Jaipur Literature Festival: विवादों का मंच बने जेएलएफ पर विचारधारा की राजनीति
जस्टिस मार्कडेंय काटजू ने एक बार अपने ब्लाग में लिखा था कि गरीबी बेरोजगार शिक्षा व्यवस्था महिलाओं के मुद्दों स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य सामाजिक मुद्दों पर लेखक लिख ही नहीं रहे हैं। ऐसे में मेरे लिए जयपुर साहित्य सम्मेलन मात्र तमाशा भर है न कि एक वास्तविक साहित्य सम्मलेन।
नेशनल डेस्क, नई दिल्ली: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल यानी दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा साहित्यिक विमर्श का मंच। बना तो यह साहित्य पर चर्चा के लिए है, लेकिन विवादों से भी इसका गहरा नाता रहा है। अतिथि का शराब के नशे में सम्मेलन में शिरकत करना हो या फिर वर्ग औऱ जाति विशेष टिप्पणी, जेएलएफ में सबकुछ होता रहा है। इसका ताजा संस्करण न्यूयार्क में 12 से 14 सितंबर तक आयोजित किया गया जो एक और बड़े विवाद का मंच बना। बात तो होनी चाहिए थी, साहित्य पर, लेकिन होने लगी राजनीतिक विचारधारा और पार्टी से जुड़ाव पर।
वामपंथी विचारधारा के पोषक कथित उदारवादी एक आमंत्रित वक्ता को सिर्फ इसलिए सुनने को तैयार नहीं हुए क्य़ोंकि वह भाजपा की पदाधिकारी हैं। मामला 14 सितंबर का है, जब भाजपा नेता शाजिया इल्मी को जेएलएफ में सहभागिता के लिए पैनलिस्ट के तौर पर आमंत्रित किया गया था। शाजिया पहुंचीं भी, लेकिन इसके पहले कि वह अपने विचार रख पातीं, कथित बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों को आपत्ति हो गई और उन्होंने जेएलएफ का बहिष्कार कर दिया। बात किसी व्यक्ति के बहिष्कार या विरोध तक सीमित नहीं रही, बल्कि विचारधारा की राजनीति की तरफ मुड़ गई। शाजिया ने अपने ट्विटर हैंडल पर तो यह भी कहा है कि वहां भारत विरोधी संदेश लिखी तख्तियां लहराई गईं। इस विवाद के कारण जेएलएफ एक बार फिर सवालों के कठघरे में है।
आतिश ने चलाया अभियान
इस पूरे प्रकरण के मूल में रहे ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक आतिश तासीर। जो पहले भी अपनी टिप्पणियों और लेख को लेकर विवादित रहे हैं। तासीर ने ही शाजिया के खिलाफ इस अभियान का नेतृत्व किया जो जेएलएफ के इतिहास में एक और काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया। उनके इस अभियान में अमेरिकी लेखक मैरी ब्रेनर और एमी वाल्डमैन ने भी साथ दिया। ब्रेनर एक खोजी पत्रकार भी हैं और वाल्डमैन वैनिटी फेयर पत्रिका के अलावा न्यूयार्क टाइम्स के लिए लिखती हैं। आइए जरा इस प्रकरण को थोड़ा करीब से समझ लें। ‘सर्चिंग इक्विटी’ विषय पर दलित कार्यकर्ता गुरु प्रकाश पासवान व प्रशांत झा के साथ निर्धारित कार्यक्रम के दौरान शाजिया इल्मी जब अपना भाषण दे रही थीं तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। बकौल शाजिया, भाषण के दौरान लोग नारे लगा रहे थे। वह संदेशों वाली तख्तियां भी पकड़े हुए थे। शाजिया ने इस पर जेएलएफ के मंच से ही कहा कि मैं उधार ली गई नफरत और गिरवी रखी नाराजगी को अपनी सच्चाई और उनकी सच्चाई के बीच नहीं आने दूंगी। भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता ने घटना से संबंधित जो वीडियो साझा किया है, वह बताता है कि प्रदर्शनकारियों का विरोध काफी तेज था। दरअसल यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया। शाजिया के जेएलएफ में भाग लेने के कुछ दिन पहले से ही आतिश तासीर ने एक अभियान शुरू किया था, ताकि उनका कार्यक्रम रद हो जाए। तासीर का 13 सितंबर को किया गया ट्वीट देखिए। यह कहता है, ‘न्यूयार्क के बुद्धिजीवियों के बीच चुपके से हिंदुत्व की विचारधारा को थोपना गलत है।‘ शाजिया और तासीर के बीच ट्वीट वार भी चला। जिसमें शाजिया पर टिप्पणियां की गईं।
