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मोदी व चिनफिंग मुलाकात के दौरान तय करेंगे भारत-चीन के लिए दो दशकों का एजेंडा

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्तों को दरकिनार कर चीन के साथ संरक्षणवाद के मुद्दे पर खड़ा होता है या नहीं?

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 23 Apr 2018 09:35 PM (IST)Updated: Tue, 24 Apr 2018 06:45 AM (IST)
मोदी व चिनफिंग मुलाकात के दौरान तय करेंगे भारत-चीन के लिए दो दशकों का एजेंडा

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अगले दो दशकों के दौरान भारत और चीन के बीच रिश्तों की दशा व दिशा कैसी रहेगी, इसे काफी हद तक इस हफ्ते चीन के शहर वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की होने वाली मुलाकात तय करेगी। दोनों नेताओं के बीच यह बैठक सीमा विवाद को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर दूर करने के साथ ही संयुक्त सैन्य अभ्यास के जरिए दोनों सेनाओं के बीच भरोसे को बढ़ाने संबंधी भी कुछ उपायों का भी रास्ता साफ करेगी। संकेत इस बात के भी हैं कि अमेरिका की अगुवाई में जिस तरह से आर्थिक संरक्षणवाद को हवा दी जा रही है उसके खिलाफ मोदी और चिनफिंग आवाज बुलंद कर सकते हैं।

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उधर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज चीन में आगामी शीर्ष वार्ता की तैयारियों में जुटी रही। स्वराज की बीजिंग में राष्ट्रपति चिनफिंग, उपराष्ट्रपति वांग किशान के साथ मुलाकात हुई। रविवार को स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री से काफी देर तक बात की थी और उसके बाद ही उन्होंने पीएम मोदी के चीन आगमन की सूचना सार्वजनिक की थी। बहरहाल, सोमवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी बीजिंग पहुंच गई हैं। उनकी चीन के रक्षा मंत्रालय के आला अधिकारियों के साथ सुरक्षा से जुड़े तमाम मुद्दों पर बातचीत होगी, जिसके आधार पर मोदी और चिनफिंग सीमा पर विश्वास बहाली के नए उपायों की घोषणा करेंगे।

माना जा रहा है कि दोनों देश एक बार फिर संयुक्त सैन्य अभ्यास का सिलसिला शुरू करेंगे। विवादित सीमाओं पर डोकलाम जैसी घटना फिर सामने नहीं आये उसके लिए भी दोनों नेताओं के समक्ष कुछ प्रस्ताव रखे जाएंगे। जानकार मान रहे हैं कि इन प्रस्तावों पर सहमति बहुत कुछ दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत केमिस्ट्री पर भी निर्भर करेगा।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मोदी और चिनफिंग के व्यक्तिगत रिश्तों के बीच एक बात खास है कि जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था, तब भी इनके बीच संवाद खत्म नहीं हुआ। डोकलाम विवाद के दौरान ही एससीओ की बैठक में और इस विवाद के कुछ ही दिनों बाद ब्रिक्स के शीर्ष नेताओं की बैठक में मोदी और चिनफिंग की मुलाकात हुई थी। असलियत में वैश्विक नेताओं में जितनी बार मोदी और चिनफिंग की मुलाकात हुई है शायद ही मौजूदा किसी दूसरे नेताओं के बीच उतनी बार मुलाकात हुई हो। यह एक बड़ी वजह है कि द्विपक्षीय रिश्तों में संवाद को कभी खत्म नहीं किया गया। जाने-माने रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी भी मानते हैं, 'दो महीने के भीतर दो बार मोदी चीन की यात्रा पर जाएंगे जो इसके महत्व को बताता है। मोदी व्यक्तिगत कूटनीति में भरोसे करते हैं। हालांकि उन्होंने पूर्व में भी इस तरह की कोशिश की है, लेकिन उसका खास फायदा नहीं हुआ था।'

भारतीय पीएम और चीन के राष्ट्रपति के बीच इस मुलाकात में आर्थिक मुद्दे भी काफी प्रमुखता से उठेंगे। वर्ष 2015 में मोदी और चिनफिंग मुलाकात में चीन की तरफ से भारतीय वस्तुओं के आयात को बढ़ाने का जो वादा किया गया था उसमें एक कदम भी प्रगति नहीं हुई है। लिहाजा व्यापार घाटा चीन के पक्ष में 55 अरब डालर का हो गया है। मोदी की तरफ से भारत से रसायन व दवाओं के निर्यात को बढ़ाने की पुरजोर मांग रखी जाएगी। इसके साथ ही अमेरिका की तरफ से लगातार उठाये जा रहे संरक्षणवादी कदमों पर भी विचार विमर्श होगा।

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्तों को दरकिनार कर चीन के साथ संरक्षणवाद के मुद्दे पर खड़ा होता है या नहीं? माना जा रहा है कि मोदी व चिनफिंग की मुलाकात के बाद चीन की कंपनियों की तरफ से भारत में होने वाले निवेश को लेकर जो संशय बना हुआ है वह भी खत्म होगा। तनाव को देखते हुए चीन की कुछ कंपनियों ने भारत में निवेश संबंधी अपनी परियोजनाओं की रफ्तार धीमी कर दी है।


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