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तमिलनाडु के इतिहास में पहली बार सदन में पुलिस ने क्यों किया था प्रवेश? जयललिता ने बताया था लोकतंत्र की हत्या

एमजीआर का जाना जयललिता के लिए बड़ा आघात था। जयललिता के साथ हमेशा खड़े रहने वाले एमजीआर के अंतिम समय में जयललिता को उनके पास तक जाने से रोका गया। यह जयललिता के जीवन का सबसे कठिन समय था।

By Ashisha Singh RajputEdited By: Ashisha Singh RajputPublished: Wed, 26 Apr 2023 07:48 PM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2023 07:48 PM (IST)
एमजीआर का जाना जयललिता के लिए बड़ा आघात था।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। तमिलनाडु की राजनीति बेहद विचित्र रही है। सियासत की उथल-पुथल कुछ ऐसी रही है, जो लोगों को आज भी बहुत कुछ सोचने-समझने पर मजबूर कर देती है। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता और मारुथुर गोपाला मेनन रामचंद्रन (एमजीआर) ये वो दो नाम है, जिनकी देश के राजनीतिक इतिहास में सबसे अलग कहानी है।

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अभिनेत्री से राजनेत्री बनीं जे जयललिता

एक अभिनेत्री से राजनेत्री बनीं और 6 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जे जयललिता, जिन्हें प्यार से लोग अम्मा बुलाते थे। वह आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। जयललिता ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में जितना संघर्ष देखा बाद में उतना ही शानदार और सफल सफर तय किया।

जयललिता का रूतबा एक ऐसा सोना बनकर चमका, जिसके कारण दक्षिण भारत में और खासकर तमिलनाडु में लोग उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत तमिल फिल्म इंडस्ट्री से की, जिसमें वह सुपरस्टार बन के लाखों दिलों की धड़कन बनीं। वह जितनी सफल अभिनेत्री बनीं उससे कहीं ज्यादा सफल उनका राजनीतिक जीवन रहा।

इस खबर का आधार जयललिता की जीवनी पर लिखी गई किताब 'जयललिता- कैसे बनीं एक फिल्मी सितारे से सियासत की सरताज' है, जिसके कुछ दिलचस्प किस्सो में से एक पहलू का जिक्र किया गया है। इस किताब को तमिलनाडु के मशहूर लेखक में से एक वासंती द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद सुशील चंद्र तिवारी ने किया है-

MGR के बाद जयललिता

जयललिता के फिल्मी करियर और राजनीतिक करियर में एक शख्स का सबसे अहम और बड़ा योगदान रहा और वो थे एम जी रामचंद्रन यानी MGR। जयललिता ने एमजीआर के साथ कुल 28 फिल्मों में काम किया। दोनों की जोड़ी पर्दे पर तो कमाल करती ही थी, रियल लाइफ में भी दोनों का नाम एक-दूसरे के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया था।

MGR सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, बल्कि राजनीति में भी जयललिता के गुरु रहे। एमजीआर वहीं शख्स थे, जो जयललिता को राजनीति में लेकर आए थे। लेकिन MGR के निधन के बाद जयललिता ने वो दुनिया देखी, जो MGR के रहते हुए उन्होंने कभी महसूस भी नहीं की थी। MGR की आकस्मिक मृत्यु ने जयललिता को हिलाकर रख दिया था।

बदहवास हालत में इधर-उधर भागती रहीं जयललिता

एमजीआर का जाना जयललिता के लिए बड़ा आघात था। जयललिता के साथ हमेशा खड़े रहने वाले एमजीआर के अंतिम समय में जयललिता को उनके पास तक जाने से रोका गया। यह जयललिता के जीवन का सबसे कठिन समय था। एमजीआर के निधन की खबर सुनते ही जब जयललिता उनके पास पहुंची तो उन्हें कमरे के भीतर जाने से मना कर दिया गया। वह बदहवास हालत में इधर-उधर भागती रहीं, ताकि वह एमजीआर के पार्थिव शरीर को देख सकें और उन्हें अंतिम अलविदा कह सकें।

जैसे-तैसे जयललिता राजाजी हॉल पहुंचीं एमजीआर के पार्थिव शरीर को देखकर उनके सिर से चिपक गईं। बेजान पड़े एमजीआर को वह एकटक निहारती रहीं। उन्होंने एमजीआर के निधन पर एक आंसू तब नहीं गिराए। खुद की शारीरिक थकान को भूलकर वह दो दिनों तक एमजीआर के शव के पास खड़ी रहीं। पहले दिन करीब 13 घंटे और दूसरे दिन 8 घंटे खड़े रहकर उन्होंने कई मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहे।

