युद्ध पोत बनाने को निजी कंपनियों को नहीं होगी 'पूर्व अनुभव' की जरूरत
नए युद्ध पोत सौदों के संबंध में नौ सेना को अब रक्षा मंत्री की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। देश में युद्ध पोत निर्माण में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने बड़ा नीतिगत फैसला किया है। अब निजी कंपनियों को युद्ध पोत (वार शिप) बनाने का सौदा प्राप्त करने के लिए 'पूर्व अनुभव' की जरूरत नहीं होगी। ऐसा होने पर नयी कंपनियां भी वार शिप बनाने के सौदा हासिल कर सकेंगी। साथ ही नए युद्ध पोत सौदों के संबंध में नौ सेना को अब रक्षा मंत्री की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
सूत्रों के मुताबिक यह अहम फैसला प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता में पीएमओ में हुई उच्च स्तरीय बैठक में किया गया है। सूत्रों के मुताबिक पीएमओ ने निजी क्षेत्र में शिप बिल्डिंग की क्षमता बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय और नौ सेना को भविष्य की जरूरत के संबंध में पहले से ही संबंधित पक्षों से परामर्श करने को भी है। साथ ही शिप बिल्डिंग के आरएफपी में 'पूर्व अनुभव' की जरूरत को भी आगे से हटाने का निर्देश दिया है।
सूत्रों ने कहा कि यह निर्देश 25 मई को हुई बैठक में दिया गया है। इस उच्च स्तरीय बैठक में औद्योगिक नीति एवं सवंर्द्धन विभाग (डीआइपीपी) के सचिव, रक्षा उत्पादन सचिव, जहाजरानी मंत्रालय के सचिव, रक्षा मंत्रालय के महानिदेशक (खरीद) और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी शामिल मौजूद थे।
सूत्रों ने कहा कि बैठक में मौजूदा डीआइपीपी सचिव को निजी क्षेत्र के शिपयार्ड्स को रक्षा क्षेत्र की शिप बिल्डिंग के बारे में जानकारी देने और उनका नजरिया जानने को भी कहा गया है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय को शिप बिल्डंग के सौदे पूरे न करने वाले शिपयार्ड को ब्लैकलिस्ट करने को भी कहा है।
सूत्रों ने कहा कि इस उच्च स्तरीय बैठक हुए फैसलों पर अमल करने के लिए जहाजरानी मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक स्टीयरिंग समिति भी बनायी गयी है जिसमें रक्षा उत्पादन सचिव और डीआइपीपी सचिव भी बतौर सदस्य शामिल हैं।
खास बात यह है कि युद्ध पोत सौदों के संबंध में नौसेना की निर्णय लेने मौजूदा शक्ति को भी थोड़ा कम किया गया है। अब युद्ध शिप बनाने का सौदा नॉमिनेशन के आधार पर होगा या प्रतिस्पर्धा के आधार पर यह तय करने से पहले नौ सेना को रक्षा मंत्री से मंजूरी लेनी होगी।
सूत्रों ने कहा कि युद्ध पोत उद्योग भारत के सामरिक हितों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसीलिए सरकार इस क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी भी बढ़ाना चाहती है।
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