कृषि उत्पाद कानून पर सियासत : किसान नहीं आढ़तिए व राज्य सरकार होंगी प्रभावित
कृषि उत्पादों के अंतरराज्यीय व्यापार में छूट और कांट्रैक्ट खेती वाले केंद्रीय कानून से किसानों के लिए अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट मिल गई है। इसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा।
नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। कृषि क्षेत्र में सुधार से केंद्र ने भले ही किसानों के लिए नासूर बने पुराने प्रावधानों को चुटकी बजाकर खत्म कर दिया हो, लेकिन कुछ राज्य सरकारों और उनकी मंडियों में एकछत्र राज करने वाले आढ़तियों के होश उड़े हुए हैं। उनके विरोध के पीछे उनकी आमदनी में होने वाला सीधा नुकसान है। पंजाब और हरियाणा में इसका मुखर विरोध हो रहा है। इन राज्यों के खजाने में मंडी शुल्क से सालाना कई सौ करोड़ रुपये की आमदनी होती है, जो प्रभावित हो सकती है। इसी तरह मंडियों पर कब्जा जमाए आढ़तियों की कमाई भी प्रभावित हो सकती है।
दरअसल, कृषि उत्पादों के अंतरराज्यीय व्यापार में छूट और कांट्रैक्ट खेती वाले केंद्रीय कानून से किसानों के लिए अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट मिल गई है। इसका सीधा फायदा किसानों को मिलने वाला है। लेकिन कुछ किसान संगठनों को भी अलग तरह की आशंका है। उन्हें लगता है कि आने वाले दिनों में सरकार अपनी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर होने वाली सरकारी खरीद से पल्ला झाड़ सकती है, जबकि केंद्र सरकार ने उनकी आशंका को निराधार बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है।
शिरोमणि अकाली दल पंजाब में कर रहा विरोध
कांग्रेस शासित पंजाब और भाजपा शासित हरियाणा में भी इन प्रावधानों का विरोध किया जा रहा है। राजग में शामिल शिरोमणि अकाली दल पंजाब में इसका विरोध कर रहा है। किसान संगठनों की इस आशंका से ग्रसित होकर विरोध कर रहा है कि कहीं इसी बहाने सरकारी खरीद से सरकारें पल्ला न झाड़ लें। हालांकि, कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसान संगठनों से हुई मुलाकात में इस आशंका को निर्मूल बताया। उन्होंने कहा कि एमएसपी के प्रावधान को खत्म करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। केंद्र सरकार ने मंडी कानून से छेड़छाड़ किए बगैर कृषि उपज के अंतरराज्यीय कारोबार की अनुमति वाला कानून बना दिया है।
हजारों करोड़ रुपये कमा रहे आढ़तिए
पंजाब और हरियाणा में किसानों से गेहूं और चावल की सरकारी खरीद की गारंटी होती है। लेकिन यहां केंद्रीय एजेंसी एफसीआई व राज्य एजेंसियां सीधी खरीद करने के बजाए आढ़तियों के मार्फत खरीद करती हैं। पंजाब में पिछले साल तकरीबन 60 हजार करोड़ रुपये की लागत से गेहूं व चावल की सरकारी खरीद हुई थी। इन जिंसों पर तीन फीसद मंडी शुल्क, ढाई फीसद आढ़ती कमीशन और तीन फीसद ग्रामीण विकास फंड (आरडीएफ) शुल्क वसूला गया। यह 5100 करोड़ रुपये हुआ। इसमें 1800 रुपये आरडीएफ, 1800 करोड़ रुपये मंडी शुल्क और 1500 करोड़ रुपये आढ़तियों के हिस्से में गया। इसी तरह हरियाणा में मंडी शुल्क चार फीसद, जिसमें हरियाणा रोड विकास निधि भी शामिल है। इसके अलावा आढ़तियों के कमीशन की दर ढाई फीसद है। इससे हरियाणा की मंडियों से राज्य सरकार को जहां 800 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है, वहीं आढ़तियों को 500 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं, जबकि राजस्थान में आढ़तियों का कमीशन 2.25 फीसद है।
एमएसपी के आधार पर होती है कमीशन की वसूली
सभी राज्यों में शुल्क अथवा कमीशन की यह वसूली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार होती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड और उड़ीसा में अनाज की खरीद सहकारी संस्थाएं करती हैं। सहकारी संस्थाओं को खरीद करने की एवज में गेहूं पर 27 रुपये प्रति क्विंटल और चावल खरीद पर 32 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान किया जाता है। इस नए कानून के अस्तित्व में आने के साथ ही मंडी शुल्क के सहारे करोड़ों कमाई करने वाले राज्यों को सीधा नुकसान दिखाई दे रहा है।