प्रणब की टिप्पणी के बाद पर्रिकर ने बोफोर्स तोपों की तारीफ
जिन बोफोर्स तोपों के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, उन्हें मौजूदा रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने अच्छा बताया है। दरअसल, एक स्वीडिश दैनिक के अनुसार, अपने साक्षात्कार के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बोफोर्स कांड को 'मीडिया ट्रायल' बताया है। उनके इस कथित बयान ने एक
नई दिल्ली। जिन बोफोर्स तोपों के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, उन्हें मौजूदा रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने अच्छा बताया है। दरअसल, एक स्वीडिश दैनिक के अनुसार, अपने साक्षात्कार के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बोफोर्स कांड को 'मीडिया ट्रायल' बताया है। उनके इस कथित बयान ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।
स्वीडिश दैनिक को दिए साक्षात्कार के संदर्भ में पर्रिकर ने मंगलवार को यहां कहा, 'मैं बस इतना प्रमाणित कर सकता हूं कि बोफोर्स तोपें अच्छी हैं। मैं राष्ट्रपति के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं दे रहा। अगर आप बोफोर्स तोपों की गुणवत्ता के बारे में पूछेंगे, तो वे अच्छी हैं।'
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अगले महीने स्वीडन के दौरे पर जाने वाले हैं। यात्रा से पूर्व उन्होंने स्वीडिश दैनिक 'डेजेंस नेहतर' को साक्षात्कार दिया है। अखबार के अनुसार, बोफोर्स घोटाले के पूछने पर मुखर्जी ने कहा, 'सर्वप्रथम, यह अभी साबित होना बाकी है कि कोई घोटाला हुआ है। भारत की किसी भी कोर्ट ने यह तय नहीं किया है।' जब 'डेजेंस नेहतर' के एडिटर-इन-चीफ पीटर वोलोद्रस्की ने उनसे पूछा कि बोफोर्स मामला, जिसके कारण लंबे समय तक भारत-स्वीडन के रिश्ते प्रभावित हुए, कोई घोटाला नहीं बल्कि एक मीडिया ट्रायल था। राष्ट्रपति बोले, 'मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं, इन शब्दों का आप इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें।'
मुखर्जी ने कहा, 'बोफोर्स कांड के बहुत बाद तक मैं देश का रक्षा मंत्री था। मेरे जनरलों ने प्रमाणित किया कि वह हमारी उन बेहतरीन तोपों में एक है, जो हमारे पास थीं। आज तक भारतीय सेना इसका उपयोग कर रही है। आप जिस तथाकथित घोटाले की बात कर रहे हैं, वह सिर्फ मीडिया में था। हमें ऐसे प्रचार के प्रभाव में नहीं आना चाहिए।'
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बहरहाल, साक्षात्कार के वीडियो में राष्ट्रपति की ओर से इस तरह की कोई टिप्पणी नहीं है। मालूम हो, '80 के दशक के अंतिम वर्षो के दौरान होवित्जर बोफोर्स तोप खरीदारी घोटाला चर्चा में आया था। साल 1989 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ यह प्रमुख मुद्दा बना। उस चुनाव में राजीव गांधी नीत कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था।