कोरोना की दूसरी लहर में रिहा कैदी फिलहाल नहीं जाएंगे जेल, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से मांगी रिपोर्ट
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में जेलों की भीड़ कम करने और कैदियों को संक्रमण से बचाने के लिए जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई पावर कमेटी ने रिहाई दी थी उन कैदियों को फिलहाल जेल नहीं जाना होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में जेलों की भीड़ कम करने और कैदियों को संक्रमण से बचाने के लिए जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई पावर कमेटी ने रिहाई दी थी उन कैदियों को फिलहाल जेल नहीं जाना होगा। कोर्ट ने राज्यों से कैदियों की रिहाई के आधार और मानक मांगते हुए छूटे कैदियों को वापस जेल भेजने पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट इस मामले में तीन अगस्त को फिर सुनवाई करेगा।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार को जेल में कैदियों को कोरोना से बचाने के मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। इसके पहले मामले में न्यायमित्र वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि उनके पास ऐसी कोई रिपोर्ट और आंकड़े नहीं हैं जिससे पता चले कि शीर्ष कोर्ट के आदेश पर राज्यों में गठित हाई पावर कमेटी ने किस आधार पर कैदियों की रिहाई की और कुल कितने कैदी रिहा हुए।
जस्टिस रमना ने कहा कि कोर्ट भी जानना चाहता है कि कैदियों की रिहाई के मानक और आधार क्या हैं। कुछ राज्य उम्र और बीमारियों को रिहाई में तरजीह दे रहे हैं, लेकिन बाकी के क्या आधार और मानक हैं-यह पता नहीं है। कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी को निर्देश दिया कि वह राज्यों से आंकड़े एकत्र कर रिपोर्ट दाखिल करे कि हाई पावर कमेटी ने किन मानकों और आधार पर कैदियों की रिहाई के आदेश जारी किए। कोर्ट ने राज्यों से भी रिपोर्ट मांगी है।
इससे इतर एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत मिलने के बावजूद आदेश न पहुंचने के कारण रिहाई में देरी होने पर चिंता जताते हुए कहा कि कोर्ट जेल में जल्द आदेश पहुंचाने के लिए सुरक्षित, प्रामाणिक और भरोसेमंद व्यवस्था लागू करेगा। कोर्ट ने इस डिजिटल युग में भी आदेश की प्रति जेल पहुंचने में देरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सूचना एवं संचार तकनीक के इस युग में हम अभी भी आदेश भेजने को कबूतरों के लिए आसमान की ओर देख रहे हैं।
पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 उम्र कैदियों को अपराध के वक्त किशोर होने के आधार पर जमानत देते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था, लेकिन कोर्ट का आदेश जेल पहुंचने में देरी के कारण कैदियों की रिहाई चार दिन बाद हो सकी। कैदियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में इस बात का जिक्र करते हुए ईमेल के जरिये जमानत आदेश जेल पहुंचाने का सुझाव दिया था, ताकि जमानत मिलने के बाद रिहाई में देरी न हो। उठाए गए उस मामले को कोर्ट ने संज्ञान में लिया।
शुक्रवार को चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने जेल में आदेश पहुंचने में देरी के कारण कैदी की रिहाई देर से होने के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए आदेश पहुंचाने की त्वरित व्यवस्था लागू करने की बात कही। पीठ ने त्वरित और सुरक्षित तरीके से जेल तक आदेश पहुंचाने की व्यवस्था लागू करने पर सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेट्री जनरल से दो सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें भी जेल में इंटरनेट व्यवस्था के बारे में बताएंगी, क्योंकि जेल मे इंटरनेट कनेक्टिविटी के बगैर आदेश जेल तक पहुंचना संभव नहीं होगा।
कोर्ट ने राज्यों को इस मुद्दे पर नोटिस भी जारी करते हुए मामले की सुनवाई में मदद के लिए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे को न्यायमित्र नियुक्त किया। कोर्ट ने दवे से कहा कि वह योजना के बारे में सेक्रेट्री जनरल से विमर्श करेंगे। सेक्रेट्री जनरल इसमें सालिसिटर जनरल के साथ भी सहयोग करेंगे। पीठ ने सेक्रेट्री जनरल से दो सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट एक महीने में नई व्यवस्था लागू करने का प्रयास करेगा।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जेल में आदेश पहुंचने में देरी के कारण रिहाई में देरी की स्थिति पर कहा कि सूचना संचार के इस युग में ऐसा होना 'अति' है। जेल अथारिटी कोर्ट आदेश की प्रति प्राप्त होने तक कैदी को रिहा नहीं करती। इस पर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रिहाई में देरी ठीक नहीं है, लेकिन जेल अथारिटी का आदेश देखकर रिहाई देने का नियम इसलिए है, क्योंकि कई बार फर्जीवाड़ा होता है। मेहता ने कहा कि जेल अथारिटीज को कोर्ट वेबसाइट पर अपलोड आदेश देखकर रिहाई दे देनी चाहिए।
चीफ जस्टिस ने कहा कि सूचना एवं संचार तकनीक के इस युग में, हम अभी भी आदेश भेजने को कबूतरों के लिए आसमान की ओर देख रहे हैं। जस्टिस रमना ने कहा कि वे नई व्यवस्था लागू करेंगे, जिसमें कोर्ट का आदेश त्वरित, सुरक्षित और प्रमाणिक (फास्ट एंड सेक्योर ट्रांसमीशन आफ इलेक्ट्रानिक रिकार्ड) रूप से जेल तक या संबंधित जिला अदालत व हाई कोर्ट तक पहुंचेगा। पीठ ने कहा कि इससे न सिर्फ समय बचेगा, बल्कि आदेश पहुंचना सुनिश्चित होगा और रिहाई में देरी नहीं होगी।