लेखक बनाम गैर लेखक
इस प्रकरण में विरोधियों ने एक प्रश्न किया कि गैर लेखक शाजिया को इसमें क्यों आमंत्रित किया गया। जबकि जेएलएफ का इतिहास ही कहता है कि इसमें गैर लेखकों को भी आमंत्रित करने की परंपरा रही है। खुद शाजिया को भी पहले इस आयोजन में आमंत्रित किया जा चुका था। इससे संकेत मिलता है कि शाजिया के विरोध के बहाने कथित बुद्धिजीवियों की कुछ और ही मंशा थी। विरोधियों को शाजिया का यह जवाब माकूल ही लगता है कि आप विशेषाधिकार प्राप्त पुरुष के रूप में बोल रहे हैं और मैं भारत में रहने वाली एक मुस्लिम महिला के रूप में बोल रही हूं।'
कौन हैं आतिश तासीर
ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक आतिश तासीर भारतीय पत्रकार तवलीन सिंह और पाकिस्तानी राजनेता सलमान तासीर के बेटे हैं। वर्तमान में न्यूयार्क में रह रहे आतिश तासीर की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में हुई है। उसके बाद वह ब्रिटेन चले गए। वर्ष 2019 में उनकी ओसीआइ यानी ओवरसीज सिटीजनशिप आफ इंडिया को रद कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने अपने पिता के पाकिस्तानी होने की बाद छिपाई थी। पाकिस्तानी मूल के पिता की संतान होने पर ओसीआइ नहीं दिया जाता है।
विवादों का इतिहास
वर्ष 2020 में फिल्म अभिनेत्री व निर्देशक नंदिता दास ने जेएलएफ के मंच का उपयोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के लिए किया था। सम्मेलन की प्रेस कांफ्रेस में दास ने सीएए को लेकर कई बातें कही थीं जिसके बाद साहित्य के मंच का उपयोग राजनीति के लिए करने को लेकर विवाद उठा था।
वर्ष 2017 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को सम्मेलन में बुलाने पर खासा विवाद हुआ था। आयोजकों को आश्वासन देना पड़ा था कि वह अब कभी इस लेखिका को नहीं बुलाएंगे।
वर्ष 2013 में राजनीतिक मनोविज्ञानी और आलोचक आशीष नंदी कहा था कि वर्तमान में देश में दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा ही भ्रष्टाचार किया जा रहा है। उनके खिलाफ दो एफआइआऱ हुई थीं और इंटरनेट मीडिया भी गर्म रहा था। कुछ वर्ष पहले विक्रम सेठ के सार्वजनिक रूप से जेएलएफ में शराब पीने पर भी विवाद हुआ था।
वर्ष 2016 में जेएलएफ के आयोजन से जुड़ी संस्था टीमवर्क प्रोडक्शंस के प्रबंध निदेशक संजय राय भी पीड़ा भी सम्मेलन से जुड़े विवादों पर झलकी थी। उन्होंने तब कहा था कि विवाद शुरुआत में भले ही रोमांच पैदा करते हों, लेकिन बाद में वह बहुत अधिक परेशानी पैदा करते हैं जिससे निपटना आसान नहीं होता। यह समझा जाना चाहिए कि जेएलएफ जैसे विशाल आयोजन के पीछे बहुत मेहनत लगती है।
...जब सामने आई पीड़ा
जस्टिस मार्कडेंय काटजू ने एक बार अपने ब्लाग में लिखा था कि गरीबी, बेरोजगार, शिक्षा व्यवस्था, महिलाओं के मुद्दों, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य सामाजिक मुद्दों पर लेखक लिख ही नहीं रहे हैं। ऐसे में मेरे लिए जयपुर साहित्य सम्मेलन मात्र तमाशा भर है न कि एक वास्तविक साहित्य सम्मलेन।