नोर्डिक देशों ने दी भारत को खास अहमियत, पीएम मोदी के साथ होगी खास बैठक
पीएम की इस यात्रा की तैयारियों में जुटे विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, उक्त पांचों देश सिर्फ तकनीकी तौर पर दुनिया के अग्रणी देश नहीं है, बल्कि हैप्पीनेस इंडेक्स में शीर्ष स्थान पर है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राजग सरकार के कार्यकाल में भारत ने दुनिया के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान विकसित करने की कोशिश की है। लेकिन इस कोशिश में नोर्डिक क्षेत्र (नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क व आइसलैंड) अभी तक छूटे जा रहे थे। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी 17 अप्रैल, 2018 को स्टाकहोम (स्वीडेन) में नोर्डिक देशों के साथ भारत की कूटनीतिक रिश्तों को नई दिशा देने की कोशिश करेंगे। यह कोशिश इन देशों की तरफ से भी उतनी ही जोश से हो रही है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इन देशों ने इस तरह की बैठक इसके पहले सिर्फ अमेरिका के साथ वहां के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से की है। इन पांचों देशों के प्रमुखों के साथ पीएम मोदी की एक ही दिन में अलग अलग द्विपक्षीय मुलाकात होगी और फिर देर शाम एक संयुक्त बैठक भी होगी।
पीएम की इस यात्रा की तैयारियों में जुटे विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, उक्त पांचों देश सिर्फ तकनीकी तौर पर दुनिया के अग्रणी देश नहीं है, बल्कि हैप्पीनेस इंडेक्स में शीर्ष स्थान पर है। भारत इन देशों से बहुत कुछ सीखने की इच्छा रखता है। पीएम मोदी की इन देशों के साथ होने वाली द्विपक्षीय बैठकों का अलग अलग एजेंडा तैयार किया जा रहा है। मसलन, नार्वे रिनीवल ऊर्जा क्षेत्र में बेहद उन्नत तकनीकी का इजाद कर रहा है, जबकि दूसरी तरफ हम भी तेजी से इसमें विस्तार कर रहे हैं। उसी तरह से स्वीडन को डिजाइनिंग के मामले में अग्रणी देश माना जा रहा है। भारत में जिस तेजी से ढांचागत विकास हो रहा है उसे देखते हुए डिजाइनिंग अहम होता जा रहा है। यहां काफी सहयोग की गुंजाइश है। इसी तरह से फिनलैंड ने ई-वाहनों के मामले में काफी प्रगति की है, जबकि डेनमार्क खाद्य प्रसंस्करण में भारतीय किसानों को काफी मदद दे सकता है। द्विपक्षीय वार्ता के बाद संयुक्त वार्ता में पांचों देशों के साथ सहयोग के एक संयुक्त एजेंडे पर चर्चा होगी।
पीएम मोदी के एजेंडे में इन देशों के साथ निवेश आमंत्रित करना भी काफी अहम होगा। सूत्रों के मुताबिक, नार्वे का पेंशन फंड दुनिया का सबसे बड़ा फंड है। भारत की कोशिश है कि जिस तरह से यूएई व कुछ अन्य देशों के फंड को भारत के ढांचागत क्षेत्र में निवेश के लिए तैयार किया गया है उसी तरह से नार्वे पेंशन फंड से भी समझौता हो। इनमें से कुछ देशों की कंपनियों ने भारत के रक्षा उत्पादन में रुचि दिखाई है। अब देखना होगा कि दोनों पक्ष पुराने अनुभव को भूल कर आगे बढ़ पाते हैं या नहीं। जानकार बताते हैं कि नोर्डिक क्षेत्र के इन देशों के साथ अलग अलग वजहों से भारत के रिश्ते तल्ख हो गये थे। मसलन, बोफोर्स तोप घोटाले की वजह से अगर स्वीडन के रिश्ते खराब हो गये थे तो पुरुलिया में हथियार आपूर्ति के मामले में गिरफ्तार डेव कैली को लेकर भारत व डेनमार्क के रिश्ते बेहद खराब हो गये थे।