडकर के साथ गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला और जेएनयू के वामपंथी छात्रनेता उमर खालिद शामिल हुए। मेवाणी ने इस परिषद में भडकाऊ भाषण दिया। भाजपा और संघ को नया पेशवा बताते हुए सभी दलों को उनके विरद्ध एकजुट होने का आह्वान किया। अगले दिन से ही भीमा-कोरेगांव में लाखों दलितों के जमाव़़डे के बीच मराठा समुदाय के एक युवक की हत्या हो गई। इसकी जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा घोषित न्यायिक आयोग अपनी रिपोर्ट में भले कुछ भी कहे। लेकिन इन घटनाओं के राजनीतिक निहितार्थ से इनकार नहीं किया जा सकता।

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