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कानपुर आइआइटी से नाता तोड़ सकते हैं कई प्रोफेसर, जानिए क्या है कारण

ये प्रोफेसर देश के लिए काम करने की खातिर वह विदेशी संस्थानों को छोड़कर आए थे। खबरों की माने तो अब भी उनको विदेशी संस्थानों से ऑफर हैं

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 08:35 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 08:17 AM (IST)
कानपुर आइआइटी से नाता तोड़ सकते हैं कई प्रोफेसर, जानिए क्या है कारण

जागरण संवाददाता, कानपुर। आइआइटी में एक असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा चार प्रोफेसरों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराने का दुष्प्रभाव शिक्षण व्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है। परिसर का माहौल काफी तनावपूर्ण है। देश को तकनीकी विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, प्रोफेसर व वैज्ञानिक के अलावा विदेशी विश्वविद्यालयों को होनहार छात्र देने वाले प्रोफेसर अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ऐसे माहौल में कैसे पढ़ाएं। थाने व कचहरी में समय देंगे या टेक्नोक्रेट तैयार करके देश को तरक्की की राह पर ले जाएंगे। इन हालात में वह विदेशी या दूसरे शिक्षण संस्थानों का रुख कर सकते हैं।

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बाहर की दुनिया से अलग 18 से 20 घंटे तक काम करके देश को टेक्नोक्रेट देने वाले फैकल्टी की जुबां पर मंगलवार को मुकदमे की ही चर्चा रही। उनका कहना है कि विदेश में कई ऐसे उच्च शिक्षण संस्थान हैं जहां उन्हें आमंत्रित किया जाता है लेकिन, देश के लिए काम करने की खातिर वह विदेशी संस्थानों को छोड़कर आए थे। यहां की ऐसी स्थिति देखने के बाद फिर से वहां का रुख करने की सोच रहे हैं। इसके अलावा देश की दूसरी आइआइटी, आइआइएससी व एनआइटी का विकल्प भी चुन सकते हैं।

फैकल्टी चयन में एक्सीलेंट को मिलता मौका
आइआइटी कानपुर में टॉप एकेडमिक परफॉर्मर को ही फैकल्टी के पद पर मौका मिलता है। बीटेक, एमटेक व पीएचडी में एक्सीलेंट परफॉर्मेस देखी जाती है। चयन प्रक्रिया में पहले स्क्रीनिंग होती है। उससे चुनकर जो आवेदक आते हैं, उनके लिए एक सेमिनार किया जाता है। जहां उन्हें प्रेजेंटेशन देना होता है। उनसे विषय संबंधित प्रश्नोत्तरी होती है। चयन से पहले वरिष्ठ प्रोफेसरों से फीडबैक लिया जाता है।

फैकल्टी फोरम में मंथन, कैसे मदद करें परिवारों की
फैकल्टी फोरम की बैठक में इस बात पर मंथन किया गया कि आइआइटी प्रोफेसर अब चारों प्रोफेसरों के परिवार की किस तरह मदद करके सहयोग कर सकते हैं। परिसर के माहौल को लेकर बैठक में काफी तनाव रहा। इस दौरान यह बात सामने आई कि आइआइटी बोर्ड ऑफ गवर्नर (बीओजी) के मिनट्स आधिकारिक न किए जाने के कारण बेचैनी बढ़ती जा रही है। कुछ प्रोफेसरों का कहना है कि बीओजी में एससी-एसटी मामले को लेकर हुआ निर्णय अहम है और उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

तीन प्रोफेसर पर शक की सुई
इस प्रकरण में तीन प्रोफेसरों की भूमिका शक के घेरे में है। फैकल्टी फोरम में इस पर चर्चा हुई। प्रोफेसरों के एक दल ने तो यहां तक कहा कि इन्हें प्रशासनिक पदों की जिम्मेदारी न दी जानी चाहिए ताकि परिसर का माहौल बेहतर रहे।

न्यायालय का कर सकते हैं रुख
मुकदमा दर्ज होने के बाद आइआइटी के चारों आरोपित प्रोफेसर न्यायालय का रुख कर सकते हैं। उन्हें पहले भी स्टे मिल चुका है जिसके बाद आइआइटी प्रशासन विभागीय जांच कर रहा था। इस संबंध में आइआइटी प्रशासन उन्हें कारण बताओ नोटिस पहले ही जारी कर चुका है।

मंत्रालय की सीधी नजर, मांगी पल-पल की रिपोर्ट
मामले पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) सीधी नजर रखे है। संस्थान प्रशासन से मिनट टू मिनट रिपोर्ट मांगी जा रही है। इसका असर यह है कि संस्थान में ताबड़तोड़ बैठकें हो रही हैं। प्रोफेसर, छात्र, तकनीशियन, कर्मचारी सभी इस मसले पर अपने-अपने समूह में वार्ता कर रहे हैं। सभी का एक ही उद्देश्य है कि यहां का माहौल कैसे सुधरे। आइआइटी प्रशासन मंत्रालय के साथ-साथ पुलिस के संपर्क में भी है।


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