ब्रिटेन के लिए आसान नहीं होगा विजय माल्या का प्रत्यर्पण रोकना
ब्रिटेन से प्रत्यर्पण के पुराने रिकार्ड को देखते हुए विजय माल्या जैसे बड़े उद्योगपति को वापस लाना मुश्किल दिख रहा था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विजय माल्या का प्रत्यर्पण लंबे समय तक रोकना ब्रिटेन के लिए आसान नहीं होगा। भारत ने ब्रिटेन को 1992 के एक द्विपक्षीय समझौते की याद दिलाई है, जिसके तहत दोनों देशों को एक-दूसरे के गैर जमानती वारंट को तामिल करना होगा। भारत में अदालत ने विजय माल्या के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर रखा है। भारत में वांछित आरोपियों के प्रत्यर्पण में ब्रिटेन का रिकार्ड बहुत खराब रहा है और मानवाधिकार की आड़ में ब्रिटिश अदालत प्रत्यर्पण से इनकार करती रही है।
ब्रिटेन से प्रत्यर्पण के पुराने रिकार्ड को देखते हुए विजय माल्या जैसे बड़े उद्योगपति को वापस लाना मुश्किल दिख रहा था। वाररूम लीक मामले के आरोपी रवि शंकरण, आइपीएल घोटाले के आरोपी ललित मोदी और गुलशन कुमार हत्याकांड में आरोपी नदीम को ब्रिटेन ने आजतक प्रत्यर्पित नहीं किया है। ऐसे में भारत ने अब नया रास्ता द्विपक्षीय संधि का ढूंढ निकाला है। दरअसल भारत और ब्रिटेन के बीच 1992 में भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत दोनों देशों को एक दूसरे की अदालत से जारी गैर जमानती वारंट का तामिल करने के लिए वचनबद्ध हैं। लेकिन 25 सालों से किसी ने इस समझौते पर ध्यान ही नहीं दिया और सीधे प्रत्यर्पण की मांग करते रहे।
यह भी पढ़ें- बच्चों को 40 मिलियन डॉलर भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या से पूछे तीखे सवाल
सूत्रों के अनुसार पिछले महीने विजय माल्या के खिलाफ जांच कर रहे सीबीआइ और ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान इस समझौते की ओर गया। दोनों एजेंसियों ने सरकार को इस समझौते के बारे में आगाह किया। बताया जाता है कि 21 फरवरी को ब्रिटेन के गृहमंत्रालय और क्राउन प्रोसेक्यूशन सेवा के अधिकारियों के साथ बैठक में भारतीय अधिकारियों ने इस समझौते के बारे में बताया।
यह भी पढ़ें- विजय माल्या पर सुप्रीम कोर्ट का रुख सख्त, कहा संपत्ति का ब्यौरा देंगे या नहीं?
इस समझौते के आलोक में विजय माल्या के प्रत्यर्पण का मुद्दा नए सिरे से उठाया गया। वैसे भारत औपचारिक रूप में नौ फरवरी को ही विजय माल्या के प्रत्यर्पण का अनुरोध ब्रिटेन को भेज चुका है। माल्या पर बैंकों का 9000 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। आरोप है कि माल्या ने जानबूझकर इस कर्ज को वापस नहीं किया और किंगफिशर एयरलाइंस को दिवालिया घोषित कर दिया।