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Online Games समस्या भी हैं और समाधान भी, बच्चों को इससे दूर नहीं रख सकते- नरेंद्र मोदी

जानलेवा ब्लू व्हेल गेम के बाद इन दिनों पबजी यानी ‘प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड्स गेम’ का नशा किशोरों पर छाया हुआ है। हर दूसरा किशोर इस गेम के बारे में चर्चा करता हुआ दिखाई देगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 02:53 PM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 04:13 PM (IST)
Online Games समस्या भी हैं और समाधान भी, बच्चों को इससे दूर नहीं रख सकते- नरेंद्र मोदी
Online Games समस्या भी हैं और समाधान भी, बच्चों को इससे दूर नहीं रख सकते- नरेंद्र मोदी

[अमित निधि]। पबजी, फोर्टनाइट जैसे गेम्स की इन दिनों खूब चर्चा है। इसकी चर्चा प्रधानमंत्री ने हाल में अपने ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में भी की थी, लेकिन ये गेम्स किशोरों और युवाओं को प्लेग्राउंड से दूर वर्चुअल प्ले स्टेशन की तरफ ले जा रहे हैं। इसकी वजह से वे न सिर्फ मानसिक तौर पर बीमार हो रहे हैं, बल्कि स्कूलों में उनका परफॉर्मेंस भी प्रभावित होने लगा है। जानते हैं कैसे इन गेम्स के नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है..

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जानलेवा ब्लू व्हेल गेम के बाद इन दिनों पबजी यानी ‘प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड्स गेम’ का नशा किशोरों पर छाया हुआ है। हर दूसरा किशोर इस गेम के बारे में चर्चा करता हुआ दिखाई देगा कि आज कौन ‘चिकन डिनर’ का विनर बना। यह पबजी गेम जीतने पर मिलता है।

नौवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाले शुभम शर्मा बताते हैं कि शुरुआत में वह दोस्तों के साथ कुछ वक्त के लिए यह गेम खेला करते थे, लेकिन अब इसकी ऐसी लत लग गई है कि रात में पैरेंट्स जब सो जाते हैं, तो वह छुप कर इसे खेलते हैं। इतना ही नहीं, जब वह गेम नहीं खेलते, तब भी उनके दिमाग में यही चलता रहता है। ऐसा सिर्फ शुभम के साथ ही नहीं है, बल्कि इन दिनों बहुत सारे किशोरों के साथ देखा जा रहा है। इस गेम के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन भी बढ़ता जा रहा है।

क्यों हो रहा है लोकप्रिय: पबजी गेम की लोकप्रियता का आलम यह है कि इसे दुनिया में 20 करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है। साथ ही, पबजी चैंपियनशिप के जरिए करोड़ों के प्राइज भी बांटे जा रहे हैं। दरअसल, यह मल्टीप्लेयर गेम है। इसे टीम बनाकर या फिर सिंगल भी खेला जाता है। इसमें हर लेवल के लोगों के लिए कुछ न कुछ है। यूजर को गेम के अंत तक खुद को बचाकर रखना पड़ता है और गेम जीतने पर वह चिकन डिनर का विनर बनता है। इस ऑनलाइन गेम में अच्छे ग्राफिक्स, पॉवरफुल साउंड और मोशन सेंसरिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। यह गेम अभी कंप्यूटर, एक्सबॉक्स वन, आइओएस और एंड्रॉयड पर भी खेला जाता है।

उठी रही बैन की आवाज: गुजरात सरकार ने जिलाधिकारियों को एक सर्कुलर जारी करते हुए पबजी पर बैन लगाने को कहा है। वहां के शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया है कि जो भी बच्चे स्कूल में पबजी या कोई अन्य लत वाले गेम खेलते हैं, उन्हें जल्द से जल्द इनके नुकसान के बारे में बताकर इस गेम की आदत को छुड़ाया जाए। कुछ समय पहले राजकोट में घरवालों के पबजी गेम खेलने से मना करने पर 15 साल के एक बच्चे ने आत्महत्या कर ली थी। जम्मू-कश्मीर में भी पबजी गेम पर बैन लगाने की मांग उठ रही है। यहां के स्टूडेंट एसोसिएशन ने इस गेम को फ्यूचर स्पॉइलर बताया है। हाल ही में यहां लगातार 10 दिन तक पबजी खेलने की वजह से एक फिजिकल ट्रेनर अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था। जम्मू- कश्मीर में पबजी गेम की वजह से खुद को नुकसान पहुंचाने के कई मामले सामने आ चुके हैं, जबकि देश के कई और हिस्सों से पबजी पर बैन लगाए जाने की मांग उठ रही है।

