Move to Jagran APP

भारत के इस मित्र देश पर क्‍यों है डोरे डाल रहा है ड्रैगन, जानें- भारत के खिलाफ क्‍या है चीन की बड़ी चाल

दुनियाभर के मुल्‍कों के लिए मालदीव अपने पर्यटन के लिए आकर्षित करता है। लेकिन चीन के लिए यह मुल्‍क आर्थिक और सामरिक दृष्टि से उपयोगी है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 12:50 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 04:05 PM (IST)
भारत के इस मित्र देश पर क्‍यों है डोरे डाल रहा है ड्रैगन, जानें- भारत के खिलाफ क्‍या है चीन की बड़ी चाल

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। दक्षिण एशिया का छोटा सा मुल्‍क मालदीव इन दिनों सुर्खियों में है। यहां हो रहे आम चुनाव पर चीन और भारत की पैनी नजर है। आप सोच रहे होंगे आखिर मालदीव के चुनाव से भारत और चीन का क्‍या लेना-देना है। मालदीव में हो रहे चुनाव में दोनों देशों की क्‍या दिलचस्‍पी हो सकती है। आइए हम आपको बताते हैं कि चीन और भारत यहां के चुनावी नतीजों पर क्‍यों नजर गड़ाए हैं।

loksabha election banner

मालदीव पर ड्रैगन की की पैनी नजर, भारत की चिंताएं
दुनियाभर के मुल्‍कों के लिए मालदीव अपने पर्यटन के लिए आकर्षित करता है। लेकिन चीन और भारत के लिए यह मुल्‍क आर्थिक और सामरिक दृष्टि से उपयोगी है। दरअसल, चीन की महत्‍वाकांक्षी परियोजना 'वन बेल्‍ट वन रोड' का मालदीव अहम हिस्‍सा है। इसलिए हाल के वर्षों में मालदीव में चीन की दिलचस्‍पी बढ़ी है। मालदीव भारत के लिए भी अहम है। हिंद महासागर में जिस तरह से चीनी हस्‍तक्षेप बढ़ रहा है। उससे भारत की सामरिक और आर्थिक हितों का बड़ा खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। मालदीव कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि भारत के लिए अहम है। भारत समय-समय पर युद्धपोत, हेलीकॉप्‍टर, रडार के अलावा कई परियोजनाओं में सहयोग प्रदान करता है।

यामीन और चीन की गाढ़ी दोस्‍ती ने भारत के हितों को प्रभावित किया है। यामीन के शासन के दौरान चीन ने यहां कई परियोजनाओं में निवेश किया है। इसमें मालदीव की राजधानी माले में एक एयरपोर्ट भी शामिल है। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने मालदीव में करीब 83 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। 

भारत के लिए खास है मालदीव
सामरिक लिहाज से मालदीव की भौगोलिक संरचना भारत के लिए बेहद खास है। भारत के लक्ष्‍यद्वीप से मालदीव की दूरी सिर्फ 1200 किलोमीटर है। ऐसे में अगर चीन मालदीव में प्रवेश करता है तो उसका भारत के सामरिक ठिकानों तक पहुंचना आसान होगा। यही वजह है कि यहां ड्रैगन के किसी हलचल से भारत विचलित होना लाजमी है। चीन बहुत चतुराई से मालदीव में पांव पसार रहा है। वह मालदीव में आर्थिक हितों की आड़ में अपने सामरिक हितों की पूर्ति कर रहा है। वह विकास के नाम पर मालदीव में अपना इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर प्‍लान कर रहा है। यह भारत के चिंता का विषय है।

कारोबार और व्‍यापार के लिहाल से भी मालदीव काफी अहम है। दरअसल, मालदीव द्वीपों का देश है। यहां करीब 1200 द्वीप है। 90 हजार वर्ग किलोमीटर का यह देश समुद्री जहाजों का महत्‍वपूर्ण मार्ग है। इसलिए चीन की नजर इस मुल्‍क पर है। यह समुद्री मार्ग चीन के लिए दोहरे फायदे का सौदा है। व्‍यापार के अलावा ये मार्ग उसके सामरिक हितों को भी साधते हैं।
भारत के पक्षकार है सोलिह
वर्ष 2008 में मालदीव में राजतंत्र का अंत और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई। मोहम्‍मद नशीद इस देश के प्रथम अध्‍यक्ष निर्वाचित हुए। नशीद को भारत का समर्थक माना जाता है। उनके कार्यकाल में भारत-मालदीव के मधुर संबंध रहे। लेकिन भारत के लिए यह स्थितियां लंबे समय तक नहीं रहीं। वर्ष 2015 में आतंकवादी विरोधी कानूनों के तहत नशीद को सत्‍ता से बेदखल कर दिया गया। वर्ष 2018 में मालदीव में राजनीतिक संकट के दौरान नशीद ने भारत से सैन्‍य मदद मांगी थी।
वर्ष 2018 में भारत ने कूटनीतिक तौर पर यामीन के शासन की निंदा की और यहां हुए चुनाव में सोहिल को अपना समर्थन दिया है। इस चुनाव में मालदीव में मौजूदा राष्‍ट्रपति मोहम्‍मद सोलिह की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी जीत की ओर अग्रसर है। इससे सोलिह और मजबूत होंगे। मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत से मोहम्‍मद सोलिह और मजबूत होंगे। यह भी माना जा रहा है कि इस जीत के साथ नशीद की वापसी तय मानी जा रही है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.