Jammu and Kashmir: मोदी 2.0 में बदल गई जम्मू-कश्मीर की सियासत, व्यवस्था और भूगोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सत्ता संभाली तो किसी को आभास नहीं था कि जम्मू-कश्मीर की सियासत व्यवस्था और भूगोल हमेशा के लिए बदल जाएगा।
नवीन नवाज, जम्मू । भले ही कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के चलते जम्मू-कश्मीर में इस समय कई तरह की पाबंदियां हैं, लेकिन यह प्रदेश नए युग में कदम रख चुका है। अब यहां आतंकवाद पर नहीं, विकास की बात होती है। सियासत लगभग बदल चुकी है। कोई भी स्वायत्तता या आजादी के नारे की सियासत नहीं कर रहा है। आवाम तरक्की, आर्थिक-सामाजिक हितों की रक्षा को सर्वोपरि मानती है। यह बड़ा बदलाव मोदी-टू में हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सत्ता संभाली तो किसी को आभास नहीं था कि जम्मू-कश्मीर की सियासत, व्यवस्था और भूगोल हमेशा के लिए बदल जाएगा।
बता दें कि 2019 में जुलाई के अंतिम सप्ताह से शुरू सुगबुगाहट पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर में नई सुबह लेकर आई। 30 मई 2019 को एक बार फिर मोदी सरकार आई और आते ही प्रधानमंत्री ने मास्टर स्ट्रोक खेल जम्मू-कश्मीर का पूरा भूगोल बदल दिया। केंद्र ने अनुच्छेद 370 के वह सभी प्रावधान समाप्त कर दिए, जो जम्मू-कश्मीर को भारत के भीतर अलग राष्ट्र होने का संकेत देते थे। 70 साल से बड़ा सियासी मुद्दा अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया। अब देश का हर नागरिक जम्मू-कश्मीर पर उतना ही हक रखता है जितना जम्मू कश्मीर में पैदा होने वाला। इतना ही नहीं पुनर्गठन के जरिए लद्दाख और जम्मू कश्मीर को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।
किसी के साथ नहीं बरती कोई नमी
अतीत के अनुभवों के आधार पर प्रदेश में शरारती तत्वों से लेकर सियासत के लिए लोगों को भड़काने वाले तत्वों पर केंद्र सरकार व प्रदेश प्रशासन ने कोई नरमी नहीं बरती। वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में लिया और हालात काबू में रहे।
अब नहीं लगती आतंकी जनाजों पर भीड़
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा कि एक साल अहम रहा है। जम्मू कश्मीर की पूरी व्यवस्था बदल चुकी है। अगर आज आतंकियों के जनाजों पर भीड़ नहीं हैं तो यह पांच अगस्त का सकारात्मक पक्ष है। आप किसी से भी बात करें, वह छूटते ही कहेगा नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी या इन जैसे दलों की मौकापरस्त और भ्रष्ट सियासत से आजादी मिल गई है। पांच अगस्त के बाद से यहां भ्रष्टाचार के मामले रोज सामने आ रहे हैं, पहले इनकी उम्मीद नहीं थी।
नई आर्थिक क्रांति के गवाह बने होते
इस दौरान जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई, लेकिन देश-विदेश के 40 बड़े व्यापारिक घरानों ने करोड़ों के निवेश की जम्मू कश्मीर में इच्छा जताते हुए अपनी परियोजनाओं के प्रस्ताव भी जमा कराए। मतलब अर्थव्यवस्था को जो अल्पकालिक चोट पहुंची उसे दीर्घकालिक फायदे में बदलने का रोडमैप भी तैयार रखा। आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. गोपाल पार्थासारथी ने कहा कि अगर कोविड-19 का लॉकडाउन नहीं होता तो आप जम्मू कश्मीर में नई आर्थिक क्रांति के गवाह बने होते।
राजनीति में आए नए चेहरे
वरिष्ठ पत्रकार आसिफ कुरैशी ने कहा कि पांच अगस्त के बाद जम्मू कश्मीर के सियासी मंच पर कई नए चेहरे देखने को मिले हैं। जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी बनी है, इसके अधिकांश नेता कश्मीर से ही हैं। बावजूद वह उन मुद्दों की बात नहीं कर रहे हैं, जिन पर नेकां, पीडीपी या अन्य दलों ने लोगों से वोट लेकर जम्मू कश्मीर में हुकूमत की है। वह डोमिसाइल की बात करते हैं,वह स्थानीय हितों की बात करते हैं।