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पेशेवर शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की दरियादिली नहीं : सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने नौ अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा उच्चतर (पेशेवर) शिक्षा हासिल करने को संविधान के खंड-तीन में मौलिक अधिकार के तौर पर यद्यपि परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि पेशेवर शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की दरियादिली नहीं है।

By Neel RajputEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 09:53 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 09:53 PM (IST)
कहा, सभी स्तरों पर इसकी पहुंच सुविधाजनक बनाना राज्य का दायित्व

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेशेवर शिक्षा तक पहुंच उपलब्ध कराना सरकार की दरियादिली नहीं है और सभी स्तरों पर इसकी पहुंच सुविधाजनक बनाना राज्य का दायित्व है। अदालत ने कहा कि इस दायित्व का उन छात्रों के लिए कहीं ज्यादा महत्व है जिनकी पृष्ठभूमि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की राह को दुर्गम बनाती है।

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की एक पीठ ने लद्दाख के दो छात्रों की अलग-अलग याचिकाओं पर फैसला देते हुए यह टिप्पणी की। इन छात्रों को मेडिकल कालेज में एमबीबीएस के डिग्री पाठ्यक्रम में केंद्र शासित प्रदेश द्वारा नामित किए जाने और सीटों को केंद्र द्वारा अधिसूचित किए जाने के बावजूद दाखिला नहीं मिला था।

शीर्ष अदालत ने नौ अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा, उच्चतर (पेशेवर) शिक्षा हासिल करने को संविधान के खंड-तीन में मौलिक अधिकार के तौर पर यद्यपि परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि पेशेवर शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की दरियादिली नहीं है। इसके बजाय सभी स्तरों पर शिक्षा की पहुंच को सुगम बनाना सरकार का दायित्व है। दोनों छात्रों द्वारा दायर याचिका को मंजूर करते हुए शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि दाखिले की औपचारिकताएं तत्काल पूरी की जाएं और हर हाल में एक हफ्ते के अंदर।

पीठ ने कहा कि दोनों याचिकाकर्ताओं को लद्दाख प्रशासन ने सेंट्रल पूल के तहत एमबीबीएस डिग्री पाठ्यक्रम के लिए नामित किया गया था जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अलग रखा है। इनमें से एक छात्र को लेडी हार्डिग मेडिकल कालेज और दूसरे को मौलाना आजाद मेडिकल कालेज आवंटित किया गया है। पीठ ने कहा, 'हम इस फैसले के दौरान निश्चित रूप से दोनों छात्रों की शिकायतों से निपटेंगे। लेकिन हमारा मकसद व्यवस्थागत आधार पर मामले से निपटना है ताकि उन अन्य छात्रों को शिक्षा से वंचित न होना पड़े जिनके पास संसाधनों और कानूनी उपायों की जानकारी का अभाव है।'


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