न बिजली, न भूजल फिर भी उगा रहे फसल
आधुनिक संसाधन अपनाकर जल संरक्षण की अलख जगा रहे जसविंदर..गेहूं व धान की जगह अपनाया किन्नू सरसों व नरमा, सिंचाई के लिए सोलर मोटर, तुपका व फव्वारा प्रणाली को अपनाया
मोगा (विनय शौरी)। खेतों तक बिजली न पहुंचे और भूजल भी उपलब्ध न हो तो खेती की कल्पना नहीं की जा सकते हैं। मगर जिला मोगा के गांव रौंता के किसान जसविंदर सिंह बराड़ ने इससे अलग तरीका अपनाकर न केवल अच्छा उत्पादन कर लाभ कमा रहे हैं, बल्कि जल संरक्षण में भूमिका निभाते हुए दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। उन्होंने खेती के लिए न तो पावरकॉम से बिजली का कनेक्शन लिया है और न ही कुएं या
ट्यूबवेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। जसविंदर के खेती के इस तरीके को अपनाकर पड़ोसी किसान सोमनाथ ने भी करीब 50 एकड़ खेती शुरू कर दी है तो दूर-दराज के किसान आकर कम पानी और बिना सरकारी बिजली
का कनेक्शन लिए खेती करने का तरीका सीख रहे हैं।
जसविंदर के मुताबिक एक बार उनके पिता गुरचरण सिंह कृषि मेले में गए थे। वहां उन्हें खेती ऐसी ही तकनीक के बारे में बताया गया था। उन्होंने यह बात उससे साझा की तो उसने इसके बारे में पूरा पता किया। इसके बाद उसने 20 एकड़ के फार्म में कभी बिजली कनेक्शन लेकर मोटर लगाने के बारे में सोचा ही नहीं। साथ ही अलग तरह से खेती करने की ललक और भूजल स्तर को बचाने के लिए कई तरह की जानकारियां इकट्ठा की। पूरी जानकारी लेने के बाद उन्होंने अपने खेत में 200 फुट लंबा, 50 फुट चौड़ा और 12 फुट गहरा एक पक्का टैंक तैयार किया। कैनाल वाटर के पानी को वह इस टैंक में भर लेते थे और इसके जरिए इंजन चलाकर खेती करते थे।
अब इंजन बंद कर सोलर मोटर का उपयोग शुरू किया इससे डीजल की खपत बंद हो गई। वहीं सिंचाई के लिए तुपका और फव्वारा प्रणाली को अपना लिया। बीते आठ सालों से उन्होंने अपने खेतों में कभी धान या गेहूं पैदा नहीं किया, बल्कि 12 एकड़ में खेत को किन्नू का बाग बना दिया है, जिससे आज डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ प्रति साल की आय हो रही है। इसके अलावा चार एकड़ में सरसों और चार एकड़ में नरमा लगाया है। उन्हें देखकर कई अन्य किसानों ने भी सोलर मोटर के साथ खेतों में वाटर टैंक की सुविधा को अपना लिया है।
भूजल बचाकर की जा सकती है लाभदायक खेती
जसविंदर सिंह बराड़ बताते हैं कि गिरते जा रहे भूजल स्तर के लिए आज के किसान की अहम भूमिका है। यदि आज भी किसान भूजल को बचाने के लिए गंभीर नहीं हुए तो भविष्य में खेती नहीं कर पाएंगे। किसान जागरूकता की कमी के चलते कर्ज में डूबता जा रहा है, जबकि थोड़ी सी समझ से ही अपनी चार गुणा तक बढ़ा सकता है। सरकार तो खेतों में वाटर टैक बनाने, मछलीपालन और मुर्गी पालन के लिए सब्सिडी दे रही है। यदि किसान अपने खेतों में वाटर टैंक तैयार कर उसमें नहरी पानी स्टोर करना शुरू कर दें तो वह जब चाहें अपने खेतों में तुपका प्रणाली के जरिए सींच सकते हैं। वाटर टैंक के उपर ही किसान मुर्गी पालन कर सकते हैं। मुर्गी पालन के दौरान निकलने वाली गंदगी मछलियों के लिए अच्छी फीड बन सकता है। इसके अलावा मुर्गियों का मल खेतों में
अच्छी खाद का काम भी देगा, यानी आम के आम गुठलियों के दाम।
सोलर सिस्टम से निर्भरता खत्म
जसविंदर सिंह का कहना है कि आज किसानों को सरकार की ओर से मिल रही बिजली का इंतजार करना पड़ता
है। यदि किसान सब्सिडी का लाभ लेते हुए सोलर सिस्टम की सुविधा अपना लें तो उन्हें बिजली पर निर्भर होने की
कोई जरूरत ही नहीं रह जाएगी। खेती के नए तरीकों को देखने के लिए दूर-दूर से किसान उनके पास आते हैं। कम लागत में अधिक मुनाफा होता देख कई अन्य किसान भी फसली चक्र से बाहर आ चुके हैं।
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