PPE का यदि नहीं होगा सही तरीके से निपटारा तो भविष्य में बन जाएगी बड़ी समस्या
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए पूरी दुनिया प्रोटेक्टिव किट का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रही है। लेकिन इनका निपटारा सही तरीके से नहीं हो रहा है। इसलिए ये भविष्य का खतरा बन गई हैं।
नई दिल्ली। प्रर्सनल प्रोटेक्टिव किट या इक्यूपमेंट्स वर्तमान में न सिर्फ समय की मांग हैं बल्कि अहम जरूरत भी हैं। पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस के कहर के बीच इन्हीं इक्यूपमेंट्स ने कोरोना योद्धाओं को अब तक बचाकर रखा हुआ है। पूरी दुनिया में लगातार पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट्स की मांग भी है और कमी भी है। यही वजह है कि दुनिया के कई देशों में इन्हें बनाने का काम भी धड़ल्ले से चल रहा है। लेकिन ये भविष्य के लिए चुनौती बन सकते हैं। सुनने में ये बड़ा अजीब जरूर लगता है लेकिन अब ये एक हकीकत के तौर पर यूरोप में सामने आने लगा है। इतना ही नहीं यदि इसको रोकने के लिए पूरी दुनिया ने अभी से ही सही कदम नहीं उठाए तो ये भविष्य की बड़ी समस्या भी बन सकता है।
आपको बता दें कि पीपीई की बढ़ती मांग और सप्लाई के बीच इसको धड़ल्ले से हर कोई इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन समस्या इसके डिस्पोजल को लेकर बनी हुई है। देखा जा रहा है कि इनका इस्तेमाल कर इन्हें कूड़े में या फिर जहां तहां फेंका जा रहा है जो पर्यावरण के लिए समस्या बन रहा है। इस तरह की चीजों में सबसे अधिक फेस मास्क,सैनिटाइजर की बोतलें और ग्लव्स शामिल हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि मौजूदा समय में इस्तेमाल किए जा रहे मास्क कपड़े और एक खास मेटेरियल के बने हैं। इनमें प्लास्टिक का भी इस्तेमाल हुआ है। इसके अलावा लेटेक्स रबर से बने दस्ताने इको फ्रेंडली नहीं होते। इन्हें बनाने में ऐसे केमिकल इस्तेमाल होते हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। वर्तमान समय में जो समस्या यूरोपीये देशों के सामने आई है उनमें इस तरह की चीजों का सही तरीके से डिस्पोजल न होना है। इसकी वजह से ये खतरनाक कचरा समुद्र में पहुंच रहा है, जो भविष्य में वन्य जीव के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
इस तरह की चीजों का सही निपटारा न होने की वजह से ये पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। अमेरिका, ग्रीस, तुर्की, हांगकांग और ब्रिटेन समेत कुछ अन्य देशों में ये समस्या शुरू हो चुकी है। डायचे वेले अखबार के मुताबिक ग्रीस के शहर कालामांता की सड़कें या फिर हांगकांग से कुछ मील दूर स्थित सोको द्वीप जैसी जगहों पर भी कचरा पहुंच गया हैं। हैरत की बात ये भी है कि सोको द्वीप पर कोई कोई इंसान नहीं रहता है। यहां पर ये कचरा समुद्र के सहारे पहुंचा है। पर्यावरण प्रेमियों के मुताबिक इस कचरे में मास्क, सेनेटाइजर की खाली बोतले और दस्ताने शामिल हैं। यहां पर काम करने वाले पर्यावरण संरक्षण समूह ओशेन्सएशिया के गैरी स्टोक्स के मुताबिक यहां पर उन्हें 100 से अधिक मास्क तट पर फैले मिले हैं।
इस कचरे का यहां पर पाया जाना ये बता रहा है कि इन सभी चीजों का निपटारा सही तरीके से नहीं किया जा रहा है, न ही इनके निपटारे को लेकर दुनियार भर की सरकारों ने कोई पॉलिसी बनाई है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि यूरोप में इस तरह की समस्या सामने आई है तो एशिया के उन देशों में ये समस्या कहीं अधिक विकराल रूप ले सकती है, क्योंकि यहां पर उस तरह के संसाधन और तकनीक नहीं है जिनसे इनका सही निपटारा किया जा सके। वहीं एशियाई देशों में शिक्षा का स्तर और लोगों में इनके निपटारे के प्रति जागरुकता का भी अभाव है।
भारत की ही यदि बात की जाए तो यहां पर आज भी छोटी-छोटी पॉलीथिन को नाले में या सड़कों पर फेंक दिया जाता है। बाद में यही पानी के संपर्क में आती हैं और उसे दूषित करती हैं। इसके अलावा इनमें बांधकर फेंका गया कचरा आवारा पशुओं के पेट में चला जाता है जो उनकी जान तक ले लेता है। यही वजह है कि इन सभी चीजों का सही तरीके से निपटारा करने के लिए सभी देशों को एक पॉलिसी बनाने की जरूरत है।
डायचे वेले ने समुद्री जीवों पर शोध करने वाले और ग्रीस के आर्किपेलागोज इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन कंजर्वेशन की रिसर्च निदेशक अनेस्तेसिया मिलिऊ के हवाले से लिखा है कि इन्हें सड़कों पर फेंके जाने की सूरत में ये चीजें बारिश या हवा के जरिए समुद्र में पहुंच जाती हैं। उनके मुताबिक इनको आम कचरे के डिब्बे में फेंकना भी समस्या का समाधान नहीं है। पानी में पहुंचने पर इस तरह की प्लास्टिक जानवरों या समुद्री जीवों के लिए की जान का खतरा बन जाती है।
स्टोक्स की मानें तो पानी में इस तरह का कचरा यदि कुछ दिनों तक पड़ा रह जाए तो उसमें एल्गी या बैक्टीरिया पनपने लग जाते हैं। इसकी वजह से हांगकांग के समुद्र में जहां काफी संख्या में पिंक डॉल्फिन और हरे कछुए पाए जाते हैं उन्हें ये खाने की चीज नजर आती है। यदि वे इसको खा लें तो उनके लिए ये जानलेवा साबित हो सकता है। ब्रसेल्स के एनजीओ जीरो वेस्ट यूरोप' के कार्यकारी निदेशक जोआन मार्क साइमन की मानें तो यूरोप की रीसाइक्लिंग योजना में रीटेलर्स और निर्माताओं को प्लास्टिक पैकेजिंग के इकट्ठा करने और ट्रीट किए जाने का खर्च उठाना होता है, लेकिन दस्ताने पैकेजिंग की श्रेणी में नहीं आते, इसलिए उन्हें घरेलू कचरे वाले कूड़ेदान में नहीं डाल सकते हैं। लेटेक्स रबर से बने दस्ताने गलने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।
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