कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, अल्पसंख्यकों की पहचान जिलेवार नहीं राज्यवार होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जे की मांग वाली याचिका पर कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान जिलेवार नहीं वरन राज्यवार होनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने इस याचिका को पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दोहराया कि धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा राज्य स्तर ही दिया जाना चाहिए। जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान का आदेश नहीं दिया जा सकता है। यह कानून के विरुद्ध है। अदालत ने याचिकाकर्ता से ऐसे ठोस उदाहरण देने को कहा जहां कम संख्या में होने के बावजूद हिंदुओं को मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया।
सितंबर के पहले हफ्ते में होगी सुनवाई
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट की पीठ ने मथुरा के भागवत कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका पर यह टिप्पणी की। साथ ही कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग वाली वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया। सितंबर के पहले हफ्ते में अब इन याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
याचिका में तीन मांग
कथावाचक ठाकुर ने ठाकुर ने मुख्य रूप से तीन मांग की है। पहली मांग-राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2 (सी) को असंवैधानिक और शून्य घोषित किया जाए, क्योंकि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,29 और 30 का उल्लंघन करती है। ये अनुच्छेद बराबरी और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की बात करते हैं।
...ताकि अल्पसंख्यक वर्गों को मिले लाभ
भारत सरकार की 23 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित किया जाए जिसमें कुछ वर्गों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है। तीसरी मांग-सरकार को अल्पसंख्यकों की जिलेवार पहचान करने की गाइडलाइन तय करने का आदेश दिया जाए ताकि धार्मिक और भाषाई रूप से अल्पसंख्यक वर्गों को अल्पसंख्यक दर्जा वाले लाभ मिलना सुनिश्चित हो।
राज्यवार होनी चाहिए अल्पसंख्यकों की पहचान
न्यायमूर्ति भट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल के मामले में कहा था कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए। उस मामले में ब्लाक और तालुका स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की गई थी। ठाकुर की याचिका में की गई मांग को उद्धत करते हुए उन्होंने कहा कि आपने याचिका में जिलेवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की है, ये कानून के खिलाफ है। कोर्ट इसका आदेश नहीं दे सकता।
कोर्ट जनरल आदेश नहीं दे सकता
कोर्ट में मौजूद वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 2002 में टीएमए पाई के मामले में भी कोर्ट कह चुका है कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए। जस्टिस ललित ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि अगर आप कोई ठोस उदाहरण देते हैं जहां हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने से मना किया गया है तो कोर्ट उस पर विचार कर सकता है लेकिन आप एक जनरल आदेश चाहते हैं जो कोर्ट नहीं दे सकता।
मांगा था समय
पिछली सुनवाई पर उन्होंने वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार से ऐसे ठोस उदाहरण देने को कहा था जिनमें कम संख्या में होने के बावजूद हिंदुओं को मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया। दत्तार ने ऐसे उदाहरण पेश करने के लिए समय मांगा था।
नौ राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक
ठाकुर की याचिका में कहा गया है कि नौ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं हासिल है। हिंदू लद्दाख में एक प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2.77 प्रतिशत, नगालैंड 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.52 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 प्रतिशत और मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हैं।
कश्मीर घाटी में हिंदू मात्र चार प्रतिशत
जम्मू-कश्मीर में वैसे तो हिंदुओं की आबादी लगभग 28 प्रतिशत है, लेकिन कश्मीर घाटी में हिंदू मात्र चार प्रतिशत हैं। अल्पसंख्यक होने के बावजूद इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं को संविधान के अनुच्छेद 29-30 में मिलने वाले संरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। याचिका में उन राज्यों के उदाहरण भी दिए गए हैं जहां मुसलमानों, ईसाइयों और सिखों के बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।