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    छत्तीसगढ़ के पहाड़ों में बसते हैं इस जनजाति के लोग, सादगी और कंदमूल आज भी जीवन का हिस्सा

    By Pooja SinghEdited By:
    Updated: Mon, 02 Nov 2020 08:34 AM (IST)

    छत्तीसगढ़ के उत्तरी इलाके के पहाड़ी मैदानों में बसने वाली पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग आज भी कंदमूल को अपने भोजन का प्रमुख हिस्सा बनाए हुए हैं। इनके पूर्वज सदियों से मैनपाट सामरी पाट जारंगपाट सन्नापाट जैसे पहाड़ी मैदानों में बसे हुए हैं।

    छत्तीसगढ़ के पहाड़ों में बसते हैं इस जनजाति के लोग, सादगी और कंदमूल आज भी जीवन का हिस्सा।

    अंबिकापुर, गिरिजा ठाकुर। छत्तीसगढ़ के उत्तरी इलाके के पहाड़ी मैदानों में बसने वाली पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग आज भी कंदमूल को अपने भोजन का प्रमुख हिस्सा बनाए हुए हैं। इनके पूर्वज सदियों से मैनपाट, सामरी पाट, जारंगपाट, सन्नापाट जैसे पहाड़ी मैदानों में बसे हुए हैं। पहाड़ी कोरवा मूल रूप से सरगुजा, बलरामपुर और जशपुर जिलों में निवासरत हैं और इनकी आबादी बेहद कम है। इस जनजाति का अपनी एक विशेष संस्कृति है। यह आज भी प्रकृति के साथ एक अटूट रिश्ते से बंधे हुए है और पूरी तरह सादा जीवन जीते हैं। यह आज भी अपने पूर्वजों की तहर पहाड़ी जंगलों पर ही निर्भर हैं और कंदमूल इनके दैनिक भोजन का प्रमुख हिस्सा है। इस जनजाति को भारत सरकार ने विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा दिया है और यह राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी हैं।

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    इस विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों के जीवन स्तर में विकास और उनके संरक्षण के लिए शासन ने तमाम योजनाएं संचालित की हैं, लेकिन आज भी वे शासकीय योजनाओं से वंचित हैं। और तो और सस्ता, सुलभ तरीके से मिलने वाला सरकारी राशन भी छोटी कमियों के कारण इन्हें मिलना मुनासिब नहीं है। ऐसा हाल सरगुजा जिले के लुंड्रा विकासखंड अंतर्गत सपड़ा पंचायत में देखने को मिल जाएगा। कोरोनाकाल ने इनके लिए और भी विषम परिस्थिति बना दी थी। लॉकडाउन के दौर में ये भूख मिटाने कहां जाएं, कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में समझा जा सकता है कि विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए शासन की योजनाएं कितनी कारगर साबित हो रही होंगी।

    सरगुजा जिले के लुंड्रा ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम सपड़ा में रहने वाले पहाड़ी कोरवा परिवार सरकारी राशन से सिर्फ इसलिए वंचित हो गए हैं क्योंकि उनका अब तक आधार कार्ड नहीं बन पाया है। सत्ता परिवर्तन के साथ हर परिवार को सस्ता, निःशुल्क राशन पात्रता के अनुरूप देने की घोषणा भी इनकी दिक्कतों को दूर नहीं कर पाई। आज भी मजदूरी, जलावन बेचकर गुजारा करने वाले 11 पहाड़ी कोरवा परिवार इन हालातों से जूझ रहे हैं, यह सोचकर कि उनके लिए ये योजनाएं बनी ही नहीं हैं।

