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आपके आसपास है कबूतरों का बसेरा तो हो जाइये सावधान, नहीं तो होगी ये गंभीर बीमारी

जिन शहरों में बड़ी संख्या में कबूतर पाले जाते हैं। वहां सांस, अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियों के मरीज अधिक हैं।

By Edited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 12:04 AM (IST)Updated: Sun, 09 Dec 2018 09:02 AM (IST)
आपके आसपास है कबूतरों का बसेरा तो हो जाइये सावधान, नहीं तो होगी ये गंभीर बीमारी
आपके आसपास है कबूतरों का बसेरा तो हो जाइये सावधान, नहीं तो होगी ये गंभीर बीमारी

कानपुर,जेएनएन। प्यार का पहला खत पहुंचाने के लिए पहचाने जाने वाले कबूतर अब बीमारी बांट रहे हैं। यह बीमारी दिल की नहीं फेफड़े की है। इतनी गंभीर कि आपकी जान भी ले सकती है। ये हैरान करने वाले परिणाम देशभर में एक हजार रोगियों पर किए गए शोध में सामने आया है। पिछले दो वर्षो में इंटर स्टीसियल लंग्स डिजीज (आइएलडी) के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह जानलेवा बीमारी है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं है, सिर्फ रोकथाम ही इसका बचाव है।

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अचानक बढ़े मामलों पर चेस्ट फिजीशियन और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने मंथन किया और आइएलडी से पीड़ित मरीजों पर अध्ययन करने का निर्णय लिया गया। देशभर के एक हजार मरीजों पर विशेषज्ञों ने शोध किया। इसमें सामने आया कि बालकनी और आसपास डेरा जमाने वाले कबूतर दमा, एलर्जी, फेफड़े और सास से संबंधित गंभीर बीमारियों की वजह बन रहे हैं। जो आगे चलकर आइएलडी बन जाती है।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. एसके कटियार ने बताया कि प्रदूषण एवं कबूतरों की वजह से फेफड़ों की खतरनाक बीमारी आइएलडी हो रही है। इसकी रोकथाम संभव है, पूर्ण इलाज अभी उपलब्ध नहीं है।

कबूतर बाहुल्य वाले शहर में ज्यादा समस्या
शोध में सामने आया कि जिन शहरों में बड़ी संख्या में कबूतर पाले जाते हैं। वहां सांस, अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियों के मरीज अधिक हैं। एक हजार मरीजों में कानपुर के 125 केस शामिल किए गए।

पंख और मल से फैलती है बीमारी
जांच में यह पता चला कि कबूतर झुंड में एक साथ रहते हैं। मल-मूत्र त्याग से उनके पंख गंदे रहते हैं। इनमें एक तरह का कीड़ा होता है जो वायरस का कारण बनता है। कबूतर जब उड़ते हैं तो उनके पंख से हवा में माइक्रोफेदर्स और बीट फैलकर हवा को दूषित करती है। यह वायरस सांस के माध्यम से फेफड़े तक जाता है और डैमेज करना शुरू कर देता है। रही-सही कसर प्रदूषण पूरी कर देता है।

अल्ट्रा फाइन पार्टिकल भी घातक
पार्टिकुलेट मैटर जो .5 माइक्रॉन से नीचे होता है, उसे अल्ट्रा फाइन पार्टिकल (यूएफपी) कहते हैं। यूएफपी पार्टिकल का अभी कोई मानक नहीं है। यह पार्टिकल लंग्स से होते हुए ब्लड सिस्टम में चले जाते हैं। इससे हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, ब्रेन में अल्माइजर, लिवर एवं गर्भपात जैसी समस्या होती हैं। यह लंग्स का लचीलापन खत्म कर देते हैं, जिससे क्षमता कम हो जाती है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज पूर्व प्राचार्य वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन डॉ. एसके कटियार ने बताया कि  प्रदूषण एवं कबूतरों की वजह से फेफड़ों की खतरनाक बीमारी आइएलडी हो रही है। इसमें फेफड़े सिकुड़ जाते हैं और सांस लेने की क्षमता खत्म हो जाती है। इसकी रोकथाम संभव है, पूर्ण इलाज अभी उपलब्ध नहीं है।


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