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कश्‍मीर पर भाजपा-पीडीपी की नीयत एक: गिलानी

कश्मीर में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी का कहना है कि भाजपा और पीडीपी में सिर्फ एक ही अंतर है। भाजपा का रुख आक्रामक है और पीडीपी शांत रहकर अपना काम करती है। हालांकि कश्‍मीर को लेकर भाजपा और पीडीपी की नीतियों

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 16 Mar 2015 10:24 AM (IST)Updated: Mon, 16 Mar 2015 10:33 AM (IST)

नई दिल्ली। कश्मीर में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी का कहना है कि भाजपा और पीडीपी में सिर्फ एक ही अंतर है। भाजपा का रुख आक्रामक है और पीडीपी शांत रहकर अपना काम करती है। हालांकि कश्मीर को लेकर भाजपा और पीडीपी की नीतियों में ज्यादा अंतर नहीं है। साथ ही गिलानी ने रविवार को केंद्र से बातचीत के लिए अपनी पांच शर्तों को फिर दोहराया है।

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85 वर्षीय कट्टरवादी नेता गिलानी ने कहा कि कश्मीर का मुद्दा बहुत गंभीर है। लेकिन कश्मीर मुद्दे पर पीडीपी हमेशा 'राजनीतिक खेल' करती रही है। गिलानी ने कहा, 'पीडीपी और भाजपा में सिर्फ दृष्टिकोण का अंतर है। भाजपा का रुख काफी आक्रामक है और वो अपनी नीतियों को कश्मीर पर थोपना चाहती है। भाजपा के बारे में यह कोई छुपी हुई बात नहीं है, इसे सभी जानते हैं।'

गिलानी ने कहा, 'मुफ्ती मोहम्मद सईद साहब का भी कश्मीर को लेकर रुख बिल्कुल भाजपा जैसा ही है। हालांकि मुफ्ती का रास्ता कुछ अलग और नया है। वो कश्मीर के लोगों को नुक्सान पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि वे हमारे दोस्त हैं। वह कश्मीर के लोगों के प्रति दया दिखाते हैं, लेकिन उनकी नीयत भाजपा जैसी ही है।'

मुफ्ती के जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराए जाने पर कश्मीर और हुर्रियत का हाथ होने के बयान पर भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, 'यह बयान देकर भी मुफ्ती ने पॉलिटिकल गेल खेली है। सच्चाई यह है कि जो लोग चुनाव के खिलाफ थे, उन्हें बाहर कदम भी नहीं रखने दिया गया। ऐसे सभी लोग जेल में डाल दिए गए। इसके अलावा सभी जानते हैं कि पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के चुनावों में कोई रुचि नहीं थी।'

इसके साथ ही गिलानी ने रविवार को केंद्र से बातचीत के लिए अपनी पांच शर्तों को फिर दोहराया है। उन्होंने कहा कि हम बातचीत को तैयार हैं, बशर्ते केंद्र सरकार हमारी पांच बातों पर अमल करे। गिलानी ने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में भी अपने लोगों के जरिए हमें बातचीत के लिए न्योता भेजा था। हमने पांच शर्तों के पूरा होने पर ही बातचीत में शामिल होने का यकीन दिलाया था। केंद्र ने इन पर कोई सकारात्मक रुख नहीं अपनाया, इसलिए हमने बातचीत की प्रक्रिया को नकार दिया।

बातचीत कश्मीर समस्या के समाधान के लिए होनी चाहिए, सिर्फ समय काटने के लिए नहीं। मसर्रत आलम की रिहाई पर सियासत की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि आलम को अदालत ने रिहा किया है। उसकी रिहाई पर संसद में हो रही चर्चा भी हास्यास्पद है। कश्मीरियों को सिर्फ बदले की भावना से ही जेलों में रखा गया है।

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