एमजीआर के पास से नहीं हिलने की जिद पर रहीं कायम

एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन नहीं चाहती थीं कि जयललिता एमजीआर के अंतिम समय में उनके पास रहें, जिसके कारण उन्होंने अपनी कई समर्थक महिलाओं को जयललिता के बगल में खड़ा कर दिया। इन महिलाओं ने जयललिता के पैरों को कुचला, उनके शरीर में नाखून चुभाए और चुंटियां भी भरी, ताकि वह वहां से हट जाए। लेकिन अपमान के सारे घूंट पीते हुए जयललिता वहीं खड़ी रहीं।

एमजीआर के उत्तराधिकारी के रूप में जयललिता को मिला समर्थन

सुध-बुध खोई हुई अपने आसपास के माहौल से बेपरवाह जयललिता के दिलो-दिमाग में शायद एक सवाल जरूर चल रहा होगा कि अब आगे क्या होगा… एमजीआर के जाने के बाद अपमान सहने वाले जयललिता की यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई, जिसके बाद जयललिता के समर्थन में उनसे मिलने आने वाले लोगों का तांता लग गया। इन लोगों में कई सांसद और विधायक शामिल थे।

नाजुक दौर से गुजर रहीं जयललिता के लिए यह सब एक मजबूत ढांढस से कम नहीं था। ये सभी लोग जयललिता को एमजीआर के उत्तराधिकारी के रूप में समर्थन देने की कसमें खा रहे थे।

इन बातों से जयललिता को भरोसा हो गया कि भले ही एमजीआर ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया हो, लेकिन जनता के बीच उनका असर अब भी कायम है और पार्टी के लोग उनके पक्ष में हैं।

7 जनवरी 1988 में एमजीआर की पत्नी जानकी बनीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री

जिस वक्त एमजीआर का निधन हुआ उस वक्त राज्य का अगला चुनाव होने में अभी 2 वर्ष बचा था। उनकी पार्टी अन्नाद्रमुक ने भारी बहुमत से चुनाव जीता था। इसलिए सब मझधार में थे। वहीं, अन्नाद्रमुक के 97 विधायकों ने एमजीआर की पत्नी जानकी को अपना समर्थन देते हुए राज्यपाल एस एल खुराना को एक विज्ञप्ति सौंपी। जिसके बाद राज्यपाल ने जानकी को सरकार गठित करने का न्योता दे दिया।

7 जनवरी 1988 में जानकी रमचंद्रन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं। उन्हें 28 जनवरी तक सदन में अपना बहुमत साबित करना था। लेकिन यहां पर सब कुछ पलट गया। जिस दिन सदन में जानकी को अपना बहुमत साबित करना था उस दिन सदन में खूब शोर- शराबा हुआ, इसके पीछे वजह थी- सदन के स्पीकर का खुलकर जानकी का पक्ष लेना।

पुलिस ने किया सदन में प्रवेश

अचानक से सदन में कुछ गुंडे आ धमके और उन्होंने जयललिता समर्थकों और कांग्रेस के विधायकों की पिटाई शुरू कर दी। यह मार-पिटाई इतनी बढ़ गई कि तमिलनाडु के इतिहास में पहली बार पुलिस ने सदन में प्रवेश किया। पुलिस ने अंदर आते ही विधायकों पर लाठी बरसाई। सदन के अंदर हुई इस अव्यवस्था को देखते हुए स्पीकर ने जानकी सरकार के विश्वास मत जीतने की घोषणा कर दी।

तमिलनाडु में लोकतंत्र की हुई हत्या: जयललिता

इस पूरे मामले की जानकारी जब जयललिता को मिली तो वह समझ गई कि अब समय बर्बाद करने का कोई फायदा नहीं है। उसी दौरान उन्होंने एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि सदन में जो कुछ भी हुआ उससे तमिलनाडु में लोकतंत्र की हत्या हुई है। इसके साथ ही उन्होंने राज्यपाल से जानकी मंत्रिमंडल को तुरंत सत्ता से बेदखल करने की अपील की।

जयललिता को मिला नया अवसर

जयललिता के बयान के बाद सरकार विरोधी खेमे के अन्नाद्रमुक विधायक स्थानी कांग्रेस सदस्यों के साथ राज्यपाल से मिले और उन्हें घटनाक्रम की पूरी जानकारी दी। इसके बाद राज्यपाल ने केंद्र को इस घटना की अपनी रिपोर्ट भेजी और राज्य की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए सरकार को बर्खास्त कर दिया।

ये सब करने के बाद राज्यपाल ने राज्य में आपात स्थिति घोषित कर दी। वहीं केंद्र सरकार ने राज्यपाल की अनुशंसा को स्वीकार कर लिया। इसी के साथ जयललिता को तमिलनाडु की राजनीति में खुद को साबित करने का एक नया अवसर मिल गया।


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