पैरेंट्स को ध्यान देने की जरूरत: आज के दौर में टेक्नोलॉजी से बच्चों को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन पैरेंट्स को यह तय करना होगा कि बच्चे कितनी देर तक मोबाइल पर गेम खेलें या फिर मोबाइल देखें। पबजी, फोर्टनाइट जैसे गेम्स को लेकर बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। साथ ही, बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर भी नजर रखना होगा। आमतौर पर देखा गया है कि जिन बच्चों में गेमिंग का एडिक्शन होता है, उनकी फिजिकल एक्टिविटी बंद हो जाती है। न सिर्फ उनकी सोशल लाइफ खत्म हो जाती है, बल्कि वे नहाना-खाना भी छोड़ने लगते हैं। रात-रात भर सोते नहीं हैं। दिन में सोते हैं, स्कूल नहीं जाते। स्कूल जाते भी हैं तो वहां ऊंघते रहते हैं। इस तरह के लक्षण बच्चों में दिखने लगें तो पैरेंट्स को सतर्क हो जाना चाहिए। साथ ही, ऐसे बच्चों को ज्यादा देर अकेले में नहीं रहने देना चाहिए, परिवार को साथ समय बिताना चाहिए। बच्चों को प्ले स्टेशन की बजाय प्ले ग्राउंड पर खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

मदद करेंगे ये टेक टूल्स
डजिटल डिटॉक्स बाय शट क्लिनिक: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरो साइंसेज, बेंगलुरु के एक डॉक्टर ने यह एप्लिकेशन पेश किया है। गूगल प्ले स्टोर से इसे डाउनलोड करने के बाद यहां रजिस्टर करना होता है। यह मोबाइल यूजेज के पैटर्न को समझते हुए आपको बताता है कि कैसे मोबाइल के उपयोग को कम कर सकते हैं।

गूगल फैमिली लिंक: इसकी मदद से पैरेंट्स यह तय कर सकते हैं कि बच्चे कितनी देर तक स्मार्टफोन देखें। साथ ही, वे बच्चों के मोबाइल को दूर बैठे भी कंट्रोल कर सकते हैं। एप्स, गेम्स, मूवी आदि के लिए चाइल्ड-फ्रेंडली फिल्टर लगाने की सुविधा भी है। यह गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। क्वालिटी टाइम-माइ डिजिटल डाइट: यह एंड्रॉयड एप है, जिसमें मॉनिटरिंग की सुविधा है। इससे गेमिंग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। इसमें टाइम रिस्ट्रिक्शंस के लिए अलर्ट, टेक ए ब्रेक, शेड्यूल ब्रेक जैसे फीचर्स दिए गए हैं।

ये पबजी वाला है क्या?
इस बार ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के दौरान जब पीएम नरेंद्र मोदी से पूछा गया कि बच्चों को ऑनलाइन मोबाइल गेम से कैसे दूर रखें, तो पीएम ने कहा- ये पबजी वाला है क्या? उन्होंने कहा कि बच्चों को तकनीक से दूर नहीं रख सकते। ऑनलाइन गेम समस्या भी है और समाधान भी। बच्चे प्ले-स्टेशन से प्ले-ग्राउंड की ओर जाएं। इसमें माता-पिता बच्चों को तकनीक की सही जानकारी दें।

[नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री]


छुट्टी के दिन ही दें मोबाइल
देश के लाखों युवा इंटरनेट की वह हद पार कर रहे हैं, जिसे आइएडी (इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर) के नाम से जाना जाता है। पैरेंट्स भी शुरुआत में बच्चों के इस असामान्य व्यवहार को नोटिस नहीं करते। इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका है कि बच्चों को मोबाइल से यथासंभव दूर रखें। सप्ताह में सिर्फ छुट्टी के दिन ही मोबाइल दें। बच्चा इंटरनेट या मोबाइल पर क्या ब्राउज करता या देखता है, उस पर भी नजर रखें।

[डॉ.समीर मल्होत्रा
निदेशक, डीएमएचबीएस, मैक्स, साकेत, नई दिल्ली]


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