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महिला सुरक्षा के लिए बना 'निर्भया फंड' में राज्य उदासीन, 20% राशि का भी नहीं हुआ उपयोग

निर्भया कांड के बाद मंत्रालय द्वारा वन स्टॉप सेंटर को महिलाओं के लिए सबसे जरूरी माना था लेकिन आज घटना को सात वर्ष और फंड स्थापना को 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह स्थिति क्यों हैं?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 02:42 PM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 02:44 PM (IST)
महिला सुरक्षा के लिए बना 'निर्भया फंड' में राज्य उदासीन, 20% राशि का भी नहीं हुआ उपयोग
महिला सुरक्षा के लिए बना 'निर्भया फंड' में राज्य उदासीन, 20% राशि का भी नहीं हुआ उपयोग

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। निर्भया कांड के बाद कई नीतियां बनाई गई थीं। निर्भया कोष की स्थापना भी इन्हीं में से एक थी जिसका मुख्य उद्देश्य दुष्कर्म पीड़ितों की सहायता करना और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करना था। नीतियों का निर्माण एक विषय है और क्रियान्वयन दूसरा। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार महिला सुरक्षा को लेकर बनाए गए निर्भया फंड के कुल बजट का राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने लगभग 20 फीसद फंड ही खर्च किया है।

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बात यदि वर्ष 2015 से 2018 के दौरान की हो तो इस दौरान निर्भया फंड में 854.6 करोड़ रुपयों का आवंटन हुआ, लेकिन इस राशि में से मात्र 165.4 करोड़ रुपये ही राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा खर्च किए गए। शुरुआत में 2013-14 में जहां यह रकम एक हजार करोड़ रुपये थी, वहीं 2014-15 में भी इतनी ही रकम इस फंड में जुड़ गई। इसके बाद 2016-17 और 2017-18 में प्रत्येक वर्ष 550 करोड़ रुपये फंड में जुड़ते चले गए। वर्तमान में वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में 50 करोड़ रुपये धन राशि इस फंड में आवंटित कर दी गई है।

निर्भया फंड में मुख्य रूप से इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम, केंद्रीय पीड़ित मुआवजा निधि, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम, वन स्टॉप स्कीम, महिला पुलिस वालंटियर जैसी योजनाओं पर खर्च का प्रावधान था। लेकिन कई राज्य तो ऐसे भी हैं जिन्होंने इस कोष में से एक भी रुपया इन योजनाओं पर खर्च करना जरूरी ही नहीं समझा।

इन राज्यों में महाराष्ट्र, मणिपुर और केंद्र शासित क्षेत्र लक्षद्वीप के नाम आते हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस राज्य में हैवानियत और दरिंदगी की यह घटना घटित हुई थी उस राज्य ने भी इस राशि का मात्र 0.84 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग किया है। पश्चिम बंगाल तो 0.76 प्रतिशत हिस्सा प्रयोग करके दिल्ली से भी पीछे है।

दिल्ली सरकार महिला सुरक्षा के नाम पर मुफ्त यात्री परिवहन के लिए 1,500 करोड़ रुपये सालाना खर्च कर सकती है, लेकिन निर्भया फंड की एक फीसद राशि का भी उपयोग नहीं कर पाती। क्या वाकई में सरकारें महिलाओं की सुरक्षा के प्रति गंभीर हैं या महज राजनीतिक लाभ हेतु मुफ्त सार्वजनिक परिवहन सेवा जैसी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है? निर्भया फंड में प्रत्येक जिले में वन स्टॉप सेंटर प्रारंभ करने की भी बात कही गई थी, किंतु यह सपना भी अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है। निर्भया कांड के बाद मंत्रालय द्वारा वन स्टॉप सेंटर को महिलाओं के लिए सबसे जरूरी माना था, लेकिन आज घटना को सात वर्ष और फंड स्थापना को छ: वर्ष बीत जाने के बाद भी यह स्थिति क्यों हैं?


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