जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के लिए अलग आयोगों के गठन की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका
केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए तत्काल अलग-अलग अधिकार आयोगों के गठन के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए तत्काल अलग-अलग अधिकार आयोगों के गठन के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।अधिवक्ता असीम सरोदे द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 2019 में अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजित कर दिया था।
जिसके बाद सामान्य प्रशासन ने कथित तौर पर 31 अक्टूबर, 2019 से सात राज्य आयोगों को खत्म कर दिया है। इनमें जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार आयोग, राज्य महिला एवं बाल अधिकार आयोग, राज्य दिव्यांग आयोग, राज्य सूचना आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य विद्युत नियामक आयोग और राज्य जवाबदेही आयोग शामिल हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि ये सातों आयोग अधिकारों के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, इस याचिका पर 24 सितंबर को सुनवाई होने की संभावना है।
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण का मामला सदन में उठा
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण की व्यवस्था को तर्कसंगत बनाकर दूसरे राज्यों के समान करने की मांग का मुद्दा शनिवार को राज्यसभा में उठाया गया। बहुजन समाज पार्टी ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान इस मसले को उठाते हुए सरकार से अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग की। बसपा के सदस्य राजाराम ने कहा कि जम्मू में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 35 फीसद है, जबकि उन्हें केवल दो फीसद आरक्षण की ही सुविधा प्राप्त है। इसके विपरीत देश के दूसरे राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण 15 फीसद तो कहीं 28 फीसद भी है।
बसपा सदस्य ने कहा कि इसी तरह जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी 17 फीसद है। जबकि आरक्षण का प्रावधान सिर्फ 8 फीसद है। इसके मुकाबले दूसरे राज्यों में यह व्यवस्था 15 फीसद है। बसपा नेता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलो वाली कानूनी धारा 370 हटाने के मुद्दे पर बसपा ने सरकार का साथ दिया था। बसपा की मांग है कि वहां अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग के हितों का ध्यान रखते हुए आरक्षण के प्रावधान को तर्कसंगत बनाया जाए।