Move to Jagran APP

माघ में सूख रहीं नदियां, जेठ में सूखा, सावन में बाढ़ का संकेत

बालू खनन, जलप्रवाह को रोकने और नदियों के वातावरण के साथ छेड़छाड़ के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 10 Jan 2018 09:50 AM (IST)Updated: Wed, 10 Jan 2018 12:41 PM (IST)
माघ में सूख रहीं नदियां, जेठ में सूखा, सावन में बाढ़ का संकेत

लोहरदगा (विक्रम चौहान)। झारखंड के सात जिलों को जलापूर्ति करने वालीं कोयल और शंख नदियां जल विहीन हो गई हैं। जेठ की भीषण गर्मियों में नदियों की धारा का कुछ सिमट जाना तो अब तक देखा था, लेकिन माघ की भरी ठंड में इनका पूरी तरह सूख जाना गंभीर संकेत दे रहा है। नदियों से बालू का अंधाधुंध खनन इसका सबसे बड़ा कारण है। यदि समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो देश की हर नदी का हाल यही होगा।

loksabha election banner

पिछले कुछ वर्षों का आकलन बताता है कि देश की नदियां जहां अब गर्मियों में सूख रही हैं तो बारिश में बाढ़ का सबब बन रही हैं। सूखे के तुरंत बाद बाढ़ ने खेती को उजाड़ कर रख दिया।

ठंड में मच रहा हाहाकार

इन नदियों में अभी से ही रेत उड़ने लगी है। गर्मी के मौसम में तो नदियों की बालू आग उगलने लगेगी। ऐसे में लोग पानी के लिए तड़पेंगे। लोहरदहा समेत अन्य जिलों में पानी के लिए हाहाकार मचना शुरू हो गया है। लोगों को चिंता सता रही है कि अब ये हाल है तो गर्मियों में क्या होगा। नगर परिषद को जलापूर्ति का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। 

कोयल-शंख पर निर्भर हैं कई जिले

शंख नदी छोटानागपुर के पश्चिमी छोर से उतरी कोयल नदी के विपरीत प्रवाहित होती है। यह झारखंड के गुमला जिले के रायडीह से प्रारंभ होकर 255 किलोमीटर तक बहती है। झारखंड के एक बड़े क्षेत्र को पार करती हुई छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर जाती है। वहीं कोयल नदी रांची के पठारी भाग से निकल कर लातेहार, डाल्टनगंज, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, होते हुए 260 किलोमीटर तक बहती है। झारखंड के कई जिले इन दो नदियों पर निर्भर हैं। यहां पेयजल और सिंचाई का मुख्य स्नोत यही नदियां हैं। लोहरदगा शहर की बात करें तो शहर की आबादी भी कोयल-शंख नदी पर निर्भर है। इन नदियों के सूखने से अनेक जिलों के लाखों लोग प्रभावित होंगे।

बेजा बालू खनन पर हो मनन

देश में सभी नदियों से बालू का वैध-अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। इसने नदी की पारिस्थितिकी को पूरी तरह उजाड़ दिया है। नदियां खोखली हो रही हैं, जो कालांतर में भीषण बाढ़ का सबब बन सकती हैं। खनन ने नदियों की पर्यावरणीय विविधता को भी नुकसान पहुंचाया है। इससे तमाम जलचर मारे जाते हैं।

हर नदी की अपनी भोजन श्रृंखला होती है, वह नष्ट हो रही है। आइआइटी कानपुर के एक शोध के अनुसार, गंगा अपने पूरे प्रवाह क्षेत्र में औसत चार मीटर तक उथली हो चुकी है। वहीं, पिछले एक दशक में बूढ़ी गंडक 4 मीटर, घाघरा 6 मीटर, बागमती 5 मीटर, राप्ती 4.5 और यमुना 5 मीटर तक उथली हो चुकी है। नर्मदा की 101 सहायक नदियों में से 60 की हालत खराब है। इनमें से अधिकांश सूख गई हैं।

बालू खनन बना कारण

नदियों के सूखने की जो सबसे बड़ी वजह सामने आ रही है, वह कोयल और शंख नदी से वैध और अवैध रूप से जारी बालू का अंधाधुंध उठाव है। बालू के खनन के कारण पानी का बहाव खत्म हो गया है। नदी में जेसीबी की सहायता से गड्ढा खोदकर और बांध बनाकर पानी को जमा किया जा रहा है। इससे ही किसी तरह जलापूर्ति हो रही है। 

बालू खनन, जलप्रवाह को रोकने और नदियों के वातावरण के साथ छेड़छाड़ के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। नदियों के सूखने से भूजलस्तर भी प्रभावित होता है। 

प्रसन्नजीत मुखर्जी, पारिस्थितिकी विशेषज्ञ

यह भी पढ़ें: किसानों ने कंपनी बना कर की बिचौलियों की छुट्टी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.