    आधार कार्ड न होने से शासकीय योजनाओं से हो रहे वंचित

    कोविड के प्राथमिक दौर में ये दाने-दाने को मोहताज हो गए। राशन कार्ड नहीं होने का गम इन्हें टीस रहा है। सपड़ा ग्राम पंचायत का भेड़िया सरईपानी ऐसा गांव है, जहां के लगभग 65-70 लोगों का आधार कार्ड नहीं बन पाया है। कई ऐसे हैं, जिनका आधार कार्ड नहीं होने के कारण राशन कार्ड में नाम नहीं जुड़ा है। इसके बाद भी पंचायत के किसी जनप्रतिनिधि ने इनकी सुध नहीं ली। पहाड़ी कोरवा परिवार के सदस्य जब राशनकार्ड के लिए दौड़ लगाते थक-हार गए। बाद में पता चला कि बिना आधार कार्ड के उनका राशनकार्ड बनना संभव नहीं है। आधार कार्ड बनवाने के लिए फार्म भर आवश्यक औपचारिकता पूरी की, लेकिन न तो आधार कार्ड बना न राशन कार्ड। कोरोनाकाल में भी पीडीएस के राशन से इनकी भूख नहीं मिट सकी। कोरोना के प्राथमिक दौर में न तो इनके लिए काम ही सुलभ हुआ न ही ये शासन के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सहूलियतों के हकदार बन पाए।

    कोरोना काल में चौपाल ने की मदद

    इसकी जानकारी चौपाल संस्था के गंगाराम पैकरा को मिलने के बाद उन्होंने संस्था के सीआरपी का कार्यभार देखने वाले सपड़ा पंचायत के मोतीलाल को इनकी दिक्कतों को दूर करने के लिए आधार कार्ड बनवाने के लिए आवश्यक पहल करने के लिए कहा। ठीक इसी बीच कोरोना को लेकर तालाबंदी की स्थिति बन गई और दफ्तर सहित निजी जन सुविधा केंद्र बंद हो गए। इन हालातों के बीच राशनकार्ड से वंचित पहाड़ी कोरवाओं के सामने आधार कार्ड के बिना न घर के न घाट के जैसी स्थिति बनी रह गई। इन्हें भूखे न रहना पड़े, इसके लिए चौपाल संस्था के गंगाराम पैकरा की पहल पर राशन की व्यवस्था की गई, लेकिन आधार कार्ड नहीं रहने से इन्हें शासकीय सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।

    पंचायत प्रतिनिधि भी नहीं कर पा रहे इनकी इस समस्या का समाधान

    जिन पहाड़ी कोरवाओं के नाम राशन कार्ड नहीं बन पाया है, उनका नाम पूर्व में अपने माता-पिता के साथ शामिलात खाते में दर्ज था। विवाह के बाद सिर पर आई जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए ये मां- पिता से अलग हो गए। इसके बाद परिवार बढ़ा, लेकिन शासन की योजनाओं से ये वंचित रह गए। चौपाल संस्था से जुड़े मोतीलाल बताते हैं, कि उनके सामने जब यह बात आई तो उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों से भी चर्चा की, लेकिन वे भी इनकी समस्या का समाधान आज तक नहीं कर पाए।

    राशनकार्ड से वंचित पहाड़ी कोरवा

    झंदरु पिता रामनाथ, वैशाख पिता सुखन, रमेश पिता रीझन, बेलाश पिता सुदामा, ललसू पिता कोल्हो, विदेश पिता रतिया, फगुनाथ पिता बीठल, शहरु पिता गुडलू, गुड्डू पिता एतवा सहित अन्य पहाड़ी कोरवा आज पर्यंत राशनकार्ड से वंचित है। कुछ पहाड़ी कोरवा ऐसे हैं जिन्हें प्राथमिकता कार्ड मिला है इन्हें प्रत्येक सदस्य सात किलो चावल सोसाइटी से प्राप्त होता है। जिन परिवारों का आज तक राशनकार्ड नहीं बन पाया है उनमें से अधिकांश परिवार में तीन से दस सदस्य हैं जो ग्राम पंचायत सपड़ा में रहते हैं।

    कोरोनाकाल में बने ये सहारा

    पहाड़ी कोरवा महापंचायत के गंगाराम पैकरा ने इन पहाड़ी कोरवाओं को शासकीय योजनाओं का लाभ मिले इसके लिए अपने स्तर पर काफी प्रयास किया है, लेकिन आज भी पीडीएस की सरकारी व्यवस्था से ये दूर हैं। पहाड़ पर मजदूरी, खेती करते इनका समय बीत रहा है। कोरोना के कहर के बीच जब पता चला कि सपड़ा के पहाड़ी कोरवाओं के पास राशनकार्ड नहीं है, तो इनकी भूख मिटाने की पहल चौपाल ग्रामीण विकास एवं शोध संस्थान व पहाड़ी कोरवा महापंचायत की ओर से की गई।

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