राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, दुखद है विश्वविद्यालयों के अंदर हिंसा और अशांति
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी संविधान प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है।
कोच्चि, प्रेट्र : विश्वविद्यालय परिसरों में स्वतंत्र सोच की वकालत करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को कहा कि छात्रों और शिक्षकों को अशांति की संस्कृति को बढ़ावा देने की बजाय तार्किक विचार-विमर्श और बहस में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा, यह देखना दुखद है कि छात्र हिंसा और अशांति के भंवर जाल में फंसते जा रहे हैं।
राष्ट्रपति यहां छठे केएस राजामोनी मेमोरियल लैक्चर को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी संविधान प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है। लिहाजा, तर्कसंगत आलोचना और असहमति के लिए हमेशा स्थान होना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा देशव्यापी प्राथमिकता होनी चाहिए। किसी भी समाज को महिलाओं और बच्चों के प्रति उसकी सोच की कसौटी पर ही परखा जाता है। भारत को इस कसौटी पर असफल नहीं होना चाहिए।
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