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मध्य प्रदेश: खेत जोतने को बैल की जगह महिलाएं रखती है कंधे पर हल, जानें गरीबी का दर्द

बैल नहीं होने पर मध्य प्रदेश के झबुआ में बच्चों की मदद से स्वयं बैल बनकर महिलाएं हल चलाती हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 28 Jul 2019 12:06 AM (IST)Updated: Sun, 28 Jul 2019 12:06 AM (IST)
मध्य प्रदेश: खेत जोतने को बैल की जगह महिलाएं रखती है कंधे पर हल, जानें गरीबी का दर्द
मध्य प्रदेश: खेत जोतने को बैल की जगह महिलाएं रखती है कंधे पर हल, जानें गरीबी का दर्द

झाबुआ, यशवंतसिंह पंवार। मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के ग्राम उमरकोट के भाबोर-बीड फलिये (आदिवासी क्षेत्र में छोटा रहवासी क्षेत्र) में रहने वाली रामली पत्नी रतन भाबोर बैल की जगह खुद हल खींचकर खेत की जुताई कर रही है। पांच छोटे बच्चों के साथ जीवन-यापन का संघर्ष जारी है। हालांकि, मामला प्रकाश में आने पर प्रशासन और सांसद ने मदद की बात कही है।

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बैल रखने की हैसियत नहीं
बैल जोड़ी 25 हजार में आती है। बैल नहीं होने से रामली को बच्चों की मदद से स्वयं बैल बनकर खेती करनी पड़ रही है। वह कहती है कि किराये पर बैल मिलता है, लेकिन पैसे ज्यादा लगते हैं। एक हजार रुपये प्रतिदिन देने की उसकी हैसियत नहीं है। खेतों की जुताई में पांच बच्चों में सबसे बड़ी बेटी 12 वर्षीय कविता उसकी मदद करती है।

दो बीघे जमीन पर उगातीं है फसल
अशिक्षित होने और जानकारी के अभाव में रामली किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले सकी। एक लाख रुपये कर्ज लेकर कच्चा मकान बनाया तो कर्ज उतारने के लिए पति गुजरात के राजकोट शहर में काम कर रहा है। छोटे बच्चों की मदद से वह अपनी दो बीघा जमीन में सीमित साधनों में मक्का, मूंगफली, गिल्की, मिर्च आदि की फसल उगाती है विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सुखद पहलू यह है कि वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने भेज रही है।

किसी योजना का नहीं मिला लाभ
उमरकोट के सरपंच मोहन डामोर का कहना है कि रामली बाई को आज तक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। डीएम एसपीएस चौहान ने बताया कि सीईओ जनपद पेटलावद को इस मामले में निर्देश दिए गए हैं। महिला व उसके परिवार को हरसंभव सरकारी मदद दी जाएगी। वहीं, रतलाम-झाबुआ के सांसद गुमान सिंह डामोर ने कहा कि  इस तरह का मामला उनकी जानकारी में नहीं है। अब संज्ञान में आया है तो गरीब परिवार को हर तरह से मदद की जाएगी।

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