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प्रवासी पक्षियों के आने के लिए ओखला पक्षी विहार में की जा रही ये तैयारी

सिंचाई विभाग ओखला बैराज के 27 में से 18 गेट बदलने जा रहा है। इससे पहले बैराज और पक्षी विहार की झील से पानी निकालने की तैयारी चल रही है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 25 Sep 2017 09:48 AM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2017 09:48 AM (IST)
प्रवासी पक्षियों के आने के लिए ओखला पक्षी विहार में की जा रही ये तैयारी

नोएडा (प्रभात उपाध्याय)। ओखला बैराज के गेट को बदलने के लिए सिंचाई विभाग ने ओखला पक्षी विहार की झील को सुखाने की तैयारी शुरू कर दी है। इससे पक्षी विहार के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चंद दिनों में प्रवासी पक्षी (माइग्रेटरी बर्ड) आना शुरू होंगे। ऐसे में जब झील में पानी ही नहीं रहेगा तो यहां पक्षी क्यों ठहरेंगे।

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सिंचाई विभाग ओखला बैराज के 27 में से 18 गेट बदलने जा रहा है। इससे पहले बैराज और पक्षी विहार की झील से पानी निकालने की तैयारी चल रही है। पर्यावरणविदें का कहना है कि गेट बदलने की टाइमिंग गलत है, क्योंकि अक्टूबर के पहले सप्ताह से प्रवासी पक्षी आना शुरू हो जाते हैं। अगर झील सुखा दी गई तो यहां प्रवासी पक्षी नहीं रुकेंगे। सबसे ज्यादा प्रभाव डाइवर्स (पानी में तैरने वाले पक्षी) पर पड़ेगा। वे ओखला पक्षी विहार की जगह सुलतानपुर बर्ड सेंचुरी, सूरजपुर और दिल्ली के चिड़ियाघर का रुख करेंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि साइबेरिया, ब्रिटेन, मंगोलिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों को अगर एक बार झील में पानी नहीं मिला तो उनका मोहभंग होगा, जिसका नतीजा यह होगा कि वे यहां कभी नहीं लौटेंगे।

गेट थे तैयार, तो क्यों हुई देरी : ओखला बैराज के नए गेट काफी पहले ही बनकर तैयार हो गए थे, लेकिन क्लोजर न मिलने व अन्य कारणों से इसे अब बदला जा रहा है। विशेषज्ञों ने इस पर भी सवाल खड़े किए हैं। पर्यावरणविद राकेश खत्री कहते हैं कि गेट मानसून से पहले बदल दिए जाने चाहिए थे, लेकिन किसी को पक्षी विहार का ख्याल ही नहीं आया।

ओखला पक्षी विहार पर थोड़ा प्रभाव तो पड़ेगा, लेकिन गेट बदला जाना भी जरूरी है। हमने नवंबर के प्रथम सप्ताह तक काम खत्म करने के लिए कहा है। -ललित वर्मा, कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट, मेरठ जोन

अगर झील में पानी ही नहीं रहेगा तो पक्षी कैसे आएंगे। प्रवासी पक्षियों में अधिकतर डाइवर्स होते हैं। जिसमें विभिन्न प्रजातियों की डक शामिल हैं। ये पानी में ही रहते हैं। दूसरे वेडर्स हैं, जो घास-फूस में रहते हैं। सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डाइवर्स पर पड़ेगा। -डॉ. फैयाज ए. खुदसर, निदेशक, यमुना बायो डाइवर्सिटी पार्क

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